Saturday, December 14, 2013

एक गली संकरी सी


तुम देखना ,
ध्यान से ज़रा,
आगे एक चौराहा आएगा
उस चौराहे से जो रस्ते जाते हैं न चार
वहाँ है पैसा ,खूबसूरती,तरक्की ,व्यापार.


उनपे न जाना .
थोड़ा पीछे चलना
उससे ज़रा पहले ही
एक गली है संकरी सी
कोई नाम पता कहीं नहीं
बस प्रेम की सुगंध है
यादों की ईटों से बनी
दर्द के कोलतार से ढकी
महकती रहती है.

उस के पास पहुँच भर जाओ
तो खुद ब खुद खिंचे चले आओगे
एक बार आकर ,रास्ता भूलना हो
तो उसी गली में भूलना...प्लीज़

Saturday, December 7, 2013

बेआवाज़ रात



चले गए हो तुम
दूर देस .
तब भी ...
दिल में
वैसे ही
रहते हो तुम .

अक्सर ,
दिल के इस मकान के बाहर
तेरी यादों का जो चबूतरा है
उसपे ही मेरा दिन उतरता है
शाम ढलती है
और फिर ..
बस यूँ ही
बेआवाज़ रात गुज़र जाती है.

Thursday, December 5, 2013

इश्क़ की खुमारी


हल्का हल्का सा एक नशा तारी है
और कुछ नहीं ये इश्क़ की खुमारी है

कल क्या होगा इसका भरोसा नहीं
न जाने क्यूँ उम्र भर की तैयारी है

खुश ना होना तुम उसको गिरता देख
आज उसकी तो कल तुम्हारी बारी है

ज़िंदगी है हर तरह के जायके वाली
मीठी कभी कड़वी कभी खारी है

शक़ की निगाहों को खुद से दूर रखना
वाकिफ हो यह लाइलाज बीमारी है

तेरा प्यार हो या कि तेरी नाराजगी
मुझे तेरी हर अदा जां से प्यारी है

तुम अपना हाथ मेरे हाथ में दे दो
ज़िंदगी की हरेक शै फिर हमारी है

Wednesday, December 4, 2013

कहाँ तक तुम्हें



देखो कहाँ तक तुम्हें लेकर ये झूठ जायेंगे
कभी न कभी तो पाप के ये घड़े फूट जायेंगे

पता लग जायेगी अभी इन लोगों की हक़ीक़त
जैसे ही अन्दर शराबों के चंद घूँट जायेंगे

वाकिफ़ हूँ इससे कि मैं झूठ बोल नहीं सकता
और जो मैंने सच बोला तो अपने रूठ जायेंगे

वो जो बैठे हैं इस महफ़िल में नज़रें झुकाए
देखना है कि वो मेरा क्या क्या लूट जायेंगे

नहीं जानता था तुम्हारे मायने ज़िंदगी में
जाना अब जब लगा कि सहारे ये छूट जायेंगे

Monday, December 2, 2013

अनकहा

मैं कुछ भी कहूँ
कैसे भी कहूँ
तुम्हें अखरता है .
मेरी हर बात में
आजकल कुछ
तुम्हें खलता है
मैं चुप रहूं अगर
तो  गुस्साते हो
कि बोलती क्यूँ नहीं
कुछ कह दूँ अगर
तो तमक जाते हो
कि कहना ज़रूरी नहीं .
पसोपेश में हूँ करूं तो क्या करूं
शांत रहूं
चुप रहूं
कुछ पूछूँ
कुछ कहूँ
या करूं इंतज़ार ...कुछ रोज़ .


समझ नहीं आता
तुम चाहते क्या हो
खुद की व्यथा छिपा रहे हो
कुछ कहना है जो कह नहीं पा रहे हो
किस वजह से मुझे दूर किये जा रहे हो
या फिर खुद मुझसे दूर हुए जा रहे हो

वाकिफ हो कि नहीं
मैं कितनी परेशान हूँ
तुम्हारी परेशानी को लेकर
चाहती हूँ कि
कह दो तुम
बाँट लो तुम
सब दिल खोलकर .

जब तक तुम यह नहीं करते
तुम्हारे अनकहे को
समझने की कोशिश में ....मैं

Sunday, November 24, 2013

मन की खिन्नता

थक चली हूँ
खुद के मन की खिन्नता से .
सोचती हूँ कि क्या होता है
क्यूँ होता है
जिसकी वजह से
कुछ यूँ होता है
कि हम इतने निर्मम हो जाते हैं
अपने लिए
अपनों के लिए.

कैसे और क्यूँ इतना क्रूर
कि प्यार को ठुकरा देते हैं
दूसरे की हर उम्मीद को
बेवजह धत्ता बता देते हैं
सब कुछ ठीक होते हुए भी
कहीं से कमियाँ ढूँढ़ लेते हैं
दूसरों की कुछ कमजोरियों से
अपनी ताक़त खींच लेते हैं .
हरेक बात में मन मुताबिक़
खामियां खोज लेते हैं
किसी को दिख न जाएँ दुःख
इसलिए आंसू खुद पोंछ लेते हैं .
क्यूँ ????
दूर होने लगते हैं मजबूर होने लगते हैं
गलतफहमियों को सेने लगते हैं
बीच में फासले को जन्म देने लगते हैं .

मुझे नहीं पता क्या नहीं है
पर कुछ है जो पहले सा नहीं है
कहीं एक खालीपन भरा सा है
कुछ है जो दिलों में जमा सा है .

लग रहा है कि बाहर आना है इस सबसे
वरना अवसाद घिरना तो तय है अभी से
इस सब को पीछे छोड़ना है ,तो
तेरे मेरे साथ के अलावा
मुझे  चाहिए तन्हाई
खूब ढेर सारा वक़्त
कुछ गुस्ताखियाँ
कुछ माफियाँ
एक रोने का सेशन
जिसमें घुल जाएँ
पिछली शिकायतें और सारी टेंशन .

चलो,फिर से
कोशिश करें एक बार
पुरानी बीती बातों पे मिट्टी डाल
बाहर आ जाएँ
पिछ्ला कहा- सुना भूल -भाल .

Saturday, November 23, 2013

तकलीफ

बहुत मुद्दत के बाद
बड़ी शिद्दत के साथ
तुम्हें चाहा था
पर..
हुआ वही जो होना था
पाकर तुम्हें यूँ खोना था
खो दिया ...

तकलीफ में हूँ
परेशान हूँ बहुत
जिस रिश्ते को बहुत तरजीह दी थी मैंने
एक ख़ास मुकाम, अलग ज़मीन दी थी मैंने
वो मेरे सामने बिखर रहा है .
हाल ..बेहाल है मेरा
क्यूँकि बहुत ऊंचाई से गिरो तो
चोट ठीक भले हो जाए
पर उम्र भर टीसती है .
क्या करूं कि तेरी बातों की
तेरी यादों की चक्की
मुझे रात दिन पीसती है .
खीजती हूँ जब सोचती हूँ
कि कमी कहाँ रह गयी
मुझसे गलती कहाँ हो गयी

अब ......
तेरे मेरे दरमियाँ
एक अनकहा सा फासला है
उसमें हाथ नहीं मेरा
वो सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारा फैसला है
तुम्हें शायद हाल ए दिल समझा न सकूँ
क्या हो तुम मेरे लिए कभी बता न सकूँ
पर..हाँ
यह ज़रूर है
अब शायद
किसी से
प्यार मैं कर न सकूँ
किसी पे
ऐतबार मैं कर न सकूँ

Thursday, November 21, 2013

सर्दी की लम्बी रातें


गुलाबी सर्दियों का मौसम शुरू हो रहा है
फैला रही है ठण्ड धीरे धीरे अपने पाँव ..
कोहरे की चादर तान कर स्याह सर्द रात
लम्बी होती जा रही है ..
तुम्हें तो पता नहीं है
न ही होगा
क्यूँ हो जाती हैं लम्बी रातें .
यह सुनते ही
पता है मुझे ,तुम अभी के अभी
सारा विज्ञान,भूगोल समझाने लगोगे
पर..असली कारण
जो है एक राज़
तुमको बताती हूँ
मेरे करीब आओ तुम्हें
सब का सब समझाती हूँ .

जश्न हैं ..ये रातें
मुहब्बत की गर्माहट का
स्वीट नथिंग्स की फुसफुसाहट का
बाहों की कसमसाहट का
होठों की नरमाहट का
क्यूंकि
इनमें ही खिलते हैं
फ़ूल मुहब्बत के
बिखरती है खुश्बू
देह से देह तक
और अलसाया रहता है तन मन
सोचते नहीं थकता है
कि काश...
ज़रा और लम्बी होती रात
तो थोड़ा सा ज़्यादा
मिल जाता तुम्हारा साथ

Saturday, November 16, 2013

मुझे कुछ नहीं पता


तुम नाराज़ हो
पता है मुझको
इस नाराजगी के चलते
बात नहीं करते हो मुझसे .

जब नार्मल होता है न
सब कुछ हमारे बीच
तब कितने दिन भी
बात न हो हमारे बीच
मुझे दिल को समझाने में
मशक्कत नहीं करनी पड़ती
पर,
जब जानती हूँ मैं
कि तुम ख़फा हो मुझसे
तो तुम्हारा अबोला परेशान करता है .
तुम न बोलकर भी सारा दिन
बोलते रहते हो मेरे कान में .
तुम आस पास न होकर भी बहुत पास होते हो
ऐसे वक़्त में .

चाहती हूँ...
जितना दूर तुम जाने की कोशिश कर रहे हो
उतनी ही दूरी मैं भी बढ़ा लूँ तुमसे
पर,फासले बढाने की सोचने भर से
तुम्हें अपने और ज़्यादा करीब पाती हूँ .

मन होता है
तुमसे कुछ न कहूँ
तुमसे कुछ न सुनूँ
पर तुम ही तुम गूँजते रहते हो
मेरे बाहर भीतर .


दिल करता है
चिल्ला कर कहूँ
सारी भूल तुम्हारी है
मेरी कोई गलती नहीं
पर ,तुम्हें अफ़सोस करते देखते ही
तेरी मेरी सारी गलतियाँ
न जाने कैसे,न जाने कब
मेरी अपनी हो जाती हैं .

मुझे नहीं पता
तुमसे मैं क्या चाहती हूँ
तुम्हें पास चाहती हूँ या दूर
तुमसे प्यार चाहिए या नफरत भरपूर
लडूँ तुमसे तो मानूँ खुद ही
या तुम्हारे मनाने का मैं इंतज़ार करूँ
तुम्हें परेशान करूं हर रोज़ किसी नयी बात पर
बस यह परखने के लिए कि मेरी परेशानी
तुम्हें परेशान करती है क्या
फिर वही सारे काम करूँ
जो तुम्हें अच्छे लगते हैं
या सनक में वो सब
जिनसे बेहद चिढ है तुम्हें .

मेरा मन क्या चाहता है
मुझे कुछ नहीं पता
तुम्हें क्या मानता है
मुझे ख़ुद नहीं पता
मैं अपना मन नहीं पढ़ पाती
खुद को ही नहीं समझ पाती
तो कहो न
वो जाहिल मन भला तुम्हें कैसे समझेगा
इसलिए,प्लीज़ नाराज़ मत हुआ करो.
कुछ काम,कई बातें...कितनी ही चीज़ें
मैं क्यूँ करती हूँ ...मुझे नहीं पता
बस पता है तो बस इतना
कि प्यार है तुमसे बेइंतिहा .

Thursday, November 14, 2013

कडवी ज़िंदगी


बहुत कडवी है यह ज़िन्दगी
उतरती है सीने में
जला देती है जिगर.
आँखों के पानी में
घोले बिना ,
इसे पीना ...जीना
लगभग नामुमकिन ।

ज़िंदगी की इस तल्ख़ी को
थोड़ा कम कर लें
आओ, उससे बात कर लें
थोड़ा सा नशा कर लें
थोड़ा सा जी लें
थोड़ा सा मर लें
उससे अपने रिश्ते को
ज़रा कसौटी पर कस लें

Tuesday, November 12, 2013

प्यार में हो न सकूंगी




तुम जबसे नहीं ज़िंदगी में
हरेक सुबह ऎसी है
जैसे कई दिन की छुट्टी के बाद काम पर जाना .

तुम्हारे बग़ैर ..
हरेक सड़क ,बस...वन वे
कुछ नहीं जिससे वापस आया जाये
और अगर लौटा भी जाए किसी तरह
तो ,सवाल यह की आखिर किसके लिए .

तुम्हारे बिना
नीला या लाल
गुलाबी या काली
किसी भी स्याही से लिखा,"मैं तुमसे प्यार करती हूँ "
आपने मायने खो देता है .

तुम नहीं हो जो ..
...तो,हमेशा का मतलब
बहुत-बहुत ज़्यादा लंबा अरसा
नहीं हो सकेगा,कभी.

नहीं होगे जब तुम करीब
तो बसंत से रहेगी दूरी
और यह स्याह सर्द सी ज़िंदगी
मेरे आगे अंतहीन खिंचती जायेंगी .

पता है,तुम्हें
यह सब क्यूँकर हुआ
क्यूंकि,तुम बिन ..
मैं प्यार में हो न सकूंगी
कुछ महसूस कर न सकूंगी.

Friday, October 25, 2013

इंतज़ार में हूँ




आजकल मेरा समय काटे नहीं कटता है
सारा दिन तुम्हारे ख्यालों में खोया रहता है
समस्त बातों का केंद्रबिंदु हो गए हो तुम.
सारे विचार तुम तक जाकर लौट आते हैं
मेरे सारे सपने तुम में ही ठौर पाते हैं
तुम और तुम्हारे एहसास से लिपटी रहती हूँ
अपने इस हाल पर विस्मित रहती हूँ .

यहाँ,मेरा यह हाल है ....
पर,
पता नहीं तुम वहाँ क्या करते हो ?
क्या कभी तुम्हें मेरा ख्याल आता है
क्या तुम मुझे अपने पास पाते हो
कभी मेरी कमी का एहसास होता है
इन सभी सवालों के जवाब पाने के लिए ..
मैं बहुत बेचैन रहती हूँ ..
पर,तुम तो फिर तुम हो न
मैं आँखों से जब कहती हूँ
तुम अनदेखा कर जाते हो
जो मैं तुमसे कुछ पूछूँ
तुम अनसुना कर जाते हो
किस तरह तुमसे सब जान लूँ
दिल का तुम्हारे हाल पा सकूँ
समझ नहीं पाती हूँ .
इंतज़ार में हूँ.....
तुम कुछ कहो
जिसे मैं समझ सकूँ .

Thursday, October 24, 2013

वक्त की रफ़्तार



बहुत शैतान है यह वक्त
याद है न
साथ ही तो था यह
जब हम मिले थे
नटखट बच्चे की तरह
भागता ही रहा
न दो पल रुका
न कुछ देर ठहरा
कितना कुछ कहना सुनना
बाक़ी रह गया

अब दूर हैं हम
मिलने की भी दूर तक
कोई सूरत नहीं
तो,वही वक्त
ठहर गया है
थम गया है
उस बुजुर्ग के
गठिये वाले पैर सा
जिससे चला नहीं जाता है.
(प्रकाशित )

Saturday, September 28, 2013

यूँ धोखा नहीं देता



अपने को हंसी में छिपा दर्द का तोहफा नहीं देता
तुम मिल जाते तो मैं खुद को यूँ धोखा नहीं देता

जितनी बार कोई मेरे क़रीब आया बिछड़ गया
क्यूँ ख़ुदा मेरे हक़ में कभी फैसला नहीं देता

हर शख्स़ चाहता है अब एक तजुरबेकार आदमी
इसलिए ही नए को कोई भी मौक़ा नही देता

मैंने जितना चाहा गर वो उतना ही चाहता मुझे
तो यकीनन जो उसने दिया वो फासला नहीं देता

नेता रोज ढूँढ़ते रहते हैं कुछ अलग बात कहने को
पर आजकल देश उन्हें कोई नया मसला नहीं देता

कहता रहता है मुझसे कि मेरी तरक्की चाहता है
पर न जाने क्यूँ आगे बढ़ने को रास्ता नहीं देता

Thursday, September 26, 2013

......नहीं है



तमाम उमर मुहब्बत का नशा उतरता नहीं है
मुश्किल बस इतनी कि आसानी से चढता नहीं है

दो चार सच्चे यार दोस्त जिसके आस पास रहें
कितना भी बुरा वक्त आये वो बिखरता नहीं है

हमारे रास्ते जुदा हुए बरसों बरस गुज़र गए
बाक़ी रह गया है कुछ जो कभी ढलता नहीं है

दरक जाता है बरसों का यकीं इक झूठी बात पे
इस शज़र की खासियत दोबारा पनपता नहीं है

गैरों की कमियां गिनाते हुए जुबां नहीं थकती
अपना ऐब पर क्यूँ आँखों में खटकता नहीं है

अपनी काबिलियत का वो इश्तिहार नहीं करता
खरी बात ये भरा जो घड़ा वो छलकता नहीं है

मिल जाएँ हम या हो जाएँ एक दूजे से जुदा
प्यार होता है तो रहता है कभी मरता नहीं है

हादसे के बाद वापस ढर्रे पे आ गयी है ज़िंदगी
बस बच्ची का बचपन अब ढूंढे मिलता नहीं है

Tuesday, September 24, 2013

ऐसा कर दूँ



उदासी
सर्द है और साथ ही बहुत स्याह .
छोटे छोटे कांटे निकले हैं इसमें
जो तुम्हें चुभते हैं और उसको भी
जो तुम्हारे करीब आना चाहता है .

बहुत नुकीले कोने हैं
तुम्हारी इस चुप्पी के
लगातार ,जिनसे रिसता रहता
बूंद-बूंद दर्द ....चुप-चाप .

एक जो खालीपन सा भर रखा है
तुमने अपने भीतर
वो बहुत आवाज़ करता है ,अक्सर
सिसकियाँ की शक्ल में रात भर.

तुम्हारी ख़ामोशी ....
ख़ामोश होकर भी
कभी ख़ामोश नहीं होती
कितने सवाल करती है
कितने जवाब देती है .

मन होता है कि सुन सकूँ...
तुम्हारी चुप्पियों को .
काश,मैं पढ़ सकूँ
तुम्हारी इन खामोशियों को .
सहला सकूँ तुम्हारी उदासियों को ,
निकाल फेंकू सारे कांटे और
भर दूँ प्यार से तुम्हारा रीता मन .
रेत दूँ सारे पैने कोने ,
समतल और चिकना कर दूँ ,
वो सब कुछ.....
..........जो है खुरदुरा ,
तुम्हारे जीवन मे .

Tuesday, August 13, 2013

करते हैं दुआ




कितनी ही रातें गुजरी
आँखों आँखों में
तेरी आमद के सारे रस्ते धोये
आँखों की बरसातों ने.

तुम तो "आता हूँ "
कह कर भूल गए
वाकिफ भी नहीं ...
किसी की दुनिया और वक़्त रुका हुआ है
तुम्हारे इंतज़ार में .

तुम वहाँ अपने हाथ उठाओ
मैं अपनी हथेली आगे बढाती हूँ
जोड़ कर दोनों हथेलियाँ
करते हैं दुआ".....
......ऐ खुदा !
सुन ले ज़रा ....!!"

मांग लेते हैं
एक दूजे को
एक दूजे के लिए .
लकीरें मिले ना मिलें
हम दोनों मिलें
साथ साथ रहें
......हमेशा.

(प्रकाशित)










































Tuesday, July 23, 2013

सावन झूम के


मेरे मन के सावन को
मैं अक्सर रोक लेती हूँ
अपने ही भीतर.
बंद कर देती हूँ
आँखों के पट
आंसुओं को समेट के .
मार देती हूँ कुण्डी
मुंह पे ,सिसकियों को उनमें भर के .
साथ ही साथ ..
नहीं भूलती
लगाना ताला
अपने गले पे
सारी चीखें और रुंधा हुआ सब
कहीं गहरे ही दफना के .

कितना भी रोक लूँ
सावन रुकेगा क्या
मेरे रोके जाने से ..
लो,
आ ही गया सावन झूम के

Tuesday, July 16, 2013

शहर में रहा करो


तुम साथ नहीं
तुम पास नहीं
पर,शहर में हो
यह बात भी तसल्ली देती है.
जब सुन लेती हूँ ख़बर
तुम्हारे कहीं जाने की
अजीब सी हालत होती है मेरे मन की...
बड़ा उचाट सा रहता है
वापसी की बाट जोहता है.

मेरे शहर की वो हवा
जो तुम्हें छू कर गुज़रती है
उसे साँसों में भर लेने से
तेरे करीब होने का एहसास जग जाता है.
शहर में तेरी नामौजूदगी से
जीवन ठहर जाता है
सब कुछ थम जाता है .
इसलिए,सुनो मेरी कही यह बात
प्लीजज्ज जहां के हो वहीं आ जाओ,वापस.

Thursday, June 27, 2013

जेठ-आषाढ़


जेठ की तपती दुपहरी थी
गरम साँसों के बीच
लू भी जी जलाती थी.
तब...एकाएक
उसने कहा कि
वो दूर जाने वाला है
कुछ दिन का विरह
बीच में आने वाला है .

मैंने कहा,बता कर जाना
उसका कहना कि
मुझसे कहे बिना क्या
संभव होगा उसका जा पाना ?

वो गया ...
जब चला गया...
दुनिया ने बताया
जब लौटा ..तब भी....
जग ने ही खबर दी
उसकी वापसी की
बताने की ज़रूरत उसे
महसूस ही नहीं हुई .
उसकी ज़िंदगी वैसे ही
मेरे बिन भी चलती रही .

बड़े दिन बाद
एक दिन बात हुई
शिकवे हुए शिकायत हुई
पर,
उसकी आवाज़ की ठंडक
कलेजे के खून को जमा गयी
आषाढ़ के महीने में भी
रिश्तों में से गर्माहट
न जाने कहाँ गयी .

Tuesday, June 18, 2013

बादल


जब भी कभी

बादलों से बात हुई है.

उन्होंने यही कहा है ,हौले से

सफ़ेद रुई से हलके हम...

सबको नज़र आते हैं.

कोई नहीं समझता हमारा दर्द...

जब स्याह हो गहराता है.

तब ,बरसना हमारी खुशी नहीं..

तेरी मेरी दुआ का असर नहीं..

मोर की पुकार नहीं...

चकोर की प्यास नहीं..


बल्कि

अंतस की तकलीफ का बह जाना मात्र है.

Monday, May 27, 2013

तुम नाराज़ हो.....

तुम नाराज़ हो...
जब तक चाहो
नाराज़ हो लेना
पर,तुम
बस मेरी एक बात सुनना
चुप मत होना

नाराज़ हो
नाराज़गी जताओ
कहो सुनो
कुछ बोलो
जी भर चिल्लाओ.
चीख लो ..
जो मन में है
उसे कह जाओ

बस ...
अंदर ही अंदर मत घुटना
चुप मत होना .

मुझे सब है मंजूर
पर चुप्पी गवारा नहीं
तुम बोलते रहते हो
एक सुकून सा रहता है
जीवन रस बहता रहता है
वरना
जीवन जीना भारी ..
बस ,जैसे
मरने की तैयारी
ज़िंदगी तेरी चुप्पी से हारी .

Sunday, May 12, 2013

उसने चूमा मुझे ...........



उसने चूमा मुझे
एक कली सी खिलने लगी
मेरे अंदर...
उस कली से फूल बनने के इंतज़ार में हूँ,मैं .

उसने चूमा मुझे
एक खुमारी  सी  चढ़ने लगी
मुझ पर...
उस खुमारी के नशा बनने के इंतज़ार में हूँ ,मैं .

उसने चूमा मुझे
कितने रंग आ गए
मन के आकाश पर ...
उन रंगों से इन्द्रधनुष बनने के इंतज़ार में हूँ,मैं .

उसने चूमा मुझे
एक बूंद सी रिसने लगी प्यार की
मेरे भीतर ...
उस बूंद से सागर बनने के इंतज़ार में हूँ,मैं

उसने चूमा मुझे
एक चिंगारी सी सुलगने लगी
मेरे बाहर-अंदर ...
उस चिंगारी के आग बनने के इंतज़ार में हूँ,मैं

अब...इंतज़ार में हूँ मैं ......बस .

Monday, May 6, 2013

पता नहीं कब..?



कब जीना छोड़ दिया
कुछ याद नहीं पड़ता.
शुरुआती दौर में
ऐसा न था .
धीरे धीरे न जाने कब और क्यूँ
खुद को बदलती रही
सबकी मर्ज़ी से ढलती रही
सबने जैसा कहा
मैंने वैसा किया
सबको राजी रखने की
कोशिश मैं करती रही

मेरे आगे दूसरों ने
अपनी मर्ज़ी की लकीरें खींचीं
पता नहीं कब
वो लकीरों का जाल
न लांघें जाने वाली
दीवारों में बदल गया
सबके लिए करते हुए
मेरा मन कहीं मर गया

अब...
अपने में खुद मैं नहीं शेष
मुझे अपने ढूंढे नहीं मिलते अवशेष
हर मोड पर मिल जायेंगी
मेरी जैसी कई यहाँ
जिनका वजूद है उन लकीरों के सहारे
उबरना खुद है उन्हें अपने लिए
ज़िंदा नहीं रहना है केवल
जीना भी है अपने लिए .

Wednesday, May 1, 2013

मजदूर दिवस




कुछ यूँ करते हैं कि
दीवारें जो उठ जाती हैं धीरे धीरे
...दिलों के बीच ...
चलते हैं साथ
उन दीवारों के पास
और जल्दी जल्दी
उन दीवारों को
हम मिल कर
आज गिराते हैं .

चलो......
मजदूर दिवस मनाते हैं .

Thursday, April 25, 2013

कह देना


प्लीज़ ...यार, मेरी एक बात सुनो
तुम जो चाहें सोचो
या जो मन में आये करो
पर,मेरे पास रहो .

इतना पास...
कि जब मन करे
तो तुम्हें छू सकूँ
बांहों में भर सकूँ
जी भर के चूम सकूँ .

अच्छा ,एक बात बताओ
तुम्हें ऐसा कभी नहीं लगता ,क्या ?
कभी मन नहीं करता
कि नज़दीक रहो .
पता है ,लगता भी होगा न
तो तुम कहोगे नहीं.
यूँ भी ...जतलाना
तुम्हारी फितरत कहाँ ?

सब जानने के बाद भी
मैं कहूँगी यही
कि कह देना ..
रिश्ते की सेहत के लिए अच्छा होता है

Friday, April 19, 2013

सप्पोर्ट सिस्टम


थक गयी हूँ
फासला तय करते -करते
जो आ गया हमारे बीच
एक फैसला करते करते .

ज़िंदगी....इतनी दुश्वार तो कभी न थी
जितना अब हो चली है
बड़े दिनों से
अपनी नज़रों से नज़रें भी मिलती नहीं .
तुम थे तो सब था
अब तेरे बिन कुछ भी नहीं
मेरा अपना वजूद ही नहीं

मेरा आप मुझसे सवाल करता है
एक नहीं कई बार करता है
कहाँ गया,क्यूँ गया वो ...
जो था मेरा ...सप्पोर्ट सिस्टम .

Monday, April 15, 2013

उदासी




उदासी...
एक बड़ी चादर
जो ढांक लेती है
बाक़ी सारे भाव
अपने अंदर.

उदासी....
इसके नुकीले पैने नाखून
उतार देते हैं खुरच कर
शेष बची सारी खुशियाँ
मन के अंतरतम से .

उदासी....
एक काली बंद गुफा
जहां,कितना ही पुकारो
कोई नहीं सुनता
कोई नहीं आता.

उदासी...
अंधा कुआं है
अपनी ही आवाज़ की
प्रतिध्वनियों के सिवा
सुनाने को
इसके आपस और कुछ नहीं .

उदासी ....
कफ़न सी सफ़ेद
मरघट की नीरवता लिए
मौत सी शान्ति के साथ
धीरे धीरे जान लिए जाती है

उदासी...
एक महामारी सी
एक से दूसरे तक
पाँव पसारती ...
धीरे- धीरे फैलती ...
लील जाती सब कुछ .


((प्रकाशित )






























Sunday, April 14, 2013

अपाहिज

.

आजकल सब अधूरा सा क्यूँ है ?
दिल दर्द से भरा पूरा सा क्यूँ है
बड़ी अजीब से हैं दिन और रात
अनमने से सारे जज़्बात
क्यूँ किसी काम में मन नहीं लगता
क्यूँ यह जीना जीने सा नहीं लगता .
तेरे बिन.

सोचती रहती हूँ कारण....
शायद,
तुझसे बात नहीं होती
मुलाक़ात नहीं होती
इसलिए जी बेज़ार है .
मान ही लूँ कि अधूरी हूँ
तेरे बिन.

बस ख़्याल पूरे हैं
बाक़ी सब अधूरा
मेरा दिल ...मेरी धडकन
मेरा जी ......मेरी जान
सब कुछ अपाहिज सा
तेरे बिन .

Saturday, March 30, 2013

डर



स्याह सी खामोशियों के
इस मीलों लंबे सफ़र में
तन्हाइयों के अलावा ..
साथ देने को दूर-दूर तक
कोई भी नज़र नहीं आता .

जी में आता है
कि कहीं तो एक उम्मीद दिखे
कोई तो हो हमक़दम
जिसके हाथों को थाम के चलें.
पर फिर वही डर...वही खटका
मन का ...
कि गर कोई मिल भी गया
तो..................
बीच राह में वो छोड़ कर न जाए
मुझे कुछ और खाली
कुछ और अधूरा सा
न कर जाए .

उनका क्या हो जो लोग जन्मते ही हैं ...ज़िंदगी का सारा खालीपन और उदासी अपने में समेटने के लिए .

Saturday, March 16, 2013

रंगीला बसंत


तेरी यादों की बालियाँ
पक गयी हैं
लहलहाने लगी हैं.
आम पर लद रही है बौर
जैसे संग है मेरा दर्द
मुझे महकाता हुआ .
अलसी के फूलों ने
ले लिया है नीलापन
मेरी हर अंदरूनी चोट से.
सरसों ने उधारी पर लिया है
थोड़ा पीलापन
मेरे ज़र्द चेहरे से
पर ...मज़े की बात है कि
इस सब के बीच में ही
फूल रहा है हमारा प्यार
पलाश सा दहकता हुआ लाल .
कितना रंगीन होता है न बसंत...!!

Friday, March 15, 2013

बसंती


बसंती बयार
कोयल की पुकार
सरसों महकता हुआ
टेसू दहकता हुआ
बौराये आम
दरकिनार काम
अलसाए तन
पगलाये मन
अनमने से हम
और उस पर तेरी याद
न जाने क्या क्या
गुल खिलाती हुई
है मेरे साथ
कभी करती आबाद
तो कभी बर्बाद

Sunday, February 24, 2013

हैंग ओवर


तुमने काटी है कभी ..
एक स्याह रात ...तनहा .
वादा किया हो किसी ने
जब आने का रात में
और उसकी बाट जोहते जोहते
सूरज ने हटा दी हो अँधेरे की चादर
और समेट लिए हो सितारे
अपने आगोश में .

तुम्हारे आने का ,तुमसे मिलने का
बतियाने की उम्मीद का ...नशा
सारे नशों से ज़्यादा सर चढ के बोलता है .
इसी लिए आज सवेरे ...से
सर में दर्द है..आँखें जल रही हैं
तेरे साथ ,तेरी बात
और तेरे प्यार का,इंतज़ार का
यार...
हैंग ओवर है,मुझे .

Thursday, February 21, 2013

खारापन



ज़िंदगी में से मिठास कहीं खो गयी है
हर ओर बस..तल्खियां ही तल्खियां हैं
तेरी-मेरी कुछ मजबूरियां है ...
साथ रहती केवल तनहाईयाँ हैं

गुज़रना चाहती हूँ ...महसूस करना चाहती हूँ
चखना चाहती हूँ
जीवन का हरेक स्वाद .
पर ...आजकल कोई ज़ायका
समझ में नहीं आता
खारेपन के अलावा .

क्या करूँ ???
तेरी आँख के
उस आंसू का खारापन
जाता ही नहीं ज़ुबां से

Sunday, February 17, 2013

हवा से


ज़िंदगी...
करीब महसूस होती है
जब तुम पास होते हो
सांस लेती है.....
जब तुम नज़दीक होते हो

क्यूँ इतना दूर चले जाते हो
कि बुलाऊं तो
आवाज़ लौट आती है
हाथ बढ़ाऊँ तो
खाली हथेली लौट आती है

हवा से हो जाओ न ,तुम
तुम दिखो या न दिखो
मेरे इर्द गिर्द रहो
हमेशा ,
महसूस होते रहो.

तुम ज़रूरी हो ..मेरे लिए
ओक्सीज़न की तरह ...

Sunday, February 10, 2013

मूड खराब ..






तुम्हें ज़रा सा भी अंदाज़ा है क्या
कि जब तुम यूँ उदास होते हो
मेरा क्या हाल होता है
तुम्हें उस दुःख की खाई से
बाहर निकालने की हर कोशिश
जब नाकाम होने लगती
तुम्हें ज़रा सा भी अंदाजा है
मेरे पाँव भी फिसलने लगते हैं
उसी खाई की ओर .


तुम्हारी एक मुस्कान के लिए
किये गए सारे जतन
जब बेकार साबित होने लगते हैं
तुम्हें ज़रा सा भी अंदाज़ा है
कि तब अक्सर मेरी हिम्मत भी
जवाब देने लगती है .

तुम्हारे उस मन को वापस ट्रैक पे
लाने के लिए
ऑफ हुए तुम्हारे मूड को फिर से
ठीक करने के लिए
तुम्हें ज़रा सा भी अंदाजा है
अपनी हर तकलीफ किनारे रख
मुझे अपना मूड अच्छा रखने के लिए
कितनी मेहनत करनी पड़ती है .


यूँ भी ......
हम दोनों एक साथ
मूड नहीं खराब कर सकते हैं
तुम्हारी हर बात से,हर चीज़ से,हर मूड से
तुम्हारे सुख से,तुम्हारे दुःख से
मुझे फर्क पड़ता है
क्यूंकि उसी से
मेरा मूड,मेरा रवैया तय होता है .

Saturday, January 19, 2013

झरने को अभिशप्त




ये हरसिंगार के फूल
जब -जब झरते हैं
नारंगी और सफ़ेद
दोनों रंग इनके
मुझपे नशा बन चढ़ते हैं

नारंगी ..
आग सा ..दहकता
तुम्हारी याद दिलाता है
तुम और तुम्हारा प्यार
आँखों के आगे आ जाता है

सफ़ेद..
शांत सी पंखुरियाँ
मेरी लाज की बेडियाँ
ढेरों अनकही बतियाँ
न जाने कितनी मजबूरियां
मेरी जनी ..हमारी दूरियां

हर रोज रात के ..
उस घुप्प अँधेरे में
फूलता है,महकता है..
ज़िंदा होता है हमारा साथ.

सवेरा होते ही
हो जाता है हकीकत से रूबरू
झरने को अभिशप्त ....
हरसिंगार सा हमारा प्यार.

(प्रकाशित)

Sunday, January 13, 2013

अच्छा है न



अच्छा है न
पहुँच तो गयी...तुम्हारी चिट्ठी
फटे हुए किनारे लेकर भी.
फीकी बेरंग हुई स्याही
पीले पड़े कागज़ की पाती.

सालों बाद भी.
उस कागज़ पर ...
तुम्हारे स्पर्श को स्पर्श कर के
मैं तो फिर जवां हो गयी .
मैंने शुक्राने की नमाज़ अदा कर दी.
हमारा प्यार जैसा था..वैसा ही है
हमेशा रहेगा ,यकीन हो चला है.

अच्छा है न कि
मेरी खबर देने वाला
एक कोने से कटा पोस्टकार्ड
तुम तक पहुंचता
उससे पहले
यह मुझ तक पहुँच गयी .

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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