Tuesday, November 15, 2011

मेरी पहचान



कोई पहचान नहीं थी ...तुमसे
अब भी कुछ खास नहीं है...
पता नहीं क्यूँ??
फिर भी ...
मेरे दिल से एक आवाज़ आती है
कि कुछ तो है...
हमारे बीच ...

तनहा होती हूँ
तो...
रूह को कहते सुना है
कि
मेरी ही रूह का एक हिस्सा हो तुम
जो कहीं खो गए थे..
...अब मिले हो जाकर के
मेरा वजूद ...मेरी पहचान हो तुम.

36 comments:

  1. अब जो मिले हो...साथ ही रहना

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  2. गज़ब की पंक्तियाँ हैं।

    सादर

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  3. हाँ....रश्मिप्रभा जी ...मिल के जुदा न हो

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  4. यशवंत...रचना को पसंद करने हेतु,धन्यवाद ! !

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  5. .अब मिले हो जाकर के
    मेरा वजूद ...मेरी पहचान हो तुम...वाह! कुछ शब्द और इतनी गहरी बात कह दी आपने....

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  6. सुषमा...शुक्रिया !!

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  7. सच.....इस वजूद से अलग होकर कोई पहचान मुमकिन भी नहीं....

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  8. kho rahe hai andheron me kahi ...tanhai me hi ruh baaten karti hai hamse ...lajawab

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  9. हमेशा की तरह लाजवाब रचना...निधि जी !!! बधाई स्वीकारें

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  10. कुमार....वजूद के बिना वाकई क्या पहचान?

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  11. अशोक जी....रात के अँधेरे ..उन गहनतम बातों से मुलाक़ात करा देते हैं जिनसे दिन में हम बचते रहते हैं

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  12. संजय जी....आपकी बधाई स्वीकारती हूँ...शुक्रिया!!

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  13. मेरी ही रूह का एक हिस्सा हो तुम
    जो कहीं खो गए थे..
    ...अब मिले हो जाकर के
    मेरा वजूद ...मेरी पहचान हो तुम.

    jiski yahi pahchaan kho jae to ?

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  14. कई बार उम्र गुजार जाती है पहचान नहीं मिलती ... और अगर मुश्किल से मिले तो खोना नहीं चाहिए ... पूरा प्रयास कर अपना वजूद बना के रखना जरूरी है ...

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  15. bhaut hi gahri aur sundar abhivaykti....

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  16. This comment has been removed by the author.

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  17. ...

    "वजूद बन गए हो..
    मेरे..
    ना खबर है हवाओं की..
    ना जुस्तजू है फिज़ाओं की..
    यूँ ही रहना..
    ता-उम्र..
    हमनवां बनकर..!!!"

    ...

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  18. आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है ... नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 19-11-11 को | कृपया पधारें और अपने अमूल्य विचार ज़रूर दें...

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  19. 'मेरा वजूद मेरी पहचान हो तुम '
    बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति |
    आशा

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  20. आनंद जी...जिसकी यह पहचान गुम हो जाए....वो जिंदा रहेगा ...एक लाश की तरह

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  21. अपनी पहचान बनाए रखना ...बहुत ज़रूरी है ,दिगंबर जी .

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  22. सागर....थैंक्स!!

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  23. प्रियंका........वजूद जो है....वही पहचान रहे..हमेशा.

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  24. अनुपमा जी...बहुत-बहुत शुक्रिया!!

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  25. आशा जी...हार्दिक धन्यवाद !!

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  26. रीना जी...आभार !!

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  27. तनहा होती हूँ
    तो...
    रूह को कहते सुना है
    कि
    मेरी ही रूह का एक हिस्सा हो तुम
    जो कहीं खो गए थे..

    बहुत सुन्दर कोमल रचना...
    सादर बधाई...

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  28. संजय जी....रचना को आपने पसंद किया....हार्दिक धन्यवाद!!

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  29. राजेश कुमारी जी.....तहे दिल से शुक्रिया...पसंद करने के लिए

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  30. अनामिका ...........सही कहा ,आपने .दिल के तार ...जुड जाए ..तो ,ऐसा ही होता है .

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  31. प्रेरणा जी...शुक्रिया!!

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  32. मेरी जान फिर कुछ बना ...कुछ पका ...

    भटक रही थी सालों से
    पहचान जो खो गई थी ...
    हर चेहरा तलाशती
    हर दिल टटोलती
    भटकती रही रूह मेरी
    और आज ....
    जब तुम मिले तो लगा
    तलाश भी मुकम्मल हुई
    और रूह भी .....

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  33. वाह...तुलिका....रूह का मुकम्मल होना किसी भी रिश्ते के लिए चरम है...

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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