.शाम को आज एक मीटिंग थी
मैं भी वहाँ मौजूद थी
मेरे सामने बैठे
एक सज्जन ने
जेब से सिगरेट निकाली,
सुलगाई ...
इस सुलगी सिगरेट ने
मेरे दिल के भीतर भी
न जाने क्या-क्या सुलगाया .
जब वो धुंआ छोड़ने लगे
मेरी आँखों से अश्क गिरने लगे
धूल भरे यादों के वरक धुलने लगे .
एक बीती कहानी साफ़ हो गयी
जो चाह के भी मैं नहीं भूल पायी
तुम्हारी याद चली आई
साथ उसके मेरी बेवफाई..
मेरी बेरुखी से तुम्हारे दिल के
सभी अरमान धुआं हुए थे
उन जज्बातों की जलती चिता का धुंआ
हम दोनों की आँखों में भर गया था
उसकी राख ...
तुमने तो विसर्जित कर दी ,शायद
पर,आज तक उस राख को दिल में लिए जी रही हूँ.
जिस ज़माने के डर से तब "न" कहा था
उसी ज़माने के डर से आज भी
नाखुश होते हुए भी
खुश होने का अभिनय कर रही हूँ.
दिल की बर्बादी के गम को पीकर
कामयाबी का जश्न मना रही हूँ
मेरे अपने केवल"तुम"थे
तुम्हे ही दुःख देकर
गैरों के साथ मस्ती के जाम टकरा रही हूँ.
तुमको दगा देकर आज भी जिंदा हूँ
अपने इस जीने पे बहुत शर्मिन्दा हूँ
यह क्या कह दिया है आपने निधि जी.
ReplyDeleteदिल में बैचनी सी हो रही है.
कामयाबी का जश्न क्या इसी प्रकार
मनाया जा सकता है?
ये गुजरा हुआ वक़्त भी कितना अजीब होता है....गुजर तो जाता पर....गुजर नहीं पाता....
ReplyDeleteबेहतरीन रचना.....
भावपूर अभिवयक्ति....
ReplyDeleteराकेश जी...जब आप बेवाफई करें,और कामयाब हो के जश्न मनायें.. तो भी ..जिसे आपने धोखा दिया था, कभी ...वो अक्सर याद आता है
ReplyDeleteकुमार...थैंक्स!!सच में बीत के भी वक्त गुजर नहीं पाता .
ReplyDeleteसुषमा जी ...बहुत बहुत शुक्रिया !
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteकविता का अंत हिला देता है।
सादर
बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteखुश होने का अभिनय कर रही हूं
क्या बात है...
दिल के कोने में एक टीस हमेशा ज़िंदा रहती है..हमने कैसे बेवफाई निभाई..!!!
ReplyDeleteशुभ कामनाएँ..!!!
अपनी बेवफाई कि बात कौन कहता है ..बहुत हिम्मत चाहिए ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteमेरे अपने तुम थे .... आह !
ReplyDeleteबहुत ही गहरी बात कह दी।
ReplyDeleteआपकी रचना आज तेताला पर भी है ज़रा इधर भी नज़र घुमाइये
http://tetalaa.blogspot.com/
wah!behatreen rachna nidhi ji,ji haan kabhi kabhi apni thodi si befkoofi se hum apni keemti cheez kho dete hai vo bhi bas zamane ke dar se.
ReplyDeletebahut khoob....
ReplyDeleteजिन्दगी के एक ऐसे सच को सामने रखा जो हर इंसान चाह कर भी कभी स्वीकार नहीं करता
ReplyDeleteआभार आपका ...अपने विचार यहाँ सबके साथ साँझा करने के लिए
बेहद भावमयी और खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
koi baat nahi
ReplyDeletenidhi ji kabhi kabhi haalat se samjhota karna padta hai
यशवंत जी....थैंक्स!!
ReplyDeleteप्रियंका....ब्लॉग पे आती हो....टिप्पणी करती हो ...अच्छा लगता है.
ReplyDeleteमहेंद्र जी.....शुक्रिया !!
ReplyDeleteप्रियंका राठौर..धन्यवाद!!
ReplyDeleteसंगीता जी...आभार !!
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी......तहे दिल से शुक्रिया !!
ReplyDeleteवंदना जी....आपका शुक्रिया!
ReplyDeleteसुनीला जी....सही कहा ,आपने .अधिकतर हम लोग अपनी जिद,अहं और बेवकूफी के कारण ...बहुत कुछ खो देते हैं...इस जीवन में...फिर बाकी उम्र पछताते रहते हैं
ReplyDelete... गहरा ख्याल... उम्दा सोच... लाजबाब तर्ज़-ए-बयानी,... बहुत नायाब रचना है निधि..
ReplyDeleteनिभाई वफ़ा तमाम उम्र बेवफाई के साथ
मुकर गया आज फिर कोई सफाई के साथ
अनु...अपनी कमियां मानने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए होती है...दूसरे के दोष गिनना जितना आसान है उतना ही मुश्किल अपनी गलतियां देख पाना.....
ReplyDeleteडोरोथी ....शुक्रिया...रचना को पसंद करने के लिए...और वक्त निकल कर टिप्पणी करने के लिए
ReplyDeleteअमित...धन्यवाद !!आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया ...कई लोग प्यार करते हैं ...बेवफा हो जाते हैं...उनकी खासियत यही होती है कि ....प्यार में वफादारी की रस्में नहीं निभा पाए होते हैं तो कोशिश करते हैं कि बेवफाई करें तो उसे पूरी वफ़ा के साथ निभा दें .
ReplyDeleteशर्मा जी....बेवफाई के लिए ...अधिकतर हम सभी अपने को दोष न देकर हालातों को दोष दे देते हैं ...यह सबसे आसान तरीका है...अपनी कमियों को ढंकने के लिए .
ReplyDeleteनिधि, आज बहुत दिन बाद आपका ब्लॉग पढ़ा, "मेरी बेवफाई" रचा पढ़ी , कितनी खूबसूरती से अपनी मज़बूरी की "ना" को बयां किया हैल इसको पढ़ कर मुजहे भी कुछ याद आ गया
ReplyDeleteयह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वो ही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी
चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा
चौदह मिनिट हुए हैं
इसका ख़ाता देखो
चौदह साल ही हैं
इस कलम से पूछो
मेरे इस जिस्म में
तेरा साँस चलता रहा
धरती गवाही देगी
धुआं निकलता रहा
उमर की सिगरेट जल गयी
मेरे इश्के की महक
कुछ तेरी सान्सों में
कुछ हवा में मिल गयी,
देखो यह आखरी टुकड़ा है
ऊँगलीयों में से छोड़ दो
कही मेरे इश्कुए की आँच
तुम्हारी ऊँगली ना छू ले
ज़िंदगी का अब गम नही
इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खेर मांगती हूँ
अब और सिगरेट जला ले !!