ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Saturday, November 19, 2011
बीती रात
बीती रात
कुछ ऎसी बात हुई ..
बेमौसम बरसात हुई
सच है ..
मुझको खुशियाँ रास नहीं आती
जैसे ...
कुछ लोगों को रिश्ते रास नहीं आते
वो गरजना...वो बरसना मुझ पर
भिगो गया मेरा मन ...
बहुत फिसलन भरी हैं..
प्यार की रहगुज़र
संभालना ...खुद को
कहीं साथ छूट ना जाए
और बस मलाल रह जाए ...ताउम्र
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बहुत फिसलन भरी हैं..
ReplyDeleteप्यार की रहगुज़र
वाह...क्या बात कही है...लाजवाब...बधाई स्वीकारें
नीरज
नीरज जी...तहे दिल से शुक्रिया....ब्लॉग पर आने..रचना को पढ़ने एवं सराहने के लिए.
ReplyDeleteबहुत फिसलन भरी हैं..
ReplyDeleteप्यार की रहगुज़र
संभालना ...खुद को
कहीं साथ छूट ना जाए
और बस मलाल रह जाए... क्योंकि अक्सरहां यूँ ही होता है
सही कहा बहुत फ़िसलन है इन राहो पर्………सुन्दर भाव समन्वय्।
ReplyDeleteक्या कहने
ReplyDeleteबहुत सुंदर
निधि जी बहुत खूबसूरत कविता |ब्लॉग पर आने के लिए आभार
ReplyDeleteमहेंद्र जी....आभार!!
ReplyDeleteजयकृष्ण जी....थैंक्स!!
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब मैम !
ReplyDeleteसादर
शुक्रिया....यशवंत!!
ReplyDeleteवंदना....हार्दिक आभार.
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी ...सच में...अक्सर,यही मलाल रह जाता है ...शेष
ReplyDeleteसच...थोड़ी मुश्किलों भरी डगर है....साथ रहे...तो मजबूती आएगी...
ReplyDeleteबेहतरीन शब्द रचना.....
ReplyDeleteभींगे हुए रास्ते पर बड़ा संभल-संभल कर चलना पड़ता है।
ReplyDeleteमन को यूँ भिगोना धेरे धीरे मन को सुखा भी देता है .. अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसंगीता जी ...बेवजह कोई भी बरसे...तो मन में कहीं तो सूखा पद ही जाता है
ReplyDeleteमन के भीगे भाव लिए रचना ...बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत फिसलन भरी हैं..
ReplyDeleteप्यार की रहगुज़र
संभालना ...खुद को
कहीं साथ छूट ना जाए
और बस मलाल रह जाए ...ताउम्र
bahut khoob...
कुमार....साथ से तो हर परेशानी हल हो सकती है..
ReplyDeleteसुषमा....हार्दिक धन्यवाद! !
ReplyDeleteमोनिका...थैंक्स!!
ReplyDeleteप्रियंका....बहुत-बहुत शुक्रिया!!
ReplyDeleteवह बहुत खूब लिखा है निधि, सचमुच बहुत फिसलन है.....संभालना.....
ReplyDeleteनिधि जी, महिला सुलभ सुंदर भावनाओं से ओतप्रोत आपकी हर रचना हृदय को झंकृत कर जाती है....बधाई...!!!
ReplyDeleteअंजू...संभल-संभल कर पैर रख रही हूँ इस नयी राह पे...देखो,क्या होता है
ReplyDeleteशंकर जी...बहुत -बहुत आभार,आपका.
ReplyDeleteसंभालना ...खुद को
ReplyDeleteकहीं साथ छूट ना जाए
और बस मलाल रह जाए ...ताउम्र ................संभालना ...खुद को
कहीं साथ छूट ना जाए
और बस मलाल रह जाए ...ताउम्र वाह निधि !आपकी कविता कि पंक्तियों ने दिल के तार झनझना दिए .......
ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजे
ReplyDeleteइक आग का दरिया है और डूब के जाना है
सच निधि! .. कुछ लोगों को खुशियाँ रास नहीं आती .....दर्द रास आते हैं ....चलो दर्द का रस लेते हैं ...आनंद उठाते हैं ...उसी में डूब जाते हैं ............
सरोज....बस यही चाहती हूँ कि मेरा लिखा सबके दिल तक पहुंचे.आपने पसंद किया,आपका शुक्रिया !
ReplyDeleteहाँ तूलिका...बहुत कठिन है राह प्रेम की ...दर्द ज्यादा हैं...पर उस दर्द में भी मज़ा है....उस का ही उत्सव मना लेते हैं.
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