ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Tuesday, November 15, 2011
मेरी पहचान
कोई पहचान नहीं थी ...तुमसे
अब भी कुछ खास नहीं है...
पता नहीं क्यूँ??
फिर भी ...
मेरे दिल से एक आवाज़ आती है
कि कुछ तो है...
हमारे बीच ...
तनहा होती हूँ
तो...
रूह को कहते सुना है
कि
मेरी ही रूह का एक हिस्सा हो तुम
जो कहीं खो गए थे..
...अब मिले हो जाकर के
मेरा वजूद ...मेरी पहचान हो तुम.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अब जो मिले हो...साथ ही रहना
ReplyDeleteगज़ब की पंक्तियाँ हैं।
ReplyDeleteसादर
हाँ....रश्मिप्रभा जी ...मिल के जुदा न हो
ReplyDeleteयशवंत...रचना को पसंद करने हेतु,धन्यवाद ! !
ReplyDelete.अब मिले हो जाकर के
ReplyDeleteमेरा वजूद ...मेरी पहचान हो तुम...वाह! कुछ शब्द और इतनी गहरी बात कह दी आपने....
सुषमा...शुक्रिया !!
ReplyDeleteसच.....इस वजूद से अलग होकर कोई पहचान मुमकिन भी नहीं....
ReplyDeletekho rahe hai andheron me kahi ...tanhai me hi ruh baaten karti hai hamse ...lajawab
ReplyDeleteहमेशा की तरह लाजवाब रचना...निधि जी !!! बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteकुमार....वजूद के बिना वाकई क्या पहचान?
ReplyDeleteअशोक जी....रात के अँधेरे ..उन गहनतम बातों से मुलाक़ात करा देते हैं जिनसे दिन में हम बचते रहते हैं
ReplyDeleteसंजय जी....आपकी बधाई स्वीकारती हूँ...शुक्रिया!!
ReplyDeleteमेरी ही रूह का एक हिस्सा हो तुम
ReplyDeleteजो कहीं खो गए थे..
...अब मिले हो जाकर के
मेरा वजूद ...मेरी पहचान हो तुम.
jiski yahi pahchaan kho jae to ?
कई बार उम्र गुजार जाती है पहचान नहीं मिलती ... और अगर मुश्किल से मिले तो खोना नहीं चाहिए ... पूरा प्रयास कर अपना वजूद बना के रखना जरूरी है ...
ReplyDeletebhaut hi gahri aur sundar abhivaykti....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete...
ReplyDelete"वजूद बन गए हो..
मेरे..
ना खबर है हवाओं की..
ना जुस्तजू है फिज़ाओं की..
यूँ ही रहना..
ता-उम्र..
हमनवां बनकर..!!!"
...
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है ... नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 19-11-11 को | कृपया पधारें और अपने अमूल्य विचार ज़रूर दें...
ReplyDelete'मेरा वजूद मेरी पहचान हो तुम '
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण प्रस्तुति |
आशा
आनंद जी...जिसकी यह पहचान गुम हो जाए....वो जिंदा रहेगा ...एक लाश की तरह
ReplyDeleteअपनी पहचान बनाए रखना ...बहुत ज़रूरी है ,दिगंबर जी .
ReplyDeleteसागर....थैंक्स!!
ReplyDeleteप्रियंका........वजूद जो है....वही पहचान रहे..हमेशा.
ReplyDeleteअनुपमा जी...बहुत-बहुत शुक्रिया!!
ReplyDeleteआशा जी...हार्दिक धन्यवाद !!
ReplyDeletebahut hi acchi prastuti hai..
ReplyDeletebahut hi sundar...
रीना जी...आभार !!
ReplyDeleteतनहा होती हूँ
ReplyDeleteतो...
रूह को कहते सुना है
कि
मेरी ही रूह का एक हिस्सा हो तुम
जो कहीं खो गए थे..
बहुत सुन्दर कोमल रचना...
सादर बधाई...
संजय जी....रचना को आपने पसंद किया....हार्दिक धन्यवाद!!
ReplyDeleteNidhi ji kamaal ka likha hai.
ReplyDeletejab dil k tar kisi se judte hain to u hi hota hai.
ReplyDeleteराजेश कुमारी जी.....तहे दिल से शुक्रिया...पसंद करने के लिए
ReplyDeleteअनामिका ...........सही कहा ,आपने .दिल के तार ...जुड जाए ..तो ,ऐसा ही होता है .
ReplyDeleteप्रेरणा जी...शुक्रिया!!
ReplyDeleteमेरी जान फिर कुछ बना ...कुछ पका ...
ReplyDeleteभटक रही थी सालों से
पहचान जो खो गई थी ...
हर चेहरा तलाशती
हर दिल टटोलती
भटकती रही रूह मेरी
और आज ....
जब तुम मिले तो लगा
तलाश भी मुकम्मल हुई
और रूह भी .....
वाह...तुलिका....रूह का मुकम्मल होना किसी भी रिश्ते के लिए चरम है...
ReplyDelete