ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Sunday, January 29, 2012
यादों का दलदल
आज ..
किस राह निकल आयी मैं .
वो गुज़रे दिन और रातें
वो कही - अनकही बातें
कहाँ पहुँच गयी मैं.
कितना रोका मैंने खुद को
कि न पलट के देखूं इनको .
पर..............
देखो, न
अब वापस आना चाहती हूँ
पर,
एक गलत कदम क्या उठा
फंस गयी हूँ ....
तेरी यादों के दलदल में
धंसती जा रही हूँ
निकल पाने का कोई रास्ता नहीं है
बच पाने की कोई एक राह नहीं है
जूझ रही हूँ ...
तेरी यादें
समाती जा रही हैं,मुझमें
मेरा वजूद
पनाह मांग रहा है,तुझमें
बाहर आने की एक तरकीब
तुम आओ करीब
हाथ बढ़ा के थाम लो मेरा हाथ
खींच लो बाहर मुझे यादों से
मीठी सी कुछ नयी यादें
देने के लिए .
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
नयी यादों के साथ पुरानी भी कहाँ भूलती हैं .. अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसंगीता जी ....शुक्रिया!!कुछ भी विस्मृत कहाँ होता है...पर नयी यादें देने के लिए कुछ पल तो वास्तव में ...साथ गुज़ार पायेंगे.
Deleteये यादो का काफिला हूँ ही साथ चलता रहे ...बहुत खूब
ReplyDeleteआमीन !!शुक्रिया!!
Deleteयादो की खुबसूरत अभिवयक्ति.......
ReplyDeleteधन्यवाद!!
Deleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteसच है नयी यादें(बातें) ही पुरानी को ढांक पाती हैं...
सहमत होने के लिए...आभार!!
Deletebahut hi umda...
ReplyDeleteशुक्रिया!!
Deleteबहुत ही सुन्दर कविता निधि जी
ReplyDeleteपसंद करने के लिए धन्यवाद!!
Deleteखूबसूरत अहसास ... मुश्किल है यादों के दलदल से बाहर निकलना... शुभकामनाएं
ReplyDeleteआभार...अहसास की खूबसूरती को सराहने के लिए.
Deleteबाहर आने की एक तरकीब
ReplyDeleteतुम आओ करीब
हाथ बढ़ा के थाम लो मेरा हाथ
खींच लो बाहर मुझे यादों से
मीठी सी कुछ नयी यादें
देने के लिए .
Khoobsurat prastuti.
achchhi tarkeeb bataai hai aapne.
I await you Nidhi ji on my blog.
तरकीब अच्छी लगी इसके लिए थैंक्स!!आपके ब्लॉग पर अवश्य आउंगी .
DeleteNidhi...I have been to your blog quite often and read the pain & the memories in your words. They are deep and so beautiful. Aaj ki is kavita se mai relate kar sakti hu, kyunki kabhi kabhi hamare paas yaadon ke siva kuch nahi hota, ham har pal rote hai magar rone ke baad bhi surkh lal aankhon mai yaadein hi rah jaati hai, aur kuch nahi.
ReplyDeleteI found these lines so profound jaise yaadon mai aap suffocate ho rahe ho.
निकल पाने का कोई रास्ता नहीं है
बच पाने की कोई एक राह नहीं है
Yahi dua hai ki yaadein aapki aankhein gamgeen na kare varan labo par muskurahat le aaye hamesha hi :)
Take care, Shaifali
शेफाली...मुझे अपना लिखना सफल लगने लगता है जब कोई यह कहे कि मैं आपके लिखे से रिलेट कर पाती हूँ .यादें ...दलदल सी ही होती हैं ...जितना निकलने के लिए हाथ पैर मारो..उतना ही अंदर धंसते जाते हैं .
Deleteआप यूँ ही मुझे अपनी दुआ में शामिल रखिये...किसी की दुआओं में होने से सुखद कुछ भी नहीं है .
खूबसुरत यादों का आकर्षण ही कुछ ऐसा होता है...उनसे निकलना चाहते हैं तो भी एक खूबसुरत याद की बिनियाद पर...बेहद उम्दा...भाषा का प्रवाह एक चित्र उकेर देता है कल्पनाओं का...यह आपकी कविता की बहुत बड़ी विशेषता है।
ReplyDeleteआपकी टिप्पणियाँ न जाने क्यूँ स्पैम में ही जा छुपती हैं...उम्मीद करती हूँ ,आपका स्वास्थ्य अब ठीक होगा.मैं भी प्रतीक्षारत थी,आपकी टिप्पणी हेतु.मेरी लेखनी की विशेषता को रेखांकित करने हेतु आभारी हूँ.
Deleteकृपया बिनियाद को बुनियाद पढ़ें...
ReplyDeleteबिगड़े स्वास्थ्य की वजह से विलंब से आना हुआ।
बाहर आने की एक तरकीब
ReplyDeleteतुम आओ करीब
हाथ बढ़ा के थाम लो मेरा हाथ .....waah! aap ki tarkib bhi umda hai aur rachna bhi .....bdhaai aap ko
थैंक्स...तरकीब और रचना...दोनों को पसंद करने के लिए .
Deletenaye blog par aap saadar aamntrit hai
ReplyDeleteगौ वंश रक्षा मंच
gauvanshrakshamanch.blogspot.com
अवश्य आउंगी.
Deleteखूबसूरत अहसास...दिल के जज़्बातों को ज़ुबान दी है आपने
ReplyDeleteनवाजिश!!
Deleteबाहर आने की एक तरकीब
ReplyDeleteतुम आओ करीब
हाथ बढ़ा के थाम लो मेरा हाथ
खींच लो बाहर मुझे यादों से
वाह...बेजोड़ रचना...बधाई
नीरज
नीरज जी...तहे दिल से शुक्रिया.
Deleteबहार आने की दूसरी तरकीब
ReplyDeleteतुम आओ करीब
हाथ बढ़ा कर थाम लो मेरा हाथ
कदम बढ़ा कर चले आओ
इन्ही यादों के दलदल में
साथ मिलकर यादों को जीना भी
कितनी मीठी यादों से भर देगा न
तूलिका ..यह तरकीब तुम ही ढूंढ सकती थी,मेरे लिए.साथ साथ दूंब्ना तरना,मरना जीना ...इससे बढ़िया कुछ हो सकता है क्या ?!
DeleteKoi jawab nahi .... jane q ye daldal achchha lagne laga hai.
ReplyDeleteमज़ा लेते रहिये
Delete.. बहुत सुंदर .. निधि ...
ReplyDeleteख्यालो में जहाँ ‘यादों के दलदल’ मिलते है
वही पर सुना है कविता के कमल खिलते है
सौ फीसदी सही बात कही,आपने.
Deleteबाहर आने की एक तरकीब
ReplyDeleteतुम आओ करीब
हाथ बढ़ा के थाम लो मेरा हाथ
खींच लो बाहर मुझे यादों से
मीठी सी कुछ नयी यादें
देने के लिए ... इतना तो कर सकते हो न