Saturday, November 19, 2011

बीती रात


बीती रात
कुछ ऎसी बात हुई ..
बेमौसम बरसात हुई
सच है ..
मुझको खुशियाँ रास नहीं आती
जैसे ...
कुछ लोगों को रिश्ते रास नहीं आते
वो गरजना...वो बरसना मुझ पर
भिगो गया मेरा मन ...

बहुत फिसलन भरी हैं..
प्यार की रहगुज़र
संभालना ...खुद को
कहीं साथ छूट ना जाए
और बस मलाल रह जाए ...ताउम्र

31 comments:

  1. बहुत फिसलन भरी हैं..
    प्यार की रहगुज़र

    वाह...क्या बात कही है...लाजवाब...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  2. नीरज जी...तहे दिल से शुक्रिया....ब्लॉग पर आने..रचना को पढ़ने एवं सराहने के लिए.

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  3. बहुत फिसलन भरी हैं..
    प्यार की रहगुज़र
    संभालना ...खुद को
    कहीं साथ छूट ना जाए
    और बस मलाल रह जाए... क्योंकि अक्सरहां यूँ ही होता है

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  4. सही कहा बहुत फ़िसलन है इन राहो पर्………सुन्दर भाव समन्वय्।

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  5. निधि जी बहुत खूबसूरत कविता |ब्लॉग पर आने के लिए आभार

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  6. महेंद्र जी....आभार!!

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  7. जयकृष्ण जी....थैंक्स!!

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  8. वाह! बहुत खूब मैम !

    सादर

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  9. शुक्रिया....यशवंत!!

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  10. वंदना....हार्दिक आभार.

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  11. रश्मिप्रभा जी ...सच में...अक्सर,यही मलाल रह जाता है ...शेष

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  12. सच...थोड़ी मुश्किलों भरी डगर है....साथ रहे...तो मजबूती आएगी...

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  13. बेहतरीन शब्द रचना.....

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  14. भींगे हुए रास्ते पर बड़ा संभल-संभल कर चलना पड़ता है।

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  15. मन को यूँ भिगोना धेरे धीरे मन को सुखा भी देता है .. अच्छी प्रस्तुति

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  16. संगीता जी ...बेवजह कोई भी बरसे...तो मन में कहीं तो सूखा पद ही जाता है

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  17. मन के भीगे भाव लिए रचना ...बहुत सुंदर

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  18. बहुत फिसलन भरी हैं..
    प्यार की रहगुज़र
    संभालना ...खुद को
    कहीं साथ छूट ना जाए
    और बस मलाल रह जाए ...ताउम्र
    bahut khoob...

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  19. कुमार....साथ से तो हर परेशानी हल हो सकती है..

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  20. सुषमा....हार्दिक धन्यवाद! !

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  21. मोनिका...थैंक्स!!

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  22. प्रियंका....बहुत-बहुत शुक्रिया!!

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  23. वह बहुत खूब लिखा है निधि, सचमुच बहुत फिसलन है.....संभालना.....

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  24. निधि जी, महिला सुलभ सुंदर भावनाओं से ओतप्रोत आपकी हर रचना हृदय को झंकृत कर जाती है....बधाई...!!!

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  25. अंजू...संभल-संभल कर पैर रख रही हूँ इस नयी राह पे...देखो,क्या होता है

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  26. शंकर जी...बहुत -बहुत आभार,आपका.

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  27. संभालना ...खुद को
    कहीं साथ छूट ना जाए
    और बस मलाल रह जाए ...ताउम्र ................संभालना ...खुद को
    कहीं साथ छूट ना जाए
    और बस मलाल रह जाए ...ताउम्र वाह निधि !आपकी कविता कि पंक्तियों ने दिल के तार झनझना दिए .......

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  28. ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजे
    इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
    सच निधि! .. कुछ लोगों को खुशियाँ रास नहीं आती .....दर्द रास आते हैं ....चलो दर्द का रस लेते हैं ...आनंद उठाते हैं ...उसी में डूब जाते हैं ............

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  29. सरोज....बस यही चाहती हूँ कि मेरा लिखा सबके दिल तक पहुंचे.आपने पसंद किया,आपका शुक्रिया !

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  30. हाँ तूलिका...बहुत कठिन है राह प्रेम की ...दर्द ज्यादा हैं...पर उस दर्द में भी मज़ा है....उस का ही उत्सव मना लेते हैं.

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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