Sunday, January 30, 2011

प्यार भी कभी गलत होता है क्या ?

प्यार गलत होता है क्या
ज़िन्दगी कितनी बेमानी है ...........
..................तुम्हारे बगैर.
क्या रिश्ता है हमारा -तुम्हारा
इसका जवाब ढूंढ नहीं पायी
सबने कहा ये गलत है
पर ,तुम कहना
प्यार भी कभी गलत होता है क्या ?
नैतिक-अनैतिक,रीति-रिवाज़ की बातें ,
समाज के ,जाति-धर्म के बंधन ...........
इन सबसे ऊपर नहीं है क्या प्यार?
प्यार जैसे रूहानी  एहसास को
इन सब चक्करों में डालना
उसे नीचे गिराना नहीं है ,क्या ?
गर, हाँ, तो आओ न ..........
वापस मेरी ज़िन्दगी में ......


३० जनवरी २०११


Friday, January 28, 2011

एक बार सोचना ...............

तुमने कहा और मैंने ,मान लिया,बस.
क्यूँ ?...........ये नहीं पूछा .
कारण भी नहीं जानना चाहा
लगा,की तुमने कुछ सोचा होगा
तुम वैसे भी कभी गलत  कहाँ होते हो?
मैंने,
तुम्हारा कहा इसलिए नहीं माना
क्यूंकि मैंने भी वही चाहा था
या मेरा भी वही मन था
पर इसलिए क्यूंकि .............
उससे तुम खुश होते.
एक बार  सोचना की .......
जैसे
मैंने तुम्हारा कहा माना
क्या तुम भी कभी
मेरा कहा ...
बिना किसी क्यूँ के
केवल मेरी ख़ुशी के लिए मानना
सीख पाओगे?????

Tuesday, January 25, 2011

जीवन ....

जीवन ....
रेत हो जैसे
लाख कोशिशों के बाद भी
फिसलता जाता है मुट्ठी से ऐसे
की ,
लगता है सब रीत गया
पर,जब रेत पर पड़ती है फुहार
तो वो भी ठहर जाता है
मुट्ठी में .
कुछ ऐसा ही हुआ
जब ,मेरे इस रेत से जीवन में
तुम्हारे प्यार ने एक ठहराव ला दिया
वरना तो ,
ज़िन्दगी .......
बीतती जा रही थी ....बेमतलब

बिखरती जा रही थी....बेमकसद 

साझा

साझा
तुम्हारे पास , 
मेरे लिए वक़्त . ......
कभी नहीं रहा
न पहले कभी ,न आज
और कल भी शायद ही हो .
तुम्हारी ज़िन्दगी में ,
मेरा -तुम्हारा साझा कुछ नहीं रहा
समय तक नहीं .................
काश ,
तुम मुझे अपना कुछ वक़्त  देते
तो अलगाव का ये दर्द
हम यूँ न भोग रहे होते................



डायलाग

मोनोलाग /डायलाग
जी करता है .....................
की तुमसे कहूं
तुम्हारा साथ अच्छा लगता है .
मन होता है ......................
कि  तुमको छू लूं
तुम्हारा एहसास अच्छा लगता है .
दिल करता है.....................
कि  तुमको पा लूं
तुम्हारा सामीप्य  अच्छा  लगता है .
पर,
सब यूँ ही धरा रह जाता है
क्यूंकि
प्यार दोतरफा होता है ,एकतरफा नहीं
प्रेम की अभिव्यक्ति तभी सार्थक है
जब दोनों ओर समान रूप से हो
क्यूंकि
प्यार कुछ भी होता हो
पर मोनोलाग कभी नहीं होता
प्यार हमेशा डायलाग  होता है.







सेतु प्यार का ..........

मेरा जीवन -नदी का एक किनारा
तुम्हारा जीवन -नदी का दूजा किनारा
मिलना चाहते हुए भी ...............
न मिल पाने की मजबूरी
झूठे अहम्  की इस बहती नदी को
मिलकर हमने पार किया
बना लिया एक सेतु प्यार का ..........
इस किनारे से उस किनारे तक



दूरी कब? दूरी कैसी?दूरी कहाँ?

कोई अगर ये कह दे
कि हमारे मध्य समय ने उत्पन्न की है दूरी ............
तो मैं यह मान सकती नहीं
क्यूंकि
मेरा ख्याल ,तुम्हारे पास
और तुम्हारा ख्याल मेरे पास
जिस पल पहुँच जाता है
समय तो वहीँ रुक जाता है
तो दूरी कब ?दूरी कैसी ? दूरी कहाँ ?
कोई अगर यह  कह दे
कि  तुम्हारी मेरी दूरी
समय की नहीं वरन स्थानों की है दूरी..................
तुम रहते हो दूर वहाँ
और मैं रहती हूँ दूर यहाँ
पर, मैं और तुम तो आ जाते हैं पास
जिस क्षण  कर लें एक दूसरे को याद
तो दूरी कब? दूरी कैसी? दूरी कहाँ?
कोई अगर यह कह दे
कि  स्थान की नहीं वरन अलग व्यक्तित्व होने से दूरी है................
पर, यह तो संभव ही नहीं है
क्यूंकि
तुम मेरी अस्मिता का ही रूप हो
और मैं तुम्हारी पहचान  हूँ
तो दूरी कब? दूरी कैसी?दूरी कहाँ?
कोई अगर यह कह दे
कि  तुम और मैं अलग व्यक्तित्व नहीं वरन भिन्न आत्मा होने से दूर हैं................
पर यह तो संभव ही नहीं है
क्यूंकि
आत्माएं भले भिन्न हों पर परमात्मा तो एक है
और इसीलिए शायद ,
तुम्ही नज़र आते हो मुझे हर ओर
तो दूरी कब? दूरी कैसी? दूरी कहाँ?
ये दूरी: मेरी-तुम्हारी
एक भ्रम है
जो "हमें "
"मैं" और "तुम" में बांटती है
वरना "ऐक्य" है मुझमें -तुममें
"हम" के रूप में
"परम ब्रहम" के स्वरुप में .



मौन

मौन :
हाँ,मौन भी बोलता है.......
अक्सर,
जब हम; मैं और तुम
अकेले होते हैं -
तब,मैंने सुना है
कई बार
कि खामोशियाँ मुखरित होती हैं............
हमारे... हाथों के स्पर्शों में,
आँखों के इशारों में ....
और ये सन्नाटा भी कभी-कभी
अभिव्यक्ति दे देता है
अंतर्मन की व्यथा को.
शब्दों की ज़रुरत नहीं होती
जब तुम पास होते हो
क्यूंकि ,
भावनाओं का साथ पाकर
चुप्पी भी बोलती है
सारे राज़ खोलती है.


२७ अगस्त १९९६

फाँस की चुभन

फाँस की चुभन
उसके अन्दर रह जाने का दर्द.........
जिस किसी के फाँस चुभी हो,
बस,केवल वही समझ सकता है.
ठीक उस फाँस की तरह है .......
तुम्हारा प्यार.
जो दिल में मेरे
कहीं गहरे उतर गया है
ऊपर से तो किसी को नज़र नहीं आता
पर,मुझे उसका दर्द
चुभन की टीस लगातार महसूस होती हैबिना रुके....
.............अविराम

२८ अप्रैल १९९८

Monday, January 24, 2011

शर्तों पर प्यार ...........

शर्तों पर प्यार ...........
असंभव है ,यार!
शर्तों पर प्यार ...........
असंभव है ,यार!
क्यूकि,
शर्तों पे रिश्ता
 निभ नहीं सकता .
भला , कैसे यह संभव है .........
कि,
तुम मुझे यह  दो तो मैं वह दूंगा ,
या तुम यह करो तो मैं वह कर लूँगा.
सम्बन्ध :
जुड़ते हैं वहीँ
निभते चले जाते हैं खुद ही
जहाँ प्राथमिकता होती है
जोड़ने वाले;
समर्पण, प्यार,मनुहार की.
रिश्ते,
बिखरते हैं वहीँ
टूटते जाते हैं स्वयं ही
जहाँ प्राथमिकता होती है
तोड़ने वाले;
शर्तों  के व्यवहार  की .
इसलिए ये तय है
की
शर्तों पर प्यार नहीं होता
शर्तों पर बस व्यापार होता है .

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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