Monday, October 12, 2015

मुल्तवी

मुल्तवी कर दिया है...
तुमसे कुछ कहना
कि पता है ,सुनोगे नहीं
सुन जो लिया तो
समझोगे नहीं
और गर समझ लिया
तो भी...मानोगे कतई नहीं
तो कहने का फायदा नहीं
छोड़ो न...
जाने देते हैं
सारी कही अनकही
बातें छोटी छोटी सी
या कहानी लंबी सी
दरमियां बची...
इक ज़िन्दगी अजनबी सी

Thursday, October 8, 2015

अवसाद

बहुत घने साये हैं
उदासी के
दिन रात सब हैं
बासी से

क़दम फिसलते जा रहे हैं
अवसाद के
इस अंधे कुएं की ओर
रोकना चाह कर भी
चलता नहीं इनपे ज़ोर
अच्छा बुरा लगना सब बंद हो गया है
ऊपर से सब चाक चौबंद हो गया है
पर असलियत कुछ और है
तुम्हारी सख़्त ज़रूरत का दौर है

कोई आस बची नहीं
कोई प्यास रही नहीं
एक आखिरी पुकार
तुम्हारे लिए यार कि
बाहर खींच लो उसे
हताशा के दलदल से
रोज़ मर रहा है
वो न जाने कब से
रात और नींद में उसकी
दुश्मनी हो गयी है
दिन भर अजीब सी उसकी
मनःस्थिति हो गयी है
कौन कौन से कहाँ कहाँ के
कितने ऊल जुलूल ख़्याल हैं
आजकल पास उसके
ढेरों फ़िज़ूल से सवाल हैं

तुम बाँह उसकी थाम लो
खींच के बाहर निकाल लो
वक़्त ज़रा सा भी न खराब करो
सोचो मत, जो करना है अब करो
आस की,विश्वास की डोर थमाओ उसे
आशा का सवेरा दिखाओ उसे
आवाज़ दो यार अब जगाओ उसे

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

Followers