ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
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सोच का सफ़र कहाँ कहाँ पहुँच जाता है ... बहुत ही अच्छी लगी रचना
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव व्यक्त किए हैं आपने !
ReplyDeleteउफ्फ...ये फासला......
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसाथ रहते हुए भी एक ना होना... बेहद दुखद होता है
ReplyDeleteपरंतु साथ होना भी कम ना होता है।
kshitij par to milte huye dikhenge na....bahut acchi rachna....
ReplyDeleteखुबसूरत भावाभियक्ति....
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी...जान कर अच्छा लगा कि रचना आपको अच्छी लगी .
ReplyDeleteकुमार...उफ़ के अलावा कुछ किया भी नहीं जा सकता ..इस तरह के फासले के लिए .
ReplyDeleteह्यूमन ...थैंक्स!!
ReplyDeleteसंगीता जी...हार्दिक धन्यवाद!!
ReplyDeleteविवेक जी...साथ चल के भी ..मिल न पाने की पीड़ा बहुत होती है
ReplyDeleteप्रियंका....शुक्रिया!!क्षितिज पे मिलना ...आभास ही तो है...वास्तव में मिलन कहाँ?
ReplyDeleteसुषमा....आभार !!
ReplyDeleteक्या कहने, बहुत सुंदर
ReplyDeleteमहेंद्र जी......हार्दिक धन्यवाद !!
ReplyDeleteबहुत दर्द भरा है ..इस कविता में.
ReplyDeleteमायूस न हो ऐ दिल
मिलेंगे जरुर ..इस जहाँ में
नहीं तो उस जहाँ में.
बहुत सुन्दर लिखा आपने.
शुक्रिया......संतोष जी.
ReplyDeleteउम्मीद पे दुनिया कायम है.
आप बहत अच्छा लिखती है मैं आपसे बहुत प्रभावित हूँ निधि जी !!
ReplyDelete...
ReplyDelete"गुज़र गयी..
शहर से तेरे..
ना गुज़र सकी..
मेरी यादों के झरोखों से..
पानी की कतार..!!!"
...
संजय जी...आपका शुक्रिया!!
ReplyDeleteप्रियंका.....यूँ बिना मिले...शहर से गुजरना ..अच्छा है क्या?
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