Friday, March 15, 2013

बसंती


बसंती बयार
कोयल की पुकार
सरसों महकता हुआ
टेसू दहकता हुआ
बौराये आम
दरकिनार काम
अलसाए तन
पगलाये मन
अनमने से हम
और उस पर तेरी याद
न जाने क्या क्या
गुल खिलाती हुई
है मेरे साथ
कभी करती आबाद
तो कभी बर्बाद

1 comment:

  1. वाह...बहुत सुन्दर ..चटकीले रंगों से रंगी कविता...!

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सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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