ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Sunday, October 28, 2012
क्या करूं?
आगाज़ और अंजाम के बीच
कितनी जगह तुम ठहरे
कितने और प्रेम हुए तुम्हें गहरे
उसका हिसाब कौन देगा ?
मैं पहला...आखिरी प्रेम हूँ
इस बात से खुश हो लूँ
या
बीच के तुम्हारे उन प्यार को सोच
आज मैं रो लूँ....
तुम ही कह दो क्या करूं.....
Saturday, October 27, 2012
Sunday, October 14, 2012
होता है न,यूँ...
जब तक हम तुम
एक दूसरे में गुम
एक दूसरे को खोजते रहे
रिश्ते को जीते रहे
जैसे ही मान लिया
कि
एक दूसरे को जान लिया
खतम होने लगा वो नयापन
शब्दों को ढूँढने लगे
बातों में ढलने लगे
अभी तक जिस रिश्ते में लफ़्ज़ों की ज़रूरत नहीं थी
अनकहा पढ़ने की सुन लेने की आदत हो गयी थी
धडकनों को सुन ,आँखों को पढ़ सब जान लेते थे
कुछ भी हुआ हो सारी सच्चाई पहचान लेते थे
अब......
लफ़्ज़ों की दरकार हुई
सारी मेहनत बेकार हुई
उसी ढर्रे पे चल पड़े
अजनबी से हो चले.
Tuesday, October 9, 2012
क्या लगते हैं?
माना कि मैं नहीं हूँ तेरी मंजिल
पर सुनो तो ऐ संगदिल ..
थोड़ी दूर साथ चले चलते हैं .
तुझे खो के जी पाऊं मुमकिन नहीं
तुझे पा सकूँ
ऐसा भी हो सकता नहीं
तो चलो ऐसा कर लेते हैं
तुझे पाने की आरज़ू में जी लेते हैं.
साथ हंसने को हैं बहुत लोग
तुम्हारे-मेरे आस पास
अश्क आयें जो आँखों के आसपास
तब हम एक दूजे के
काँधे को याद कर लेते हैं
मैं एक सवाल पूछूं ...
तुम जवाब दे दो तो जानूँ ..
हम एक दूसरे के क्या लगते हैं??
Monday, October 8, 2012
तोड़ दो...
भ्रम टूटने के लिए ही होते हैं....
जितनी जल्दी टूट जाएँ...
उतना अच्छा .
मोहब्बत की भी तकदीर कुछ ऎसी ही होती है
और हम खुद ज़िम्मेदार होते हैं ...इसके लिए.
क्यूँ जीते रहते हैं बीते हुए की यादों तले
क्यूँ नहीं बढ़ा पाते हम क़दम
जैसे अगले ने बढ़ा लिए.
भूल जाने के लिए भी पहल करनी पड़ती है
बस,वो पहला कदम उठाने भर की देर है ...
सब होगा ..क्यूँ नहीं होगा
अगला जी रहा है न हमारे बिना
हम क्यूँ नहीं जी पायेंगे उसके बिना
अंधेरों को गहराने न दो
आगे बढ़ो... भ्रम को तोड़ दो .
Thursday, October 4, 2012
क्या है प्रेम?
प्रेम जिस दिन समझ में आने लगेगा
तो उसमें कोई आनंद शेष नहीं रहेगा
उसकी रहस्यात्मकता ही है
जो आकर्षित करती है
अपनी ओर खींचती है .
रहने देते हैं न
खाली स्लेट जैसा इसे
जिस पर कोई इबारत नहीं.
जिसको जो समझना है
जैसा भी समझना है
जो पढ़ना है
जो बूझना है
अपनी मर्जी से कर ले
चाहें प्रेम में जी ले
चाहें प्रेम में मर ले
Labels:
आकर्षित,
आनंद,
प्रेम,
रहस्यात्मकता,
स्लेट इबारत
Monday, October 1, 2012
टूटता सितारा
देख रही हूँ मैं आकाश..
अविराम .
ढूंढ रही है नज़र ..
कि कोई तो सितारा टूटे
जिससे इतने सालों बाद
खुद से भी छुपाई
दिल की वो मुराद
मैं..मांग सकूँ.
वो जो कहीं बैठा है रूठ के
न जाने क्यूँ इतने बरसों से
वो मान जाए ,
लौट आये;
यह ख्वाहिश
उठा रही है सर
कहीं भीतर .
इसीलिए ,ताकती हूँ आसमान
बदलने की चाह में है
उसकी नाराजगी का फरमान .
Subscribe to:
Posts (Atom)