Wednesday, May 30, 2012

प्रेम की दातून


मैं तो एक भी दिन
इस दातून की कड़वाहट
के बिना नहीं जी सकती .
मुझे ,आदत हो गयी है,इसकी.
मुझे दरअसल और कुछ नहीं हुआ है
बस,प्यार से ही प्यार सा हो गया है .

ब्रश ,के लिए
तो फिर बाज़ार तक का चक्कर लगाना पड़ेगा...
यूँ भी मेरा मन उस प्लास्टिक में नहीं रुचता.
दातून कितना अपना सा है...
मेरे घर के पीछे जो खाली हिस्सा है न...वहाँ है एक प्रेम का
सॉरी -सॉरी नीम का पेड....दातून की दूकान !!
उसी से तोडती हूँ....चूस के ,चबा के
सारी कड़वाहट से खुद को मांजती हूँ
लोग थूक देते हैं,उसकी कड़वाहट
मैं तो उसे भी पी लेती हूँ

सच कहूँ.......
रोज इसी बहाने जी लेती हूँ
प्रेम से दिन शुरू कर लेती हूँ

Monday, May 28, 2012

हक



जिसे ,जब, जहां जाना है
चला जाए
अबकि,
रोकूंगी नहीं.
थक गयीं हूँ मनुहार करते-करते .

मुझे प्यार है ,तुमसे
तुम पास रहो यह चाहत है
तुम्हारी ज़रूरत है
केवल तुम्हारी आदत है.
उसका रत्ती भर भी अगर ..
...तुम महसूस करते हो
मेरे लिए .
तो ,मुझे पता है कि यहीं रहोगे
मेरे करीब,बहुत करीब.

तुम कहते हो
कोई तुम्हें प्यार नहीं करता ...
मेरे सिवा.
यह सच है कि
कोई और लड़की
भला तुमसे कैसे और क्यूँ प्यार करेगी ?

जब तक मैं हूँ
मेरी साँसों में सांस है
तुम्हें प्यार करने का हक
केवल मेरे पास है .

Saturday, May 19, 2012

भूत


बीती बातें...गुजरी बातें
भूत ..कहते हैं ,इनको.
सही ही कहते हैं न ..
भूत सरीखी ही होती हैं,ये सारी .
एक बार पीछे पड़ जाएँ
तो पीछा नहीं छोडती कभीं .
बीती गुजरी बातों के भूत को
रिफाइंड भाषा में याद कह देते हैं .
यह भूत न दिन देखें न रात
ना सांझ न दोपहर
किसी मौसम से कोई फर्क नहीं पड़ता .
जब मन चाहा पकड़ लिया.... पीछे से
दिल में दर्द हो,आँख नम हो
हर ओर उदासी का आलम हो
तब समझ आता है कि चढ गया
भूत फिर से वर्तमान पे.
ध्यान कहीं न लगे
मन रोने का करे
अजीब सी उलझन हो
बस में न तन मन हो
सब यही देते हैं सलाह कि
झडवा लो किसी से
अब कौन समझाए सबको
कि उस "किसी "को
जो मेरा यह भूत उतारे
यह लोग कहाँ ढूंढ पायेंगे ?

Wednesday, May 16, 2012

प्रेम से खूबसूरत कुछ......नाह रे.



प्रेम को जब तक देखते हैं
दूर से ...
बहुत खूबसूरत और प्यारा लगता है ..हैं न ?!
जब यह घटित हो जाता है
अपने जीवन में
तब, समझ आता है कि
क्यूँ लोग कहते थे ...
किसी को बद्दुआ देनी हो तो कह दो
उसे इश्क हो जाए.
कितनी मुश्किल है हर राह ,हर गली इसकी
कितने दर्द हैं और कितने आंसू.?
कितनी यादें हैं न जाने कितनी फरियादें हैं..
अच्छा कुछ नहीं है क्या, इसमें?

तुमने पहले ही पूछ लिया
वो...जो मैं कहने जा रही थी
कितनी भी परेशानियां हो
या कितनी भी तकलीफें
जिसको एक बार हुआ
वो कहेगा यही....
इससे खूबसूरत दुनिया में
सच्ची कुछ भी नहीं...
सच्ची-मुच्ची ....कसम से.

Monday, May 14, 2012

छुपाना नहीं है


मिलने की बात करते हो
साथ ही साथ डरते हो..
मुझे मिलना है तुमसे वहाँ
जहां कोई डर न हो.
क्यूँ रात के अँधेरे में
सबसे छुपते छुपाते हुए ही मिलें हम ?
क्यूँ नहीं दिन के समय मिलते हम ?

क्यूँ डरते हो सबके सामने आने से
प्यार छिपाते फिरते हो ज़माने से
मुझे ,तुम भले ही ..
आसमान से चाँद तारे तोड़ के मत लाके देना
पर....
मैं तुम्हारी हूँ और तुम मेरे
यह सबके सामने
कहने की हिम्मत रखना .

मुझे सवेरा होते ही
छिपाना नहीं है तुम्हें
मुझे दिखाना है..
बताना है सबको
कि
प्यार करते हैं हम दोनों...
.......एक दूसरे से.
इसमें, पाप जैसा
या गुनाह सरीखा कुछ है क्या?
जो छुप कर ,चोरी-चोरी किया जाए .

Wednesday, May 9, 2012

शुक्रगुजार


उन सब बातों के लिए
तुम शुक्रगुजार हो..मेरे
जिनमें मेरा कोई योगदान नहीं .

मेरे आने से ,तुम्हें छू जाने से ,
तुम्हारे पास होने से ...
अब,तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता .
न तो कोई चिड़िया चहकती है ,
न एक भी सांस मचलती है ,
फूल नहीं महकते हैं ,
जज़्बात नहीं बहकते हैं .

इस सब के लिए तुम अपने आप को देखो
अंदर झांको और खुद को शुक्रिया कह दो
इसके दोषी ..को पहचानो ,
वो कहीं तुम स्वयं ही तो नहीं .

मेरे यकीन को ...
जिस दिन मृत्यु की नींद सुलाया था,तुमने
उस दिन ..
तुम भी तो मर गए थे ...भीतर ही
और पता ही होगा तुम्हें
कि मरे हुए को कुछ महसूस नहीं होता ,कभी.

Tuesday, May 8, 2012

आखिरी बार


दो लोग जब प्यार में होते है
तो हर कुछ दिन बाद
ऐसा कुछ ज़रूर होता है
जिसके कारण ..नाराज़ हुआ जाता है
कहा सुनी हो जाती है
और आखिर में तय किया जाता है कि
ठीक है एक दूसरे को नहीं सुहा रहे
तो तुम अपने रस्ते...मैं अपने रस्ते .
आज यह आखिरी बार है जो
मिल रहे हैं...यहाँ.
इसके बाद से दोनों अपनी -अपनी राह.

आधा एक घंटा नहीं बीतने पाता
और दिल निकल पड़ता है फिर उसी रस्ते
जहां बिछड़े थे अभी ...कभी न मिलने की बात करके .
बीच रास्ते ..मन में आता है..पहले मैं ही क्यूँ?
फिर खुद को खुद ही समझा लेते हैं
क्या फर्क पड़ता है...कौन पहले बोले...
मुझमें उसमें कोई फर्क है क्या?

पहुँचो उस जगह तो दूसरा जना
खडा हुआ होता है पहले ही ...
प्यार में ....आखिरी बार जैसा
कुछ होता है क्या?

Thursday, May 3, 2012

बी प्रैक्टिकल ....


कभी कभी पता होता है
कि कुछ भी नहीं शेष है उस सम्बन्ध में
फिर भी ...
दिल से यह जानते हुए भी
हम मानना नहीं चाहते .

तुम भी समझाते हो अक्सर
फोन पर बार-बार दोहरा कर
ज़िंदगी ऐसे नहीं चला करती
समझा करो...बी प्रैक्टिकल .
बताओ न..
इतनी प्रैक्टिकैलिटी कैसे लाऊं?
कहाँ से लाऊं....?
पिछला सब भूल जाऊं,
और नए में रम जाऊं .

प्रैक्टिकल होना, मतलब यही है ..
तुम्हारी निगाह में न
कि मैं बिना शिकायत करे जियूं
तुम्हारे पास हूँ जब तुम चाहो
वरना मैं दूर रहूँ .
मुस्कुराऊं क्यूंकि इससे लोग सवाल नहीं करते
उनके दिमागों में मुझे तुम्हे लेकर
शक के कीड़े नहीं पलते.

मैं कोशिश कर रही हूँ
बिलकुल सिंसेयर्ली
प्रैक्टिकल होने की
अपने असली मनोभाव छुपाने की
और यूँ ही जीते जाने की .
कामयाब होउंगी या नहीं पता नहीं .
अच्छा इस कोशिश में मेरी कामयाबी के लिए
चलो,दुआ करते हैं....
जोड़ो न...
अपनी एक हथेली ..मेरी हथेली से .

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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