Saturday, July 30, 2011

मेरी बेवफाई

.
शाम को आज एक मीटिंग थी
मैं भी वहाँ मौजूद थी
मेरे सामने बैठे
एक सज्जन ने
जेब से सिगरेट निकाली,
सुलगाई ...
इस सुलगी सिगरेट ने
मेरे दिल के भीतर भी
न जाने क्या-क्या सुलगाया .
जब वो धुंआ छोड़ने लगे
मेरी आँखों से अश्क गिरने लगे
धूल भरे यादों के वरक धुलने लगे .
एक बीती कहानी साफ़ हो गयी
जो चाह के भी मैं नहीं भूल पायी

तुम्हारी याद चली आई
साथ उसके मेरी बेवफाई..
मेरी बेरुखी से तुम्हारे दिल के
सभी अरमान धुआं हुए थे
उन जज्बातों की जलती चिता का धुंआ
हम दोनों की आँखों में भर गया था
उसकी राख ...
तुमने तो विसर्जित कर दी ,शायद
पर,आज तक उस राख को दिल में लिए जी रही हूँ.
जिस ज़माने के डर से तब "न" कहा था
उसी ज़माने के डर से आज भी
नाखुश होते हुए भी
खुश होने का अभिनय कर रही हूँ.
दिल की बर्बादी के गम को पीकर
कामयाबी का जश्न मना रही हूँ
मेरे अपने केवल"तुम"थे
तुम्हे ही दुःख देकर
गैरों के साथ मस्ती के जाम टकरा रही हूँ.
तुमको दगा देकर आज भी जिंदा हूँ
अपने इस जीने पे बहुत शर्मिन्दा हूँ

31 comments:

  1. यह क्या कह दिया है आपने निधि जी.
    दिल में बैचनी सी हो रही है.
    कामयाबी का जश्न क्या इसी प्रकार
    मनाया जा सकता है?

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  2. ये गुजरा हुआ वक़्त भी कितना अजीब होता है....गुजर तो जाता पर....गुजर नहीं पाता....

    बेहतरीन रचना.....

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  3. भावपूर अभिवयक्ति....

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  4. राकेश जी...जब आप बेवाफई करें,और कामयाब हो के जश्न मनायें.. तो भी ..जिसे आपने धोखा दिया था, कभी ...वो अक्सर याद आता है

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  5. कुमार...थैंक्स!!सच में बीत के भी वक्त गुजर नहीं पाता .

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  6. सुषमा जी ...बहुत बहुत शुक्रिया !

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  7. बेहतरीन।
    कविता का अंत हिला देता है।

    सादर

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  8. बहुत अच्छी रचना

    खुश होने का अभिनय कर रही हूं
    क्या बात है...

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  9. दिल के कोने में एक टीस हमेशा ज़िंदा रहती है..हमने कैसे बेवफाई निभाई..!!!

    शुभ कामनाएँ..!!!

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  10. अपनी बेवफाई कि बात कौन कहता है ..बहुत हिम्मत चाहिए ..अच्छी प्रस्तुति

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  11. मेरे अपने तुम थे .... आह !

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  12. बहुत ही गहरी बात कह दी।

    आपकी रचना आज तेताला पर भी है ज़रा इधर भी नज़र घुमाइये
    http://tetalaa.blogspot.com/

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  13. wah!behatreen rachna nidhi ji,ji haan kabhi kabhi apni thodi si befkoofi se hum apni keemti cheez kho dete hai vo bhi bas zamane ke dar se.

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  14. जिन्दगी के एक ऐसे सच को सामने रखा जो हर इंसान चाह कर भी कभी स्वीकार नहीं करता

    आभार आपका ...अपने विचार यहाँ सबके साथ साँझा करने के लिए

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  15. बेहद भावमयी और खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  16. koi baat nahi
    nidhi ji kabhi kabhi haalat se samjhota karna padta hai

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  17. यशवंत जी....थैंक्स!!

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  18. प्रियंका....ब्लॉग पे आती हो....टिप्पणी करती हो ...अच्छा लगता है.

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  19. महेंद्र जी.....शुक्रिया !!

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  20. प्रियंका राठौर..धन्यवाद!!

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  21. संगीता जी...आभार !!

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  22. रश्मिप्रभा जी......तहे दिल से शुक्रिया !!

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  23. वंदना जी....आपका शुक्रिया!

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  24. सुनीला जी....सही कहा ,आपने .अधिकतर हम लोग अपनी जिद,अहं और बेवकूफी के कारण ...बहुत कुछ खो देते हैं...इस जीवन में...फिर बाकी उम्र पछताते रहते हैं

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  25. ... गहरा ख्याल... उम्दा सोच... लाजबाब तर्ज़-ए-बयानी,... बहुत नायाब रचना है निधि..

    निभाई वफ़ा तमाम उम्र बेवफाई के साथ
    मुकर गया आज फिर कोई सफाई के साथ

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  26. अनु...अपनी कमियां मानने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए होती है...दूसरे के दोष गिनना जितना आसान है उतना ही मुश्किल अपनी गलतियां देख पाना.....

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  27. डोरोथी ....शुक्रिया...रचना को पसंद करने के लिए...और वक्त निकल कर टिप्पणी करने के लिए

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  28. अमित...धन्यवाद !!आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया ...कई लोग प्यार करते हैं ...बेवफा हो जाते हैं...उनकी खासियत यही होती है कि ....प्यार में वफादारी की रस्में नहीं निभा पाए होते हैं तो कोशिश करते हैं कि बेवफाई करें तो उसे पूरी वफ़ा के साथ निभा दें .

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  29. शर्मा जी....बेवफाई के लिए ...अधिकतर हम सभी अपने को दोष न देकर हालातों को दोष दे देते हैं ...यह सबसे आसान तरीका है...अपनी कमियों को ढंकने के लिए .

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  30. निधि, आज बहुत दिन बाद आपका ब्लॉग पढ़ा, "मेरी बेवफाई" रचा पढ़ी , कितनी खूबसूरती से अपनी मज़बूरी की "ना" को बयां किया हैल इसको पढ़ कर मुजहे भी कुछ याद आ गया


    यह आग की बात है
    तूने यह बात सुनाई है
    यह ज़िंदगी की वो ही सिगरेट है
    जो तूने कभी सुलगाई थी

    चिंगारी तूने दे थी
    यह दिल सदा जलता रहा
    वक़्त कलम पकड़ कर
    कोई हिसाब लिखता रहा

    चौदह मिनिट हुए हैं
    इसका ख़ाता देखो
    चौदह साल ही हैं
    इस कलम से पूछो

    मेरे इस जिस्म में
    तेरा साँस चलता रहा
    धरती गवाही देगी
    धुआं निकलता रहा

    उमर की सिगरेट जल गयी
    मेरे इश्के की महक
    कुछ तेरी सान्सों में
    कुछ हवा में मिल गयी,

    देखो यह आखरी टुकड़ा है
    ऊँगलीयों में से छोड़ दो
    कही मेरे इश्कुए की आँच
    तुम्हारी ऊँगली ना छू ले

    ज़िंदगी का अब गम नही
    इस आग को संभाल ले
    तेरे हाथ की खेर मांगती हूँ
    अब और सिगरेट जला ले !!

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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