ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Monday, December 24, 2012
मन के प्लेटफॉर्म पर
ऐसा कभी नहीं हो सकता
कि मन के प्लेटफॉर्म पर
तुम्हारी यादों से भरी
धीरे धीरे चलने वाली
मालगाड़ी न आये .
यह गाडी...
मेरे मन के एक कोने से
दूजे कोने तक
सब दर्द पहुंचाती है
मुस्कानें समेटती है
अश्क बटोरती है
पुरानी बातों को ढोती है
नयी यादों को चढाती है
सब कुछ सहेजती है ....
तुम खुद क्यूँ नहीं आ जाते कभी
यह गाडी लेकर ..
मेरे वजूद के स्टेशन के ...इस मन नाम के प्लेटफॉर्म पर
Saturday, December 15, 2012
साथ-साथ
प्यार करते हो तुम,मुझसे
तुमने अनगिन बार ये
दोहराया है .
मुझमें और तुममें कोई अंतर नहीं
बार-बार यह समझाया है.
पूर्णता के साथ भूलना कैसे संभव है ?
भूलने के लिए भी तो याद करना ज़रूरी है .
कहो,कैसे भूला जाए उस को
जिसने मुझे संपूर्ण किया .
अपूर्ण थी मैं ...
तुमसे मिलके पूर्ण हुई मैं ..
इसलिए ,
विस्मरण जैसा कुछ भी
प्रेम में संभव ही नहीं
तुम मेरा अस्तित्व
मैं तेरा वजूद
इसलिए ....अकेला बिखरता नहीं कोई
जब भी टूटेंगे ...बिखेरेंगे
हम साथ साथ होंगे .
Sunday, December 9, 2012
सच कहना
सच कहना रुकता है क्या ...कुछ
किसी के होने से या न होने से .
कहीं कुछ नहीं थमता
वैसे ही है चलता रहता
अच्छा है जितनी जल्दी
आ जाएँ बाहर ...इस गफलत से
कि फर्क पड़ता है किसी को
हमारे होने या न होने से
साथ जीने मरने की कसमें खाना ...
....अलग बात है
या कह लो सिर्फ बात है.
साथ साथ लोग जी सकते हैं
साथ मरते भई मैंने तो किसी को नहीं देखा.
Wednesday, December 5, 2012
इंतज़ार में
अक्सर
अपने घर के अकेलेपन में
महसूस होते हो तुम .
मैंने देखे हैं तुम्हारे होंठों के निशाँ
अपनी चाय की प्याली पे .
गीला तौलिया बिस्तर पे पडा
मुझको चिढाता हुआ.
सुनाई देती हैं मुझे मेरी आवाज़
जब दिखती हैं ,तुम्हारी चप्पलें
सारे घर में मटरगश्ती करती हुई .
तुम्हारी महक से पता नहीं कैसे
महकती हूँ मैं ...दिन और रात
आजकल यूँ ही
मुस्कुराती हूँ मैं...बेमतलब ,बेबात
बताओगे...?
ऐसा ही होता है क्या
किसी के इंतज़ार में .
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Tuesday, December 4, 2012
उदासी की रोटी
चलो मिल बैठेंगे
किसी रोज.....
बाँट लेंगे उदासी की यह रोटी
निगल लेंगे इसे
अश्क़ॉ के नमक के साथ.
बांटेंगे अपने ग़म
करेंगे थोड़ी हंसी ठिठोली
यूँ भी ...
कितना वक्त गुज़र गया
माहौल हल्का हुए
अचार के मस्त चटखारे का स्वाद
जुबां भूलने लगी है .
(प्रकाशित)
Saturday, December 1, 2012
पुराने प्रेम पत्र
पुराने प्रेम पत्र......
सारा बीता वक्त
ला कर के खड़ा कर देते हैं
आँखों के सामने
टाइम मशीन के जैसे.
डर लगता है कि
कहीं उन्हें खोलते ही
दिल में छिपा हुआ.... सब
सबके आगे ...आ गया तब .
सुना नहीं होगा न
कि किसी के बीच में होने से
कोई हो जाता है करीब.
है तो है अजीब
पर...सच यही है.
कुछ शब्द .....
जो हमने लिखे
हमने जिए
साथ साथ होने के
एक दूसरे को साक्षी मान
वो छिपाते रहे सबसे
जबकि
साथ होने के वो शब्द
जो औरों ने लिखे
वो मन्त्र हो गए .
मंत्रोच्चार ,अग्नि ,देवता
हमारे बीच होते
तो हम होते करीब
क्यूंकि
इनकी मौजूदगी के बिन
हम साथ नहीं हो सकते ,कभी .
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Thursday, November 29, 2012
उदासी का जश्न
सरप्लस में है उदासी...
सदाबहार है उदासी ..
बेशरम है उदासी ...
गहरी है उदासी ...
एक बार जो घर कर जाए
आसानी से जाती नहीं उदासी .
छोडती नहीं हाथ कभी
साथ निभाती है उदासी
अब जब जीना इसके साथ
मरना इसके साथ
तो क्यूँ न
उदासी का भी जश्न मना लें
जाम अश्कों के छलका कर
दुःख के चखने के साथ
अपने दिल की कहें-सुनें
कुछ देर तन्हाई में रो गा लें.
Tuesday, November 27, 2012
मेरा नाम
कागज़ में दर्ज हो जाना
कानूनन कुछ से कुछ हो जाना
इस बात की गारंटी नहीं देता
कि ,
मेरे मन में कौन रहेगा .
जो कागज़ पर दिखता है...
मेरा नाम...तुम्हारे साथ
वो,बस वहीं दर्ज रहता है .
क्यूंकि
मन में उतरने के लिए
किसी कागज़ की
किसी कानून की
किसी मोहर की
ज़रूरत नहीं होती .
Monday, November 26, 2012
सर्दी
गुलाबी सर्दियों की
ये सर्द सुबहें और रातें
साथ ले कर आती हैं
कितनी सारी यादें .
तेरी यादों की गर्माहट
जो धूप बन सहलाती है
वही शाम होते होते
मेरे गले लग कर
रोती हैं रात भर
और भोर होते ही
ओस लुटाती हैं.
Thursday, November 22, 2012
गुमशुदा
तेरी यादों की भीड़ में ...मैं गुमशुदा
बहुत हो चुका
अब तुम्हें आना ही होगा
कि मैं भी थक चुकी हूँ
इस कोलाहल से .
चले आओ
यादों से निकलकर
मेरे ऐन सामने
कि अब मैं खुद को
पाना चाहती हूँ .
Friday, November 16, 2012
सब्जी बेचने वाली
मैली कुचैली साडी पहने
वो सब्जी बेचने वाली औरत
अक्सर,
अपनी टोकरी उठाए
मेरी गली से भी गुज़रती है.
पान मुंह में दबाये
कोई गीत गुनगुनाते हुए
अपने आदमी के हाथ से
रात जो पिटी थी उसे बिसराए.
बीच-बीच में
हीरा ....सिकंदर की बातों पे हँसती
बाक़ी आदमियों की नज़रों को पढती
अपने गदराए बदन पे इतराए हुए.
उसकी आवाज़ का.....
सब्जी ले लो की सुरीली तान का
किस किस को इंतज़ार रहता है
उसे पता है.
उन घरों के आगे दो मिनट ज़्यादा रुकती है
जोर से आवाज़ लगाती है
जिनका पता है
कि मेमसाहिब नौकरी पे निकल चुकी होंगी
और साहब नौकरी पे निकलने के लिए
अभी शेव कर रहे होंगे .
Monday, November 5, 2012
मन अपने मन की करता है
मेरी बात कोई भी नहीं सुनता.
मेरा अपना मन तक नहीं...
जो भी बात तुमसे जुडी हो
उसमें तो यह मन ..
अपने मन की ही करता है .
तुम्हारे पिछले मैसेज को
आज दो साल पूरे होने को आये
आखिरी बार तुम्हारी आवाज़ सुने
गुज़र गए हैं तीन महीने तीन दिन .
मैसेज कोई भी भेजे ...
मेरा मन तुम्हारा नाम पढ़ना चाहता है .
हरेक कॉल पे एक नयी उम्मीद जगाता है
कि शायद तुम हो.
नज़रें ढूँढती हैं ..तुम्हारा नाम .
फोन का स्क्रीन भी इंतज़ार में है ...
कि कब तुम्हारा नाम फ्लैश हो
और साथ ही साथ मेरी स्माइल .
ऐसा कुछ नहीं होता
जीती रहती हूँ क्यूंकि जीना है
चाहें फिर वो मर-मर के ही हो .
समझा लेती हूँ खुद को.....
वैसे भी ,इतने बरस में
कुछ आया हो या न आया हो
खुद को समझाने में महारत आ गयी है.
तुम्हारा वो पुराना मैसेज फिर पढ़ लेती हूँ,
कॉल लॉग में जाकर तुम्हारे
तीन महीने तीन दिन पहले वाले नाम पे
उंगली फिराती हूँ ..
तुम्हें महसूस कर लेती हूँ.
मेरा यह स्पर्श तुम तक पहुंचता है क्या ????????????
Saturday, November 3, 2012
रहम-ओ-करम
आजकल ...............
मुझे लफ़्ज़ों की ज़रुरत कम पड़ने लगी है
क्यूंकि स्पर्शों की नयी दुनिया जगने लगी है
पता नहीं क्यूँ रतजगे इतने हसीं लगने लगे हैं
ख़्वाब हकीक़त में अचानक से बदलने लगे हैं
कौन सी आग है जिसमें जलने लगी हूँ
सारी कायनात में तुझे ही देखने लगी हूँ
तेरे हर अंदाज़ पे जीने और मरने लगी हूँ
क्या थी पहले अब तेरे साथ क्या होने लगी हूँ
अजीब सी एक मुश्किल है जिसमें धंसने लगी हूँ
प्रीत के इन धागों में अब मैं फंसने लगी हूँ
इन सब सवालों का मुझे जवाब नहीं मिलता
किसी बात का आजकल हिसाब नहीं मिलता.......तेरे रहम -ओ-करम पे ज़िंदगी
Sunday, October 28, 2012
क्या करूं?
आगाज़ और अंजाम के बीच
कितनी जगह तुम ठहरे
कितने और प्रेम हुए तुम्हें गहरे
उसका हिसाब कौन देगा ?
मैं पहला...आखिरी प्रेम हूँ
इस बात से खुश हो लूँ
या
बीच के तुम्हारे उन प्यार को सोच
आज मैं रो लूँ....
तुम ही कह दो क्या करूं.....
Saturday, October 27, 2012
Sunday, October 14, 2012
होता है न,यूँ...
जब तक हम तुम
एक दूसरे में गुम
एक दूसरे को खोजते रहे
रिश्ते को जीते रहे
जैसे ही मान लिया
कि
एक दूसरे को जान लिया
खतम होने लगा वो नयापन
शब्दों को ढूँढने लगे
बातों में ढलने लगे
अभी तक जिस रिश्ते में लफ़्ज़ों की ज़रूरत नहीं थी
अनकहा पढ़ने की सुन लेने की आदत हो गयी थी
धडकनों को सुन ,आँखों को पढ़ सब जान लेते थे
कुछ भी हुआ हो सारी सच्चाई पहचान लेते थे
अब......
लफ़्ज़ों की दरकार हुई
सारी मेहनत बेकार हुई
उसी ढर्रे पे चल पड़े
अजनबी से हो चले.
Tuesday, October 9, 2012
क्या लगते हैं?
माना कि मैं नहीं हूँ तेरी मंजिल
पर सुनो तो ऐ संगदिल ..
थोड़ी दूर साथ चले चलते हैं .
तुझे खो के जी पाऊं मुमकिन नहीं
तुझे पा सकूँ
ऐसा भी हो सकता नहीं
तो चलो ऐसा कर लेते हैं
तुझे पाने की आरज़ू में जी लेते हैं.
साथ हंसने को हैं बहुत लोग
तुम्हारे-मेरे आस पास
अश्क आयें जो आँखों के आसपास
तब हम एक दूजे के
काँधे को याद कर लेते हैं
मैं एक सवाल पूछूं ...
तुम जवाब दे दो तो जानूँ ..
हम एक दूसरे के क्या लगते हैं??
Monday, October 8, 2012
तोड़ दो...
भ्रम टूटने के लिए ही होते हैं....
जितनी जल्दी टूट जाएँ...
उतना अच्छा .
मोहब्बत की भी तकदीर कुछ ऎसी ही होती है
और हम खुद ज़िम्मेदार होते हैं ...इसके लिए.
क्यूँ जीते रहते हैं बीते हुए की यादों तले
क्यूँ नहीं बढ़ा पाते हम क़दम
जैसे अगले ने बढ़ा लिए.
भूल जाने के लिए भी पहल करनी पड़ती है
बस,वो पहला कदम उठाने भर की देर है ...
सब होगा ..क्यूँ नहीं होगा
अगला जी रहा है न हमारे बिना
हम क्यूँ नहीं जी पायेंगे उसके बिना
अंधेरों को गहराने न दो
आगे बढ़ो... भ्रम को तोड़ दो .
Thursday, October 4, 2012
क्या है प्रेम?
प्रेम जिस दिन समझ में आने लगेगा
तो उसमें कोई आनंद शेष नहीं रहेगा
उसकी रहस्यात्मकता ही है
जो आकर्षित करती है
अपनी ओर खींचती है .
रहने देते हैं न
खाली स्लेट जैसा इसे
जिस पर कोई इबारत नहीं.
जिसको जो समझना है
जैसा भी समझना है
जो पढ़ना है
जो बूझना है
अपनी मर्जी से कर ले
चाहें प्रेम में जी ले
चाहें प्रेम में मर ले
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Monday, October 1, 2012
टूटता सितारा
देख रही हूँ मैं आकाश..
अविराम .
ढूंढ रही है नज़र ..
कि कोई तो सितारा टूटे
जिससे इतने सालों बाद
खुद से भी छुपाई
दिल की वो मुराद
मैं..मांग सकूँ.
वो जो कहीं बैठा है रूठ के
न जाने क्यूँ इतने बरसों से
वो मान जाए ,
लौट आये;
यह ख्वाहिश
उठा रही है सर
कहीं भीतर .
इसीलिए ,ताकती हूँ आसमान
बदलने की चाह में है
उसकी नाराजगी का फरमान .
Saturday, September 29, 2012
Thursday, September 27, 2012
सिगरेट
तुम इतने संजीदा क्यूँ हो जाते हो
जब भी मैं यह कहती हूँ
सिगरेट पीने से उम्र कम हो जाती है
छोड़ क्यूँ नहीं देते इसे पीना .
मर जाओगे तो पता है
सांसें भले लेती रहूँ
पर मैं जीते हुए भी
रो-रो मर जाउंगी.
पता है ,तुम मर गए अगर
तो तुम्हारी तस्वीर को नहीं टांगूंगी दीवार पे...
न उसपे कोई माला चढाऊंगी
न ही अगरबत्ती जलाऊँगी ,उसके आगे.
अपनी माला के लोकेट में
पहन लूंगी,तुम्हारी तस्वीर
आस पास रहोगे मेरे दिल के.
अगरबत्ती न जला के
मैं ही सिगरेट पीना शुरू कर दूंगी
जिससे तुम तक पहुँच सके
सिगरेट का धुंआ...
और मैं भी उस धुंए में रहते रहते
जल्दी मर जाऊं
आकर के तुमसे मिल पाऊं.
Wednesday, September 26, 2012
मुखौटे
वो लोग अभागे होते हैं
जिनके पास होते हैं
वो,जो...ओढ़े ही रहते हैं मुखौटे
ताउम्र.
ताउम्र.
उनके आवरणों के टाँके
कच्चे हो भले
पर,उनके मुखौटों के साथ
चेहरे की ,मन की खाल में जज़्ब हो जाते हैं.
नाटक करना ही शगल है जिनका
अंतस के भाव वो कहाँ से लायें ?
ऐसे लोगों का क्या करेगा
तुम्हारा विश्वास ...
तुम्हारा निस्स्वार्थ प्रेम .
वो विश्वास और वो प्रेम
रोयेंगे अपनी किस्मत पे
एक दिन इस्तेमाल करने के बाद
जब फेंक दिया जाएगा
उन्हें ...बेकार समझ
कतरनों के ढेर पर .
तुम अपने लिए सीखना सिलाई का हुनर ...
रखना पक्के धागे तैयार
क्यूंकि जब तुम्हारा यकीं होगा तार-तार
बखिया उखड़ेगी तुम्हारी
तो हो तुम्हारे खुद के पास
ज़ख्म सीने की सारी तैयारी .
दोबारा जीने के लिए
भरोसे को सिलने के लिए
ज़ख्मों को छिपाने के लिए
दर्द को सहने के लिए
माफी की लेस
बड़प्पन के बटन टांक देना
क्यूंकि जैसे तुम नहीं बदलोगे
वैसे ही वो भी नहीं बदलेंगे,कभी.
Monday, September 24, 2012
ओवर हेड
क्यूँ इतना उलझ जाती है ज़िंदगी
कोई सिरा नहीं मिलता कभी-कभी
ढूँढते रहो..
वो एक राह ...
जिस से तुम तक पहुंचा जा सके .
सारी दुश्वारियां....सारे स्पीड ब्रेकर
भगवान ने ....बस इसी राह पे
मेरे लिए बना छोड़े हैं .
यार...चलो न
अपना एक ओवर हेड बना ले
प्यार का पुल ...
जो सीधे ...
फुल स्पीड ....
मुझे तुम तक पहुंचा सके .
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स्पीड ब्रेकर
Sunday, September 23, 2012
उलाहना
तुमसे जो कहना था
कभी नहीं कहा .
तुमसे जो सुनना चाहा
वो तुमने नहीं कहा .
रिश्ता....हमारा
कोमल एहसासों की
नरम गर्माहट में बस ऐसे ही
पलता रहा...बढ़ता रहा .
तुम अपनी आशंकाओं में घिरे रहे
मुझे दुविधाओं से फुर्सत न मिली
नतीजा उसका यह हुआ
कि हम....
दूर हुए ..मजबूर हुए
अलग-अलग ज़िंदगी जीने को..
आसानी से हमारा संग-साथ
मुमकिन हो सकता था
आज जो सबसे बड़ा दुःख है
वो सबसे बड़ा सुख हो सकता था .
वो चाहते रहना और कह न पाना
सोचने बैठूं ...
तो मलाल सा होने लगता है
खुद पे और तुमपे भी गुस्सा आता है .
सामने हाथ बढाने की देर थी
तू मेरा हो सकता था .
ज़रा सी कोशिश,थोड़ी सी हिम्मत से
सब बदल सकता था.
पता है....इसीलिए अब
जब भी ख़्वाब आते हैं
उनमें भी हम एक दूजे को नहीं पाते हैं
वो सारे सपने भी अपने साथ
सिर्फ ढेर से उलाहने लाते हैं .
Friday, September 21, 2012
स्वीकारने के करीब
सामने जब तक वो रहा
लफ्ज़ भी न निकला मुंह से
वो बोलता रहा...
मैं सुनती रही.
खुली आँखों से
ख़्वाब बुनती रही .
जब सोचा
रात के ख़्वाबों की तामीर कर दूँ
आज अपने दिल कि सारी बातें कह दूँ .
बस कहने को लब हिले ही थे
मन में कुछ फूल खिले ही थे
कि उसने कहा
बातों बातों में वक्त का पता नहीं चला
साढ़े छह हो गए हैं
अँधेरा हो रहा है
मैं चलता हूँ
तुम भी अपने घर जाओ.
मेरे कहते ही कि कुछ कहना है
उसका हाथ हिला कर कहना
अभी चलता हूँ...
...कल फिर मिलते है
...तब सुनूँगा सब
जो भी तुम्हें कहना है .
बार-बार ऐसा ही होता है
मैं स्वीकारने के करीब होती हूँ
और तुम्हें ठीक उसी वक्त
कुछ काम याद आ जाता है .
Wednesday, September 19, 2012
मन्नत
तुम देखना
अबकि बार
जब बस ज़रा धीमे होगी....
उस मोड पर ....
एक पेड है ..बड़ा पुराना सा..
मैंने बांधी है उसपे
अपनी सितारों टंकी
तेरे प्यार सी सुर्ख चुन्नी
कि ...तुम लौट आओगे
शहर में नहीं रम जाओगे .
देखो......कब आओगे???
मन्नत पूरी होती है...होगी
सबके इस यकीं को
कायम रखने के लिए .
वैसे ,उसी मोड पे ....
मैंने देखा है कि
सारे के सारे मवेशी तक
अपना रास्ता भूल जाते हैं.
Tuesday, September 18, 2012
बस,आ जाओ
सीधी सी बात यही है कि..
बस,तुम आओ....
चले आओ...मेरे पास.
कोई मौसम हो...
उससे क्या फर्क पड़ता है ?
मेरे मन के सारे मौसमों पे
तो बरसों बाद भी
एक बस तेरा ही कब्जा है .
मौसम का आना जाना
उससे मुझे क्या लेना देना
तुम्हारा आना....मेरे लिए
है बसंत का आना .
और प्रतीक्षा मत कराओ
कबसे ठहरा है बसंत उस मोड पे,
जहां मुड गए थे तुम मुझे छोड़ के .
Sunday, September 16, 2012
मन हो रहा है ...
आजकल
बहुत मन हो रहा है
कि काश मैं सिगरेट बन जाऊं .
तुम्हारी कमीज़ की उस जेब में रहूं .
जो तुम्हारे दिल के करीब है.
तुम्हारी उँगलियों में फंसी रहूं
और होठों को छूती रहूं .
तसल्ली इस बात की
कि तुम्हारी टेंशन
तुम्हारी खुशी
हर में ...साथ रही .
मैं जलूं भी तो
इस बात का चैन कि
दम तोड़ा तुम्हारे करीब
तुम्हारे हाथों से राख हुई.
गंध मेरी
मेरे जाने के बाद भी रहे
तुम्हारी उँगलियों में
तुम्हारी साँसों में
तुम्हारे ज़ेहन में ...हमेशा.
काश ......
"आमीन" कहो न.
Friday, September 14, 2012
क़सम लगती है
मुहब्बत अपनी इबादत ओ धरम लगती है
इनायतें तेरी खुदा का करम लगती हैं
मुझको लगा था कि मैं भूल चुकी हूँ तुझको
फिर तेरे ज़िक्र पे क्यूँ ज़रा नब्ज़ थमती है
तू मुझे छोड़ गया तो कोई तुझसा न मिला
तेरी परछाईं है जो हमक़दम सी चलती है
तुम्हारे हाथ से जब छूट गया हाथ मेरा
अब खुदाई भी बस एक भरम लगती है
तुम गए तो अब अच्छा नहीं लगता कुछ भी
यूँ तो तन्हाई में यादों की बज़्म सजती है
जो तोड़ गए थे दिल मेरा मुहब्बत में कभी
सुना तो होगा कि उनको भी क़सम लगती है
Thursday, September 13, 2012
तुम पागल हो
कितना कुछ कहना था
कब से रुका हुआ था
अंदर दबा हुआ सा था
मन पे एक बोझा था
अकेले सहना मुश्किल था .
अब.....
सब बह गया है..
उतर गया है सब.
पाँव ज़मीन पे नहीं रहते
दिल उड़ने को करता है
तुमसे मिलने को करता है
सब कुछ तुम्हें दे कर
तुम्हें पा लेने को करता है
अजीब सा हो गया है कुछ
हर घडी न जाने क्या-क्या
ये जी करता है .
कुछ समझ नही आ रहा
किस राह जाने की
तैयारी है इसकी .
जुडना...
तुम्हारे हर सुख ...हर दुःख से
सुनना ...
बातें तुम्हारी कही-अनकही सी
रहना...
तुम्हारे ख़्वाब और ख्यालों में
चाहना...
तुम्हारा प्यार...तुम्हारा विश्वास
मांगना...
तुम्हारा साथ दिन रात
सच कहूँ ,तो.......
रास आ रहा है ये पागलपन मुझे
कि तुम्हारे मुंह से
"तुम पागल हो "सुनना अच्छा लगता है
Wednesday, September 12, 2012
शुक्रिया....प्यार
एक तेरे आ जाने से
कितना कुछ आया है
मेरे जीवन में .
ढेर से डर हैं ...
तुझसे मिल नहीं पाने के .
रोज़ एक नयी आशंका
बिछड जाने की .
बातें ..
कही -अनकही
सरकारी दफ्तर की
पेंडिंग फाइलों सी....
खत्म ही नहीं होतीं .
रतजगे ...
जिनमें एहसासों के तार जुड़े .
आंसू,हँसी,....
इन सब के सिलसिले .
एक मुहब्बत के साथ
कितने सारे बदलाव आ जाते हैं जीवन में .
शुक्रिया,प्यार...
जीवन में यूँ दबे पाँव आने के लिए
हरेक शै पे यूँ छा जाने के लिए.
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आशंका,
डर सिलसिले,
पेंडिंग फ़ाइल,
प्यार,
रतजगे,
शुक्रिया,
सरकारी दफ्तर
Sunday, September 9, 2012
न जाने कहाँ गयी ....
जेठ की तपती दुपहरी
गरम साँसों की आवाजाही
लू भी जब जी जला रही
तब...एकाएक
उसने कहा कि
वो दूर जाने वाला है
कुछ दिन का विरह
बीच में आने वाला है .
मैंने कहा,बता कर जाना
उसका कहना कि
मुझसे कहे बिना क्या
संभव होगा उसका जा पाना ?
वो गया ...
जब चला गया...
दुनिया ने बताया .
जब लौटा ..तब भी....
जग ने ही खबर दी,
उसकी वापसी की .
बताने की ज़रूरत उसे
महसूस ही नहीं हुई .
उसकी ज़िंदगी वैसे ही
मेरे बिन भी चलती रही .
बड़े दिन बाद
एक दिन बात हुई
शिकवे हुए शिकायत हुई
पर,
उसकी आवाज़ की ठंडक
कलेजे के खून को जमा गयी
आषाढ़ के महीने में भी
रिश्तों में से गर्माहट
न जाने कहाँ गयी .
Saturday, September 8, 2012
आप्शन
विदा ही एकमात्र आप्शन है
उन सभी के प्रेम के लिए
जो मोहब्बत तो करते हैं ...
पर......
नैतिकता को छोड़ नहीं पाते .
वो भले दुखी हों ,पर
सारा समाज सुखी है..कि
जिनके मन मिले...थे
उनके शरीर को मिलने नहीं दिया.
वो खडा रहा
पहरेदार बन कर
जब भी कभी
मेरे हाथों ने ,होठों ने
तुम्हें छूना चाहा .
सारे संस्कारों की दुहाई दे दी गयी
कि वो चाहते रहे
एक दूसरे को ,हमेशा
पर...मिलन की कोई सूरत न हो.
प्यार ...बस तब तक प्यार है
जब तक ..अलग अलग बिस्तरों पे
हम एक दूसरे को याद करते -करते
अपनी शराफत ..अपने मूल्यों को
साथ लेकर सोते रहे,रोते रहे ....
सारी मर्यादाएं ,वर्जनाएं
साथ साथ चलती रहीं
मेरी तेरी उदासीनता के साथ
और कहती रहीं...
ज्यादा अच्छे लोगों को ..कुछ भी हो
प्रेम ना होने पाए कभी."
Friday, September 7, 2012
सच में....
प्रेम का इतिहास,जुगराफिया
फिजिक्स,केमिस्ट्री
कुछ नहीं पता.
जानती हूँ बस इतना
कि जब वो नहीं होता
तो सब बेस्वाद हो जाता है.
किसी काम में मन नहीं रुचता
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
हरेक लम्हा भारी
सब ओर एक शख्स तारी .
जिसने खुद कभी प्रेम प्याला चखा नहीं
वो इसके तिलिस्म को जान सकता नहीं
जादू है इसमें कुछ जो नज़र आता नहीं
किताबों में पढ़ने से इसका सबक आता नहीं
सच में .....
प्रेम ,आस्वाद है.....
जिसे खुद चखे बिना नहीं जाना जा सकता .
Labels:
आस्वाद,
इतिहास जुगराफिया,
केमिस्ट्री,
तारी,
तिलिस्म,
प्रेम,
फिजिक्स
Wednesday, September 5, 2012
सुनो न ..
तुम ,
कुछ कहो न कहो..
कुछ लिखो न लिखो
मुझे वो सारे हुनर आते हैं
जिनसे
तुम्हारी आँखों से होकर
मैं मन तक पहुँच जाती हूँ
और सब अनकहा ...सुन आती हूँ.
सब अनलिखा ...पढ़ आती हूँ .
अब तो कभी नहीं कहोगे न ..
कि "कुछ नहीं हुआ "
"पता नहीं "कह कर नहीं टालोगे
या ...बस,"ऐसे ही "कह कर बहलाओगे नहीं .
Tuesday, September 4, 2012
सड़क
सड़क : खत्म हो जाती हैं यकीनन वहाँ
तुम मेरा हाथ छोडोगे जहां ..
मेरे हमसफ़र !!
सड़क : सब पहुँच जाते हैं उससे होकर
कहीं न कहीं
कभी न कभी
वो रह जाती है ,बस
वहीं की वहीं .
सड़क : थक जाती है सारा दिन
लोगों के कोलाहल से
सन्नाटा पसरता है
चाहती है ये भी
कमर सीधी कर के
आराम करना .
सड़क : बाँट क्यूँ देते हो मुझे
डिवाइडर बना कर
एक मैं ...
दो हिस्से
एक ले जाने वाला कहीं
एक ले आने वाला वहीं
सड़क : पत्थर ,गिट्टी
कोलतार ,मिट्टी
रोड रोलर से दबा दिए
तब भी उभर उभर आती है
गिट्टियां ..
संग चली आती हैं
चप्पल में चिपक कर
तेरी याद सी ढीठ है
ये गिट्टियां भी .
सड़क : हादसों को रोज़ देखती हैं
खून और आंसू समेटती हैं
जब भीड़ तमाशबीन होती है
चाहती है...काश
मोबाइल जो वहाँ गिरा है
उसे उठा मरने वाले के
किसी दोस्त को फोन लगा दे.
सड़क : रेगिस्तान की
सारे समय
रेत से ढकी
अपने किनारों को ढूँढती सी
जो खो गए रेत में .
पर ,वो खुश है रेत में यूँ गुम होकर .
सड़क:मानचित्र में
कहाँ है वो सड़क
जो तुम्हें मुझ तक लाएंगी .
उसके बाद मानचित्र की सारी सडकें
गायब हो जाएँ ,बस .
सड़क: तुम इनसे ही गए हो दूर
मेरे लिए ये हाथ की
वो काली रेखा है
जो मेरी पत्री से
ज़मीन पे उतरी है .
(प्रकाशित)
Friday, August 31, 2012
राहे इश्क में पहला क़दम....
ग़मों से दोस्ती का मैं दम रखती हूँ
राहे इश्क में पहला क़दम रखती हूँ
खुदा की नेमत सी लगे है ये दुनिया
यही सोचकर शिकायत कम रखती हूँ
बिछड के सूख न जाए प्यार की बेल
आज तलक तेरी यादें नम रखती हूँ
किसी एक दिन तुम हो जाओगे मेरे
दिल के कोने में ये भरम रखती हूँ
लोगों को चाहिए मौक़ा हँसने का
इसी से छिपा के अपने गम रखती हूँ"
Wednesday, August 29, 2012
बनी रहे ....
हसरत है कि मेरे शहर में ये शराफ़त बनी रहे
बहू -बेटी किसी की भी हों उनकी अस्मत बनी रहे
मैंने कुछ भी चाहा ही नहीं कभी बस इसके सिवा
हक़ में दुआएं करने वालों की बरक़त बनी रहे
कोई कसर तूने छोड़ी कहाँ सितम ढाने में ख़ुदा
तुम बता दो किसलिए तुझपे ये अक़ीदत बनी रहे
निगाहों को,दिलों को पढ़ने का फ़न किसे आता है
इन्हें बांचना सीख लूँ बस ये लियाक़त बनी रहे
अपने ही अपनों के ख़ून के प्यासे ना हो जाएँ
दूरी इस सूरते हाल से ताक़यामत बनी रहे
तरक्क़ी पसंद हूँ मैं इसमें कोई दो राय नहीं
देहलीज़ लांघ कर निकलूँ तो भी नज़ाकत बनी रहे
बिछड़ना जो पड़ जाए नसीब से हार कर कभी हमें
ज़रूरी है हम में रस्मे ख़तो क़िताबत बनी रहे
देखा सुना बहुत सीखा नहीं कुछ प्यार के सिवा
तमाम उम्र मुझ जाहिल की ये जहालत बनी रहे
कुछ भी ग़लत होता देखें तो आवाज़ बुलंद करें
मिजाज़ में सब लोगों के बस ये बग़ावत बनी रहे
(प्रकाशित)
Saturday, August 25, 2012
सांप सीढ़ी
कभी निन्यानवे पे गोटी हो
लग रहा हो मंजिल दूर नहीं
तभी अचानक किसी दूसरे को मिल जाती है सीढ़ी
और वो नीचे से सीधा चढ के आता है
करीब में कहीं
और किस्मत ने उसे जो चांस दिया होता है
सीढ़ी चढ़ने का......
उससे जब निन्यानवे पे रखी गोटी पीटता है
और फिर पीटने की चांस ले कर
पहुँच जाता है ,मंजिल तक.
तब,लगता है कि
इससे अच्छा होता
इतनी ऊपर आये ही न होते
जीतने के सपने खुद को दिखाए न होते.
बात..बस इतनी सी है
ज़रूरी नहीं हर की किस्मत
हर एक वक्त साथ दे.
अगर तय था तुमसे न मिल पाना
संभव नहीं था तुम तक पहुँच पाना
तो इतना तो लकीरें साथ दे ही सकती थी
कि मुझे ...अपनी मंजिल के इतने पास न लाती
मैं पहले ही खुद को सच्चाई के सांप से कटवा लेती
कोई भी ख्वाब कभी न सजाती .
फालतू की उम्मीदें बाँधकर
फिर उनके टूटने के दर्द के साथ
हार जाने का दुःख क्यूँ कर सहती .
किस्मत का सांप हमेशा ही बेवक्त डसता है.
Sunday, August 19, 2012
खाप
क्लास लगी है
वहीं...बरगद के चबूतरे पर
गाँव के दद्दा सिखाएंगे
कि लड़का लड़की प्यार कैसे करेंगे .
मिलते ही...दिल के जुड़ने से पहले
पूछेंगे ...गोत्र,धर्म जाति
फिर अंदाज़ा कि
पैसे से मजबूत है की नाही .
उसके बाद प्यार करना बच्चो
वरना ,फिर सामू और कम्मो
कि तरह मरना बच्चो .
सिखा रहे हैं
पढ़ा रहे हैं पाठ ...
प्यार होना नहीं चाहिए
क्यूंकि
प्यार सब देख भाल कर ...कह सुन कर ...जांच-परख कर
करने वाली चीज़ है.
Wednesday, August 15, 2012
आज़ादी दिवस
एक पागल है ..
सारे शहर में घूम घूम के
हरसिंगार के झरे फूल और गिरी पत्तियां
इकट्ठी करता है .
सुना है...
वक्त का है मारा
फ़ौजी है पुराना
इन फूल पत्तियों में
उसे...
अपना तिरंगा नज़र आता है .
जिससे हर शख्स बेखबर नज़र आता है .
अपने देश की स्थिति दिखायी देती है .
बात-बात पे उसकी आँख भर आती है .
देश के लिए कुछ करने..देश को कुछ दे पाने का पागलपन हम पे भी हावी हो जाए .
आज़ादी दिवस आप सभी को मुबारक हो !!
Monday, August 13, 2012
ज़रूरी नहीं ....
ज़रूरी यह नहीं
कि प्रेम कितनी बार हुआ
एक बार हुआ या कई बार
ज़रूरी यह है कि
जब हुआ ..जिससे हुआ
उस वक्त
हम उसके साथ
पूरी तरह से थे या नहीं .
उन पलों में जब थे साथ
तब जिए पूर्ण ईमानदारी से
मन-तन सब रहा उसके साथ
यूँ भी...रिश्ता कोई भी हो
किसी से भी हो,कभी भी हो
उसमें शिद्दत की...
ईमानदारी की दरकार
होती है और होनी भी चाहिए
Monday, August 6, 2012
इंतज़ार में....
अक्सर
अपने घर के अकेलेपन में
महसूस होते हो तुम .
मैंने देखे हैं तुम्हारे होंठों के निशाँ
अपनी चाय की प्याली पे .
गीला तौलिया बिस्तर पे पडा
मुझको चिढाता हुआ.
सुनाई देती हैं मुझे मेरी आवाज़
जब दिखती हैं ,तुम्हारी चप्पलें
सारे घर में मटरगश्ती करती हुई .
तुम्हारी महक से पता नहीं कैसे
महकती हूँ मैं ...दिन और रात
आजकल यूँ ही
मुस्कुराती हूँ मैं...बेमतलब ,बेबात
बताओगे...?
ऐसा ही होता है क्या
किसी के इंतज़ार में .
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Thursday, August 2, 2012
राखी
याद ही होगा तुम्हें भी
जब साथ होने की
कोई अहमियत न थी .
राखी ...आती थी
और ले आती थी
अपने साथ
शर्तें,फरमाइशें
यह देना वो देना ..
इतने रुपयों से कम दोगे
तो राखी नहीं बांधेंगे .
वक़्त बदलता है
एक सा कब रहता है
आज ...दूर हैं
राखी खुद बाँध लोगे
गिफ्ट भी भिजवा दोगे
पर,मन होता है
कुछ न देते
पर पास होते
साथ होते .
मन का चाहा...कब होता है
खैर छोडो ......
दूर सही
पर दुआओं में हमेशा रहोगे...............पास .
Tuesday, July 31, 2012
जी भर के जी लेते हैं
चलो,
आज मिल के
जी भर के
शराब पीते हैं.
जैसे है ....
जो हैं ...
"खुद " को जीते हैं .
मनाते हैं जश्न
हरेक बात का
तेरे मेरे साथ का .
होते हैं मदहोश
खोते हैं होश
कर लेते हैं
वो सब
जो यूँ नहीं मुमकिन .
सारी नैतिकताएं
सारी वर्जनाएं
तोड़ देते हैं .
मेरे कदम बहकने दे
जले हलक तो जलने दे
मुझे उसी राह पे चलने दे
जहां सारे रास्ते
तुझ तक हैं पहुंचाते .
आओ ना ...
आज जी भर के जी लेते हैं.
Saturday, July 28, 2012
मज़ेदार..
मज़ेदार होता है न प्यार....
पता है....
पहले मैं अकेले तनहा हुआ करती थी
जबसे मोहब्बत हुई है मुझको
तुम्हारा प्यार, एहसास होता है पास
और इसके साथ होने पर भी
मैं अकेले ही अकेले हुई जाती हूँ.
अजीब है न प्रेम ?!
समझ नहीं आता इसका सर पैर कुछ
अच्छे खासे इंसान को एकलखुरा बना देता है .
अब तन्हाई की आदत हो गयी है
महफ़िल में मन नहीं रमता
कुछ भी तेरे बिन
न जाने क्यूँ अच्छा नहीं लगता .
Tuesday, July 24, 2012
क्या.....
बेजान चीज़ों को
जला कर
तोड़ कर
धो कर
फाड़ कर
फेंक कर
तुमने सोचा होगा
कि चलो,पीछा छुडा लोगे ,मुझसे .
सच कहना
कि क्या .........
जला पाओगे?
तोड़ पाओगे ?
मिटा पाओगे?
धो पाओगे?
फाड़ पाओगे ?
फेंक पाओगे?
मेरा अक्स ...
अपने दिल से
अपने ख़्वाबों से
अपनी सुबहों से
अपनी आँखों से
अपनी यादों से
अपनी बातों से
अपनी रातों से
अपने"वजूद" से .
तुम्हें अभी तक दरअसल पता ही नहीं चला है
कि फर्क नहीं है कोई "मैं" और "तुम" में
जब तक तुम हो
मैं रहूंगी तुम में .
Thursday, July 19, 2012
इग्नोर करना
इग्नोर करना भी अच्छा होता है...
कभी न कभी इससे ..
मैं भी सीख जाउंगी
तुम्हारे प्रति उदासीन होना .
तुम्हारा मुझे इग्नोर करना मुझे सिखा देगा
कि कैसे तुमसे नफरत और प्यार किये बगैर
ज़िंदा रहा जा सकता है .
तेरी फ़िक्र,परवाह किये बगैर
खाना मेरा पच सकता है .
तेरे प्यार ,तेरी डांट,तेरे ख्याल के बगैर
सब नोर्मल रह सकता है .
रुको...
सुन तो लो
तुम्हारे इग्नोर करने का"शुक्रिया"
Monday, July 16, 2012
नज़र बट्टू
तेरे वादों से गुंथा
एक धागा है
जिसमें...
मैंने तेरे इंतज़ार के मनके पिरोये हैं.
प्रेम की एक माला तैयार की है.
पहने रहती हूँ ,उसे ....सदा.
उसमें एक लोकेट है
जो मेरे दिल के करीब रहता है
तेरी तस्वीर रख छोडी है,उसमें .
मेरे नज़र बट्टू हो तुम
अब किसी की नज़र
मुझपे असर नहीं करती.
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