Sunday, January 29, 2012

यादों का दलदल


आज ..
किस राह निकल आयी मैं .
वो गुज़रे दिन और रातें
वो कही - अनकही बातें
कहाँ पहुँच गयी मैं.
कितना रोका मैंने खुद को
कि न पलट के देखूं इनको .
पर..............
देखो, न
अब वापस आना चाहती हूँ
पर,
एक गलत कदम क्या उठा
फंस गयी हूँ ....
तेरी यादों के दलदल में
धंसती जा रही हूँ
निकल पाने का कोई रास्ता नहीं है
बच पाने की कोई एक राह नहीं है
जूझ रही हूँ ...
तेरी यादें
समाती जा रही हैं,मुझमें
मेरा वजूद
पनाह मांग रहा है,तुझमें

बाहर आने की एक तरकीब
तुम आओ करीब
हाथ बढ़ा के थाम लो मेरा हाथ
खींच लो बाहर मुझे यादों से
मीठी सी कुछ नयी यादें
देने के लिए .

Wednesday, January 25, 2012

उन्मुक्त उडो.....


बहुत दिन सहेजने के बाद
आज छोड़ दिया है ,तुम्हें.
अब.......
नया आसमान है
नया एक जहां है
तैयारी करो ..
अपनी नयी उड़ान की
बाध्यता न हो,
पुरानी पहचान की .

उन्मुक्त उडो ,जी भर के जियो
पिछला सब भूल के आगे बढ़ो .
हाँ,बस इतना याद रखना
कि
जब थकने लगो
या हारने लगो ....कभी .
तो हाथ बढ़ाना
मेरा हाथ होगा थामने के लिए तुम्हें..
आस-पास ही कहीं .

Monday, January 23, 2012

बहुत यकीन है ...


मुझे बहुत यकीन है ....तुमपे
और अपने प्यार पे भी .
पर.....
पता नहीं क्यूँ
फिर भी.... जब कभी
यह ख्याल भी मन में आ जाता है
कि,
तुम किसी और के साथ हो
तुम किसी और के पास हो
तो........
कुछ दरक सा जाता है दिल
कसमसा के रह जाता है .

यूँ तो यही सुना है
कि,
प्रेम....
मुक्त करने का नाम है
बाँधना प्रेम नहीं
पर,तब भी ....
क्यूँ ,आखिर क्यूँ????
पढ़ा लिखा ,जाना समझा
सब धरा रह जाता है .
क्यूँ खुद को मैं समझा नहीं पाती हूँ
क्यूँ दिल के आगे हार हार जाती हूँ
बार-बार मन अटक जाता है
तुझे खोने का डर इतना बड़ा है
कि
उसके आगे सब छोटा पड़ जाता है .

Thursday, January 19, 2012

सांस और धडकन की तरह

तुम कहते हो मेरे बिना  कैसे रहोगे?
मानो न मेरी बात
रह लोगे..मेरी जान.
पता है,मुझे ...
हर कोई रह लेता है
हर किसी के बगैर .

मेरी बातें,वो मुलाकातें
होंगे तेरे साथ...दिन -रात.
बताओ न,फिर कैसे अकेले होगे तुम?

मैंने,इतना तो इंतजाम कर दिया है
कि
ताउम्र....
मेरी यादें,प्यार की वो सौगातें
तेरा पीछा कभी नहीं छोडेंगी .

तुम कहीं भी रहो,किसी हाल में रहो
मैं साथ रहूँगी तेरे
सांस और धडकन की तरह .
जो हमारे अन्दर ही रहते हैं .
पर, यूँ कि एहसास नहीं होता
उनके होने का .

Monday, January 16, 2012

जागो मेरे साथ ...



कितनी तन्हां रातें...
तेरे बिन गुजारी हैं.
आज.....
तुझे साथ पाके...
साँसों की सरगम पर ,
धडकनें गीत गा रही हैं .
मेरी उलझनें बढ़ा रहीं हैं .
तुम हो आगोश में..
कह रहे हो कि
बालों में उंगली फिराऊ
माथे को सहलाऊं
आँखों पे तुम्हारी
हल्का सा चुम्बन धरूं
दुलार करूँ ..लाड करूँ..प्यार करूँ
और सुला लूँ तुम्हें अपने काँधे पर .
जबकि,
मैं चाहती हूँ
कि तुम यूँ ही रहो मेरे कंधे पे सर रख के
बातें करें हम जी भर के
तुम जागो मेरे साथ
आज की सारी रात .

Saturday, January 14, 2012

पीला रंग


वो कहता था
बसंती पीला
चटक रंग
जब तुम ओढोगी...
पहनोगी यह रंग
तो कितनी सुन्दर लगोगी .
हाथ पीले होंगे
तो हल्दी भी इतराएगी
तेरे हाथों पे लग के .

मैं सोचती हूँ
कि मुझे ऐसे देखकर
उसके पीले पत्ते से चेहरे को
मैं कैसे निहार पाउंगी?
उसकी ज़र्द हुई बेनूर आँखों को
मैं कैसे देख पाउंगी?
बसंती बयार सा प्यार उसका
कहाँ,कैसे छुपायेगा वो ?

बोलो न.....?
एक ही रंग
दो लोगों पर
अलग -अलग सा...
क्यूँ लगता है ?
अलग-अलग कैसे दिखता है ?

Tuesday, January 10, 2012

चलो न...


चलो न..
हाथ थामो मेरा
कुछ रचते हैं ..


दोनों को पता है
मिलना नहीं बदा है
इसलिए बिना एक दूसरे के
आगे की ज़िंदगी के कटने का
कुछ इंतजाम करें

चलो,जन्म देते हैं
कुछ ऐसे लम्हों को ...
जो यादगार बनें
जिनके सहारे
सारी उम्र कटे .
रोये आँखें तो भी ख्वाब बुने
होठों पे मुस्कान से सजे
तेरे-मेरे साथ के
बेशुमार प्यार के .

Thursday, January 5, 2012

इतना डरते क्यूँ हैं?



स्वीकारने से लोग डरते क्यूँ हैं?
नकारने में इतना वक्त गंवाते क्यूँ हैं?
नहीं जानते,शायद...
कि
स्वीकारने में मुक्ति है,
नकारने में बंधन है .

जब प्रेम स्वाभाविक है
मूल स्वभाव है मनुष्य का ...
तो उसकी स्वीकृति में इतनी हिचक क्यूँ?
उसको मानने में इतनी शर्म क्यूँ?

खुद से डरते हो या समाज से ??

Tuesday, January 3, 2012

मेरा जाड़ा..खूबसूरत हो चला है .



बड़ी लंबी थी वो रातें....
जो तेरे अबोले के साथ गुजारीं.
कितना कुछ जम गया था
हम दोनों के बीच .
सब कुछ सर्द..तनहा सा .

एकाएक ...
प्यार की इस गुनगुनी धूप ने
दिल पे से,
गलतबयानी के कुहासे को हटा दिया है..
तुम्हारे होठों की छुअन ने
जमे हुए बर्फ को पिघला दिया है .
हाथों के स्पर्श की वो गरमी-नरमी
सर्दी में चाय के कप सी
मेरे अंतस को सहला रही है ..

दिल का मौसम खुशगवार हो चला है
मेरा जाड़ा एक बार फिर....
खूबसूरत हो चला है .

Monday, January 2, 2012

तुम्हारे जाने की बात....



तुम्हारे जाने की बात....
पता चली ...कल रात
तबसे यही ख्याल,
बस,यही मलाल
कि....
इतना कम वक्त साथ गुज़ारने को मिला
सब विधाता का ही है ये ... किया धरा

उसमें भी,
कितने पल गंवाएं ..
इन्कार में इज़हार में ..
रूठने में,मनाने में ..

काश.....
उनमें बस प्रेम करते ...
नयी स्मृतियों के बीज रोपते....
पर,मैंने तो सुना है प्रेम में रूठना भी ज़रूरी होता है
बोलो न,
इन ....
रूठने-मनाने के दिन और रातों को
इन्कार इकरार से जुडी सब बातों को
याद रखोगे....क्या????

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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