Wednesday, November 30, 2011

विस्मरण ही मुश्किल है ...




मेरी ज़िंदगी बदलने को
वो शख्स आया था .
जीना सिखाया...उसने .
देने का सुख ,
बेहतर है लेने से
मुझे बताया ...उसने.

आज,
जब वो गया कह कर
भूल जाना मुझे....
कोशिश करना दिल से,
कि भूल पाओ मुझे
तो.....
समझा गया
कि
सरल बहुत है..याद करना
विस्मरण ही मुश्किल है .

Friday, November 25, 2011

आज ,कुछ नया करते हैं



आज, कुछ नया करते हैं
बहुत वक्त से प्यार की बात कर रहे हैं
आज, चलो..प्यार करते हैं .

सोचा है....
एक नया संगीत रचेंगे
धडकनों के सुर पर थिरकेंगे
साँसों की ताल पर बहकेंगे
कुछ नया करेंगे....

सोचा है...
एक नया नशा करेंगे
एहसासों के जाम पीयेंगे
जज्बातों के नशे में झूमेंगे
कुछ नया करेंगे .....

सोचा है...
कुछ नया लिखेंगे
तेरे मेरे लबों पर
जो टिके हुए हैं बरसों से
वो हर अलफ़ाज़ बहेंगे
कुछ नया करेंगे ...

सोचा है.....
एक नयी तरह जलेंगे
बदन से बदन तक
जो तपिश जाती है
आज उसमें तपेंगे
कुछ नया करेंगे ...

सोचा है....
नयी मंजिलें तय करेंगे
हरेक दीवार गिरा देंगे
सारी दूरियां मिटा देंगे
कुछ नया करेंगे....

प्यार की बातें बहुत हो चुकीं
आज... बस, प्यार ..सिर्फ प्यार करेंगे
प्यार ही खोजेंगे
प्यार ही पायेंगे
प्यार में ही डूबेंगे
प्यार मं ही तरेंगे
बस..................
प्यार ही करेंगे .

Tuesday, November 22, 2011

बहुत उलझन में हूँ..............


बहुत उलझन में हूँ.....
समझ ही नहीं आ रहा
क्या करूँ?
खुद को खुद से जुदा कर
कैसे जियूं ???

तुम जाने वाले हो ....
बस,इसका है पता...
बाक़ी ,किसी चीज़ का
कोई होश नहीं .

बस, एक सवाल कि
करूँ तो क्या करूँ?????
अभी से थोड़ी दूरी बढ़ा लूँ..
मैं खुद को तैयार कर लूँ..
या चलने दूँ ...
जैसा सब चल रहा है
जो ,जब,जैसा होगा
उस वक्त देखा जाएगा .

दूरी बढाती हूँ..
तुम्हारी भी तकलीफ बढाती हूँ
अपने को भी परेशान पाती हूँ
पर,
जैसे -जैसे तेरे जाने का दिन
करीब आएगा
तुझे मुझसे दूर ले जाने के लिए .
सब सहन करना ...
सह कर जी पाना
मुश्किल नहीं ..
बहुत मुश्किल होगा
मेरे लिए .

खुद को तैयार करूँ...
अधूरेपन के लिए
अभी से
या
उस दिन,उस वक्त का
इंतज़ार करूँ .
तू ही बोल न...
क्या करूँ?????????

Saturday, November 19, 2011

बीती रात


बीती रात
कुछ ऎसी बात हुई ..
बेमौसम बरसात हुई
सच है ..
मुझको खुशियाँ रास नहीं आती
जैसे ...
कुछ लोगों को रिश्ते रास नहीं आते
वो गरजना...वो बरसना मुझ पर
भिगो गया मेरा मन ...

बहुत फिसलन भरी हैं..
प्यार की रहगुज़र
संभालना ...खुद को
कहीं साथ छूट ना जाए
और बस मलाल रह जाए ...ताउम्र

Tuesday, November 15, 2011

मेरी पहचान



कोई पहचान नहीं थी ...तुमसे
अब भी कुछ खास नहीं है...
पता नहीं क्यूँ??
फिर भी ...
मेरे दिल से एक आवाज़ आती है
कि कुछ तो है...
हमारे बीच ...

तनहा होती हूँ
तो...
रूह को कहते सुना है
कि
मेरी ही रूह का एक हिस्सा हो तुम
जो कहीं खो गए थे..
...अब मिले हो जाकर के
मेरा वजूद ...मेरी पहचान हो तुम.

Sunday, November 13, 2011

रेलगाड़ी की पटरियां


मेरे शहर के करीब से होकर....
वो तेरा गुज़रना...
रेल से.
तुम्हारा,
मन नहीं हुआ..
कि,मिलते चलो .
सदा ....
ऐसे ही रहेंगे क्या ,हम?
रेलगाड़ी की पटरियों की तरह
साथ चलते हुए भी..
कभी न मिल पाने को ...मजबूर .

Wednesday, November 9, 2011

जीना चाहती हूँ


जबसे,
गए हो तुम
बहुत तन्हां हूँ मैं .
अपना अता पता भी मालूम नहीं
खुद की कोई खोज खबर नहीं

आओ............
तो, मैं मिलूं खुद से
तुमसे होकर ही...
मैं खुद तक पहुँच पाती हूँ .
जीवन को बहुत ढो चुकी हूँ ,
अब जीवन को जीना चाहती हूँ ....बिंदास !!

Monday, November 7, 2011

बातें जो खत्म नहीं होतीं



आओ ...
एक बार फिर....
सारी रात गुज़ारे ...साथ -साथ
वक्त गुजरने का पता न चले..

ओस की बूंदों से अंजुरी भरें
भोर की पहली किरण हँसे
और कहे...
अभी भी जाग रहे हो...तुम दोनों
सोना नहीं है क्या ?
ऐसी कौन सी बातें हैं
जो कभी खत्म ही नहीं होती .

Saturday, November 5, 2011

पास रहना




तुम खफा हो जाते हो
मेरी गलतियों पर..
अक्सर, मेरी बेवाकूफियों पर
अपनी नाराज़गी भी जतलाते हो .
तुम खूब नाराज़ हो..खफा हो
मुझे कोई दिक्कत न कभी हुई है न होगी
मुझे पता है ,मैं तुम्हें मना लूंगी .

जो कभी यूँ हुआ
कि
तुम नहीं माने...
तो ,
सज़ा देना ....
मैं,हर सज़ा मानने को सहर्ष तैयार रहूंगी
बस...
मुझे छोड़ के दूर ना जाना
सामने रहना,पास रहना..........
और फिर चाहें कोई भी सज़ा दे देना .

Thursday, November 3, 2011

कौन किसका करे त्याग



कहाँ चले गए हो?
क्यूँ चले गए हो?
मत जाया करो...
कुछ अच्छा नहीं लगता .
किसी से क्या...
तुमसे भी, कुछ कह नहीं पाती
अंदर ही अंदर सब सहती रहती हूँ.
न जाने मैं कितनी मौतें मरती हूँ .

तुमसे कुछ कहो,तो तुम अनसुना कर जाते हो .
बात बात पे...मोह त्याग का उपदेश झाड चले जाते हो
मैं पूछती हूँ ..
कि
मोह का,प्रेम का,लगाव का , स्नेह का,अनुराग का त्याग ही क्यूँ किया जाए
तुम क्यूँ नहीं कर देते ..
अपने अहम का ,दंभ का ,उदासीनता का ,निर्मोह्पन का ,वीतराग का त्याग ...
मेरे लिए...

Wednesday, November 2, 2011

अहं की दीवार


तुम आश्चर्य करते हो
कि
तुम्हारे इतना कहने-सुनने....
लड़ने-झगड़ने के बाद भी.....
मुझपे कोई फर्क क्यूँ नहीं पड़ता है
प्रेम का रंग फीका क्यूँ नहीं पड़ता है .
क्यूँ मैं कभी कुछ नहीं कहती तुमसे ?
क्यूँ मैं कभी खफा नहीं होती तुमसे ?

किसी दीवार पे कुछ डालो...फेंको
तो चीज़ या आवाज़ लौट के आती है
पर....
मैंने तो तेरे प्यार में
अपने अहं की
सारी दीवारें गिरा दी हैं .

तेरा सब कहा....किया ....
निकल जाता है आर-पार.
प्रेम से परिपूर्ण मेरे इस अस्तित्व में
क्यूंकि ,
बस,प्यार को स्वीकार करने की क्षमता शेष है .

Tuesday, November 1, 2011

सूजी आँखें



आज रात भर ...........
जम कर बरसेंगे बादल
तुम ,
मानो या न मानो
पर.......
मेरी इन बेमौसम बरसातों से
तुम्हारा.....
रिश्ता पुराना है .
कसम है... मुझे ,तुम्हारी
जो मेरी इन लाल ,सूजी हुई आँखों में
सिवा तेरे नाम के कोई और नाम हो तो .

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

Followers