Thursday, November 29, 2012

उदासी का जश्न


सरप्लस में है उदासी...
सदाबहार है उदासी ..
बेशरम है उदासी ...
गहरी है उदासी ...
एक बार जो घर कर जाए
आसानी से जाती नहीं उदासी .
छोडती नहीं हाथ कभी
साथ निभाती है उदासी

अब जब जीना इसके साथ
मरना इसके साथ
तो क्यूँ न
उदासी का भी जश्न मना लें
जाम अश्कों के छलका कर
दुःख के चखने के साथ
अपने दिल की कहें-सुनें
कुछ देर तन्हाई में रो गा लें.

Tuesday, November 27, 2012

मेरा नाम





कागज़ में दर्ज हो जाना
कानूनन कुछ से कुछ हो जाना
इस बात की गारंटी नहीं देता
कि ,
मेरे मन में कौन रहेगा .

जो कागज़ पर दिखता है...
मेरा नाम...तुम्हारे साथ
वो,बस वहीं दर्ज रहता है .
क्यूंकि
मन में उतरने के लिए
किसी कागज़ की
किसी कानून की
किसी मोहर की
ज़रूरत नहीं होती .

Monday, November 26, 2012

सर्दी



गुलाबी सर्दियों की
ये सर्द सुबहें और रातें
साथ ले कर आती हैं
कितनी सारी यादें .

तेरी यादों की गर्माहट
जो धूप बन सहलाती है
वही शाम होते होते
मेरे गले लग कर
रोती हैं रात भर
और भोर होते ही
ओस लुटाती हैं.

Thursday, November 22, 2012

गुमशुदा



तेरी यादों की भीड़ में ...मैं गुमशुदा
बहुत हो चुका
अब तुम्हें आना ही होगा
कि मैं भी थक चुकी हूँ
इस कोलाहल से .

चले आओ
यादों से निकलकर
मेरे ऐन सामने
कि अब मैं खुद को
पाना चाहती हूँ .

Friday, November 16, 2012

सब्जी बेचने वाली



मैली कुचैली साडी पहने
वो सब्जी बेचने वाली औरत
अक्सर,
अपनी टोकरी उठाए
मेरी गली से भी गुज़रती है.

पान मुंह में दबाये
कोई गीत गुनगुनाते हुए
अपने आदमी के हाथ से
रात जो पिटी थी उसे बिसराए.
बीच-बीच में
हीरा ....सिकंदर की बातों पे हँसती
बाक़ी आदमियों की नज़रों को पढती
अपने गदराए बदन पे इतराए हुए.

उसकी आवाज़ का.....
सब्जी ले लो की सुरीली तान का
किस किस को इंतज़ार रहता है
उसे पता है.
उन घरों के आगे दो मिनट ज़्यादा रुकती है
जोर से आवाज़ लगाती है
जिनका पता है
कि मेमसाहिब नौकरी पे निकल चुकी होंगी
और साहब नौकरी पे निकलने के लिए
अभी शेव कर रहे होंगे .

Monday, November 5, 2012

मन अपने मन की करता है



मेरी बात कोई भी नहीं सुनता.
मेरा अपना मन तक नहीं...
जो भी बात तुमसे जुडी हो
उसमें तो यह मन ..
अपने मन की ही करता है .

तुम्हारे पिछले मैसेज को
आज दो साल पूरे होने को आये
आखिरी बार तुम्हारी आवाज़ सुने
गुज़र गए हैं तीन महीने तीन दिन .

मैसेज कोई भी भेजे ...
मेरा मन तुम्हारा नाम पढ़ना चाहता है .
हरेक कॉल पे एक नयी उम्मीद जगाता है
कि शायद तुम हो.
नज़रें ढूँढती हैं ..तुम्हारा नाम .
फोन का स्क्रीन भी इंतज़ार में है ...
कि कब तुम्हारा नाम फ्लैश हो
और साथ ही साथ मेरी स्माइल .

ऐसा कुछ नहीं होता
जीती रहती हूँ क्यूंकि जीना है
चाहें फिर वो मर-मर के ही हो .
समझा लेती हूँ खुद को.....
वैसे भी ,इतने बरस में
कुछ आया हो या न आया हो
खुद को समझाने में महारत आ गयी है.
तुम्हारा वो पुराना मैसेज फिर पढ़ लेती हूँ,
कॉल लॉग में जाकर तुम्हारे
तीन महीने तीन दिन पहले वाले नाम पे
उंगली फिराती हूँ ..
तुम्हें महसूस कर लेती हूँ.
मेरा यह स्पर्श तुम तक पहुंचता है क्या ????????????

Saturday, November 3, 2012

रहम-ओ-करम





आजकल ...............
मुझे लफ़्ज़ों की ज़रुरत कम पड़ने लगी है
क्यूंकि स्पर्शों की नयी दुनिया जगने लगी है
पता नहीं क्यूँ रतजगे इतने हसीं लगने लगे हैं
ख़्वाब हकीक़त में अचानक से बदलने लगे हैं

कौन सी आग है जिसमें जलने लगी हूँ
सारी कायनात में तुझे ही देखने लगी हूँ
तेरे हर अंदाज़ पे जीने और मरने लगी हूँ
क्या थी पहले अब तेरे साथ क्या होने लगी हूँ


अजीब सी एक मुश्किल है जिसमें धंसने लगी हूँ
प्रीत के इन धागों में अब मैं फंसने लगी हूँ
इन सब सवालों का मुझे जवाब नहीं मिलता
किसी बात का आजकल हिसाब नहीं मिलता.......तेरे रहम -ओ-करम पे ज़िंदगी

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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