Saturday, July 30, 2011

मेरी बेवफाई

.
शाम को आज एक मीटिंग थी
मैं भी वहाँ मौजूद थी
मेरे सामने बैठे
एक सज्जन ने
जेब से सिगरेट निकाली,
सुलगाई ...
इस सुलगी सिगरेट ने
मेरे दिल के भीतर भी
न जाने क्या-क्या सुलगाया .
जब वो धुंआ छोड़ने लगे
मेरी आँखों से अश्क गिरने लगे
धूल भरे यादों के वरक धुलने लगे .
एक बीती कहानी साफ़ हो गयी
जो चाह के भी मैं नहीं भूल पायी

तुम्हारी याद चली आई
साथ उसके मेरी बेवफाई..
मेरी बेरुखी से तुम्हारे दिल के
सभी अरमान धुआं हुए थे
उन जज्बातों की जलती चिता का धुंआ
हम दोनों की आँखों में भर गया था
उसकी राख ...
तुमने तो विसर्जित कर दी ,शायद
पर,आज तक उस राख को दिल में लिए जी रही हूँ.
जिस ज़माने के डर से तब "न" कहा था
उसी ज़माने के डर से आज भी
नाखुश होते हुए भी
खुश होने का अभिनय कर रही हूँ.
दिल की बर्बादी के गम को पीकर
कामयाबी का जश्न मना रही हूँ
मेरे अपने केवल"तुम"थे
तुम्हे ही दुःख देकर
गैरों के साथ मस्ती के जाम टकरा रही हूँ.
तुमको दगा देकर आज भी जिंदा हूँ
अपने इस जीने पे बहुत शर्मिन्दा हूँ

Monday, July 25, 2011

दस वर्ष ...

....

दस वर्षों का एक लंबा अंतराल
उसके बाद
तुमसे यूँ मिल पाना .
आज लगा कि ....
वो दस साल
जो बीत गए...वो गुज़रे नहीं
वह ठहर गए थे हमारे बीच .
बह गए....
तुम्हारी एक छुअन से.
ढह गयी...
अहं की सारी दीवारें .
पिघल गए....
चुप्पी के दर्द जो जम गए थे .
मैं और तुम से हम दोनों
फिर .....
एक बार हो गए है "हम".

Tuesday, July 19, 2011

दरारें दर्द करती हैं


तुम्हारी यादों की बारिश में भीगना
मुझे बहुत अच्छा लगता है
पर,
उस बारिश के बाद
जब विरह की चमकती धूप
मुझे झुलसाती है,तडपाती है
तुम्हारी यादों की नमी को
नरमी से धीरे-धीरे सुखाती है
तब बहुत तकलीफ होती है
क्योंकि
भीग कर सूखने से
मेरे मन की गीली मिट्टी पर
दरारें उभर आती हैं
और वो दरारें बहुत दर्द करती हैं

Saturday, July 16, 2011

सूरज से लगते हो ..

मैंने,आज जो तुमसे कहा
कि ,
तुम मुझे सूरज से लगते हो
तो तुम जोर से हँसे
और लगे पूछने
कि,
तुम्हारा गुस्सा देख कर
मैंने यह तुलना की है क्या?

नहीं..........
ऎसी कोई बात नहीं
तुम मुझे सूरज से इसलिए लगते हो
क्यूंकि
सूरज को लगातार देखने के बाद
और कुछ देखा नहीं जाता .
सब ओर अँधेरा छा  जाता है .
ठीक उसी तरह
तुम्हें देखने के बाद
चहुँ ओर सब धुंधला सा जाता है
तुम्हारे अलावा कुछ नज़र नहीं आता है.

Wednesday, July 13, 2011

ऐसा क्यूँ है????????????????

आज स्कूल की  छुट्टी थी
देर तक सोने के मौके का पूरा फायदा उठाया
अलसाई हुई ,उठी..
अखबार उठाने बाहर गयी..
अखबार देखते देखते,
आँखें मलते मलते
अंदर आ ही रही थी
कि, निगाह पडी एक समाचार पर........
आज ,अलग अलग शहर में
दो  लड़कियों के साथ
हुआ एक सा बर्ताव.
दोनों के चेहरे पर
तेज़ाब फेंक कर
निकल भागे नवयुवक.
जो दम भरते  थे उन लड़कियों से
मोहब्बत करने का
और अपने प्रणय निवेदन के उत्तर में
"ना" नहीं सुन पाए
और कह गए कि मेरी नहीं हुईं
कोई बात नहीं
किसी और की हो पाओ
ऐसा तुम्हें छोडेंगें  नहीं .

शताब्दियों पहले सूपर्नखा ने
प्रणय निवेदन किया था
लक्ष्मण के आगे
तब,
लक्ष्मण ने नाक कान काट दिए थे उसके

बात घूम फिर कर यहीं आती है
कि चाहें लड़की
प्रणय निवेदन करे
या लड़के प्यार का इज़हार  करें
स्वीकृति देने का ,हामी भरने का
या नकारने का अधिकार
केवल पुरुष को है
पर.....................
ऐसा क्यूँ है ???????????

Tuesday, July 12, 2011

जीवन तुम्हारा है

तुमने ...
आज ,
एक मामूली चीज़ को
मेरे मुकाबले में लाकर खडा कर दिया .
मुझे,पूरा यकीन था कि ......
हमारे जीवन में ,
बस एक बिंदु भर की एहमियत वाली
इस चीज़ से तो पक्का मेरा वजूद जीत जाएगा.
पर,भूल गयी
ये हमारा जीवंन मेरे लिए साझा है
तुम्हारे लिए
ये तुम्हारा जीवन है
प्राथमिकताएं तुम्हारी अपनी हैं
आदतें तुम्हारी अपनी हैं
बस,
एक मैं ही अजनबी.
तुमने उस बिंदु से मेरा वजूद ढक दिया
पता नहीं,इस तरह
तुमने किसे जिताया किसे हरा दिया
पर,
मैं खुद से हार गयी
अपने दिल,प्यार,विश्वास से हार गयी
जो बार-बार टूट कर
न जाने कैसे और क्यूँ जुड जाता है
और रास्ता तकता रहता है
एक बार फिर तुम्हारे हाथ ...
...टूटने का

Saturday, July 9, 2011

मन की आवाज़


आज ,
माँ और कामवाली की बहस सुनते सुनते  
एकदम से सब सुनाई देना बंद हो गया
उनके ...मुंह चलते,होंठ हिलते दिखते रहे
सुनाई कुछ नहीं पड़ रहा था
थोड़ी देर बाद  महरी बर्तन मांजने लगी
माँ टी.वी देखने लगी  .
मुझे ,
कुछ कुछ सुनाई पड़ना शुरू हो गया
देखा माँ के होंठ नहीं हिल रहे
वो टी.वी देखते कुछ सोच रही थी
वो मैं सुन पा रही थी
महरी बर्तन मांज रही थी
उसके मन की बातें भी सुनाई पड़ रही थी


महरी...
पता नहीं क्या समझती है...
हर को हफ्ते में एक छुट्टी
हम एक टेम भी ना आये ..तो आफत
हजारों की शराब पी डालेंगे
सौ  रुपिया बढाने को बोलो
तो साली महंगाई है
हम पे चिल्लाती है खाली-पीली
बाकी किसी के आगे जबान नहीं खुलती
साला,सवेरे से उठो..खटो
घर घर जाओ,पैसा कमाओ
तब भी पति की गाली खाओ
ऐश है  इसकी..घर में रहती है
टी.वी.कम्पूटर ..देखती है
कोई काम नहीं करती
तब भी पति को सौ नखरे दिखाती है

माँ...
महंगाई बस जैसे
इनके लिए ही बढ़ी है हमारे लिए नहीं
जब देखो छुट्टी ..
काम कम ,सहूलियतें ज्यादा
वैसे ऐश है इसकी
अपना कमाती है
ज़रा सा कोई कुछ कह दे
तो एक छोड़ दूसरा घर पकड़ लेगी
यहाँ ,कोई कुछ कह दे
धमकी के लिए भी यह कहते नहीं बनता
कि छोड़ देंगे.....
छोड़ दिया तो कहाँ जायेंगे ?
हाँ पति की मार खाती है
पर फिर शाम को दोनों बीडी पीते हैं
रात का खाना साथ खाते हैं


स्त्री......??????????????
इस वर्ग की  भी परेशान
उस वर्ग की भी परेशान

Thursday, July 7, 2011

यादों के जाले

कई दिन से लगातार सफाई कर रही थी....
घर की दीवारों से जाले निकाले 
कोनों की धूल समेटी
हरेक चीज़ झाडी -पोछी
फूलदान का पानी बदला
ऐश-ट्रे की राख पलटी
.....घर चमक रहा है
कितना सुकून मिलता है साफ़-सुथरे घर में

ना जाने क्यूँ ??????????
बस .......
तुम्हारी यादों के जाले
अपने प्यार की राख
दिल में बसी ...तुम्हारी तस्वीर की धूल
इन सब को मैं बुहार कर
बाहर क्यूँ नहीं फेंक पाती ???

बार-बार
अपनी आँखों के पानी से
धो पोंछ कर ,
चमका कर ...
अपने  दिल में फिर से सजा लेती हूँ
क्यूँ?????????????

Monday, July 4, 2011

बारिश में भीगते हुए ...

बारिश में भीगते हुए
बिजली के नंगे तार
उन तारों से लिपटी..
बूँदें सिमटी-सिमटी
तेरी यादें ले  आयीं
कुछ मीठी -मीठी
कुछ कड़वी-कड़वी .

उन बूंदों का एक-एक करके
तार को छोड़ कर चले जाना
बिसरा तार को
ज़मीन को गले लगाना
बिलकुल वैसा ही है
जैसे...तुम्हारे किये वादे.
जब करे,तब करे
आगे चल तुम्हारा ..
उन वादों को एक -एक करके
तोडना या भूलते जाना
और
अपने नए जीवन में
बिना अपराधबोध रमते जाना .

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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