ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Thursday, April 28, 2011
Monday, April 25, 2011
संबंधों के बंध .....
संबंधों के" बंध ".....
सम कहाँ होते हैं???????????
हरदम, यही देखा है...........
जाना,समझा है........
कोई भी,कैसा भी रिश्ता हो
दो लोगों के बीच;
दोनों,
एक दूसरे को बराबर का प्यार नहीं करते
एक कुछ ज़्यादा
दूजा थोड़ा कम.
होता यूँ हैं कि.......
जो शख्स कम प्यार करता है
रिश्ते पे उसकी पकड़ ज्यादा होती है
वो जैसे चाहे,जब चाहे
अपने मन की करवा लेता है
प्यार कि दुहाई देकर,
क्यूँ कि
कम चाहने वाला जानता है दूजे कि कमज़ोर नब्ज़ .
उसकी कम चाहत उसे मजबूती देती है
रिश्ते को तोड़ कर दूर जाने की ....
कुछ नया तलाशने की ............
जबकि जो ज्यादा प्यार करता है
प्यार ही उसकी कमजोरी बन जाता है.
वो जानता है कि वो इस्तेमाल हो रहा है
फिर भी प्यार का एहसास उसे खुश रखता है.
इस सबके बाद भी
ता उम्र वो उसी रिश्ते से जुड़ा रहता है
वहीँ रुका रहता है
जहां,
दूसरा शख्स उसे पीछे छोड़
कब का आगे बढ़ चुका होता है
क्यूंकि ,जिसने कम चाहा वो आज भी ........
अपनी यादों ,बातों से उसपर अपना अधिकार रखता है
और जो चाहता है वो सब देकर भी
अकेला ही रह जाता है ......
यही तो तुमने भी किया
प्यार में,
हमेशा अपने अधिकार मांगे
कभी अपने कर्त्तव्य के बारे में नहीं सोचा.
ठीक ही तो है ............
संबंधों के बंध अक्सर विषम ही होते हैं.......
है ना??????/
सम कहाँ होते हैं???????????
हरदम, यही देखा है...........
जाना,समझा है........
कोई भी,कैसा भी रिश्ता हो
दो लोगों के बीच;
दोनों,
एक दूसरे को बराबर का प्यार नहीं करते
एक कुछ ज़्यादा
दूजा थोड़ा कम.
होता यूँ हैं कि.......
जो शख्स कम प्यार करता है
रिश्ते पे उसकी पकड़ ज्यादा होती है
वो जैसे चाहे,जब चाहे
अपने मन की करवा लेता है
प्यार कि दुहाई देकर,
क्यूँ कि
कम चाहने वाला जानता है दूजे कि कमज़ोर नब्ज़ .
उसकी कम चाहत उसे मजबूती देती है
रिश्ते को तोड़ कर दूर जाने की ....
कुछ नया तलाशने की ............
जबकि जो ज्यादा प्यार करता है
प्यार ही उसकी कमजोरी बन जाता है.
वो जानता है कि वो इस्तेमाल हो रहा है
फिर भी प्यार का एहसास उसे खुश रखता है.
इस सबके बाद भी
ता उम्र वो उसी रिश्ते से जुड़ा रहता है
वहीँ रुका रहता है
जहां,
दूसरा शख्स उसे पीछे छोड़
कब का आगे बढ़ चुका होता है
क्यूंकि ,जिसने कम चाहा वो आज भी ........
अपनी यादों ,बातों से उसपर अपना अधिकार रखता है
और जो चाहता है वो सब देकर भी
अकेला ही रह जाता है ......
यही तो तुमने भी किया
प्यार में,
हमेशा अपने अधिकार मांगे
कभी अपने कर्त्तव्य के बारे में नहीं सोचा.
ठीक ही तो है ............
संबंधों के बंध अक्सर विषम ही होते हैं.......
है ना??????/
Wednesday, April 20, 2011
कैसे कर लेते हो.........?
तुम में एक खूबी है................
पूछोगे नहीं,क्या?
या आश्चर्य से कहोगे नहीं.............कि केवल एक?!
एक बात पूछूँ ,तुमसे..........
कि
तुम यह कैसे कर पाते हो कि ..
जब तुमसे गलती हो जाती है
तब इतनी ढिठाई से .....
तर्क पे तर्क करते रहते हो
बिना शर्मसार हुए .
तुम तब तक यह सब करते हो
जब तक मुझे एहसास नहीं करा देते
कि
जो गलती तुमने करी
उसका कारण भी मैं ही हूँ .
जबकि ,मुझसे कभी कोई भूल हो जाती है
तो , कई दिन तक मुझे
अपराध बोध सालता रहता है .
मैं,
अपनी-तुम्हारी गलतियों का
बोझ ढो-ढो कर............
थक गयी हूँ .
अपनी भूल की पीड़ा ,
तुम्हारी गलती का दंश ,
दोनों,अकेले झेलती हूँ .
कभी तुम्हारा फूला हुआ मुंह ,
कभी तुम्हारा रूखा व्यवहार ,
तो कभी तुम्हारा अबोला सहकर.
बताओ ना.....................
कैसे कर लेते हो तुम यह सब .
(प्रकाशित)
पूछोगे नहीं,क्या?
या आश्चर्य से कहोगे नहीं.............कि केवल एक?!
एक बात पूछूँ ,तुमसे..........
कि
तुम यह कैसे कर पाते हो कि ..
जब तुमसे गलती हो जाती है
तब इतनी ढिठाई से .....
तर्क पे तर्क करते रहते हो
बिना शर्मसार हुए .
तुम तब तक यह सब करते हो
जब तक मुझे एहसास नहीं करा देते
कि
जो गलती तुमने करी
उसका कारण भी मैं ही हूँ .
जबकि ,मुझसे कभी कोई भूल हो जाती है
तो , कई दिन तक मुझे
अपराध बोध सालता रहता है .
मैं,
अपनी-तुम्हारी गलतियों का
बोझ ढो-ढो कर............
थक गयी हूँ .
अपनी भूल की पीड़ा ,
तुम्हारी गलती का दंश ,
दोनों,अकेले झेलती हूँ .
कभी तुम्हारा फूला हुआ मुंह ,
कभी तुम्हारा रूखा व्यवहार ,
तो कभी तुम्हारा अबोला सहकर.
बताओ ना.....................
कैसे कर लेते हो तुम यह सब .
(प्रकाशित)
Wednesday, April 13, 2011
ऊन का गोला
जिंदगी मेरी .....
ऊन के गोले सी .....
बंधी और व्यवस्थित .
तुम आये,
शैतान बच्चे से ......
सब उलझा के रख दिया .
खेल कर
चले भी गए.............
मैं,
आज भी ढूंढ रही हूँ
बीते बरसों के उलझाव में
कहीं तो कोई सिरा मिले
तो अगले बरसों की पहेली सुलझा लूं
मन में तो आता है
जैसे तुम खेलने के बाद
निर्लिप्त,निर्विकार होकर चले गए
मैं क्यूँ वैसी नहीं हो पाती ?
तेरे जुड़ाव के इस उलझाव को काट कर
क्यूँ नहीं अलग कर पाती हूँ?
शायद, गांठों से डरती हूँ
काट कर कहीं भी ,कभी भी ,किसी से भी .........
गर जुडूगी
तब भी क्या गांठों से बच पाऊँगी??????????????????
ऊन के गोले सी .....
बंधी और व्यवस्थित .
तुम आये,
शैतान बच्चे से ......
सब उलझा के रख दिया .
खेल कर
चले भी गए.............
मैं,
आज भी ढूंढ रही हूँ
बीते बरसों के उलझाव में
कहीं तो कोई सिरा मिले
तो अगले बरसों की पहेली सुलझा लूं
मन में तो आता है
जैसे तुम खेलने के बाद
निर्लिप्त,निर्विकार होकर चले गए
मैं क्यूँ वैसी नहीं हो पाती ?
तेरे जुड़ाव के इस उलझाव को काट कर
क्यूँ नहीं अलग कर पाती हूँ?
शायद, गांठों से डरती हूँ
काट कर कहीं भी ,कभी भी ,किसी से भी .........
गर जुडूगी
तब भी क्या गांठों से बच पाऊँगी??????????????????
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