ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Saturday, January 14, 2012
पीला रंग
वो कहता था
बसंती पीला
चटक रंग
जब तुम ओढोगी...
पहनोगी यह रंग
तो कितनी सुन्दर लगोगी .
हाथ पीले होंगे
तो हल्दी भी इतराएगी
तेरे हाथों पे लग के .
मैं सोचती हूँ
कि मुझे ऐसे देखकर
उसके पीले पत्ते से चेहरे को
मैं कैसे निहार पाउंगी?
उसकी ज़र्द हुई बेनूर आँखों को
मैं कैसे देख पाउंगी?
बसंती बयार सा प्यार उसका
कहाँ,कैसे छुपायेगा वो ?
बोलो न.....?
एक ही रंग
दो लोगों पर
अलग -अलग सा...
क्यूँ लगता है ?
अलग-अलग कैसे दिखता है ?
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बिम्बों का सुन्दर संयोजन.
ReplyDeleteसंजीव जी...पसंद करने के लिए शुक्रिया!!
Deleteमकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई…
ReplyDeleteललित जी...आपको भी मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई…
Deleteबोलो न.....?
ReplyDeleteएक ही रंग
दो लोगों पर
अलग -अलग सा...
क्यूँ लगता है ?...मैं भी सोचने लगी हूँ
रश्मि जी...होता है न...ऐसा .
Deleteबोलो न.....?
ReplyDeleteएक ही रंग
दो लोगों पर
अलग -अलग सा...
क्यूँ लगता है ?
अलग-अलग कैसे दिखता है ? behad khoob....apko makarsakranti ki shubhkamnayen..
धन्यवाद!!आपको भी मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं.
Deleteबोलो न.....?
ReplyDeleteएक ही रंग
दो लोगों पर
अलग -अलग सा...
क्यूँ लगता है ?
वाह...बहुत सुन्दर रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
नीरज जी....बहुत-बहुत आभार,आपका.
Deleteबहुत गहन बात कही है ...
ReplyDeleteसुंदर रचना ...
अनुपमा....शुक्रिया,पसंद करने के लिए .
Deleteवाह....
ReplyDeleteसच में..
दृश्य भिन्न है या दृष्टि???
सार्थक रचना.
दृश्य एक ही है ..दो अलग -अलग जगह ...अलग -अलग परिलक्षित हो रहा है .....विद्या!!
Deleteबोलो न.....?
ReplyDeleteएक ही रंग
दो लोगों पर
अलग -अलग सा...
क्यूँ लगता है ?
अलग-अलग कैसे दिखता है ?
.....
अब क्या कर सकते है ...एक ही रंग है ...उस पर अलग है और मुझ पर अलग ...क्या करूँ मैं इस रंगरेज का ..इस रंग का या की खुद का !!
आनंद जी....रंगरेज को क्यूँ दोष दें ?दोष तो रंग का भी नहीं है ..हर हाल अपना ही है.
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति,बिम्ब का अच्छा प्रयोग, रचना अच्छी लगी.....
ReplyDeletenew post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
बिम्ब प्रयोग आपको अच्छा लगा...आभार !!
Deleteधीरेन्द्र जी...धन्यवाद!
Deleteबोलो न.....?
ReplyDeleteएक ही रंग
दो लोगों पर
अलग -अलग सा...
क्यूँ लगता है ?
अलग-अलग कैसे दिखता है ?
मौसम खूब बसंती बना दिया है...
जब प्यार हुआ उससे
हर बात उसकी
लगती है अपनी सी
बसंत की ब्यार सी
जिसने ढंक लिया हो
मेरा तन और मन
मैं उसमें हूं
या वो मुझ में
किसे है परवाह
मनोज जी...इस बसंती बयार को आपने अपने शब्दों से एक नयी उड़ान दी....आभार!!
Deleteपीले रंग का अलग अलग दिखना बखूब
ReplyDeleteदर्शाया है आपने अपनी इस प्रस्तुति में.
आपकी प्रस्तुति में कुछ न कुछ नया
बताने का प्रयास रहता है.
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार.
मकर सक्रांति व लोहड़ी की बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ.
राकेश जी...आपको पीले रंग की यह छटा पसंद आई...हार्दिक धन्यवाद!!
Deletekhoobsurat ehsaas.....
ReplyDeleteकुमार...थैंक्स!!
DeleteBahut khoob...bahut sundar...ek rang do jaise...soch mein daal diya sahi mein....:-)
ReplyDeleteरंग एक ही है...प्रकाश जी...बस,दो अलग जगह ..दो अलग छटा बिखेरता हुआ
Deleteसोचने वाली बात...गहन अभिवयक्ति...
ReplyDeleteसुषमा....सोचिये...सोचिये!
Deleteबोलो न.....?
ReplyDeleteएक ही रंग
दो लोगों पर
अलग -अलग सा...
क्यूँ लगता है ?
अलग-अलग कैसे दिखता है ?
bahut sateek prashn....
प्रियंका....दोनों जगह मनःस्थिति का अंतर होने से यह फर्क सामने दिखता है
Deleteसुंदर बिम्ब सटीक रचना, बेहतरीन प्रस्तुति .....
ReplyDeletenew post--काव्यान्जलि --हमदर्द-
धीरेन्द्र जी...पुनः धन्यवाद!!
Deleteखूबसूरत..!!!!
ReplyDelete...
"जुदा हो जाते हैं..
कुछ रंग..
फिर भी..
रंग बदलते नहीं चाहत के..
ऐसा ही..
रिश्ता तेरा-मेरा..
है ना..!!!"
...
प्रियंका...सुन्दर टिप्पणी !!
Deleteचाहत का रंग अगर फीका पड़ जाए या बदल जाए तो वो कुछ भी होऊ चाहत नहीं हो सकती.
चाहत का यह रिश्ता यूँ ही कायम रहे,हमेशा....यही अदना सी चाहत मेरी .
.... सुंदर पंक्तियाँ ... निधि ..
ReplyDelete... ‘बसंत बहार’ और ‘बसंती बयार’ की बहुत बहुत बधाई ....
... सुना है कि .. ‘बसंती पवन ...’पागल’ .. भी होती है .. ‘पीत रंग’ के साथ साथ ...
.... पर ये तय है की ‘पीत’ का रंग’ हो न हो पर ...’प्रीत का रंग’ .. तो होता है ..
.. तभी तो .. “ओ मेरा रंग दे बंसती चोला ....” गाते कई दीवाने मिलते है आज भी .....
अमित....प्रीत का रंग तो निस्संदेह होता है...बसंती बयार यूँ ही जीवन में प्रीत के रंगों को फैलाती रहे,बस और क्या चाहिए.
Deleteबोलो न.....?
ReplyDeleteएक ही रंग
दो लोगों पर
अलग -अलग सा...
क्यूँ लगता है ?
अलग-अलग कैसे दिखता है
bahut khoob ... ek he rang ke do rang ghazab ..wah!
ब्रजेश.......हार्दिक धन्यवाद...पसंद करने के लिए .
ReplyDeleteरंग का ऐसा अनुचिंतन ....ऐसा विश्लेषण..... पहले सच कभी नहीं पढ़ा-सुना !
ReplyDeleteये सच है कि प्रीत का हर रंग अप्रतिभ करता है....
मिले तो भी....
छूटे तो भी !
प्रेम जब बरसता है....तो सब कैसा हरिअरा जाता है.....धुला-धुला ...खिला-खिला सा !
पत्तों पे लटकी ...इतराई सी बूंदों की झिलमिल....
मेघों से पीछे से इन्द्रधनुष का झूला सा प्रेम ....कभी आगे आ कर दिखता हुआ सा...
कभी पीछे जा कर छुपता हुआ सा ....
सम्मोहित करती उसकी प्रभा .....उसकी मादकता ...... रंगों की अद्भुत छटा !
प्रेम जब जीवन में घटता है....तो मन-प्राण सौन्दर्य बोध से भर जाते हैं....कुछ यूँ ही जैसे...
"बनी हुई थी अटा झोंपड़ी
और चीथड़ों में रानी ...."
.... सुभद्रा कुमारी चौहान
प्रेम की विडम्बना ये भी है कि ......
इसमें जितना उन्माद है......उतना ही विषाद भी !
जितनी प्रफ्फुलता है.......उतना अवसाद भी !
जितनी मुस्कुराहटें हैं....उतने आँसू भी !
और वो रंग जो खिल उठे तो वसंत आ जाए !......जो मुस्कुराए.....तो हज़ारों हरसिंगार झर जाएँ !.......जो सकुचाये तो हल्दी भी इतरा जाए !
वही जब रूठ जाता है....तो पतझर के पीत पात याद आ जाते हैं....
"नीलम-से पल्लव टूट गए,
मरकत-से साथी छूट गए,
अटके फिर भी दो पीत पात
जीवन-डाली को थाम, सखे !
है यह पतझड़ की शाम, सखे !"
..... हरिवंश राय बच्चन
वो रूठे तो जीवन संगीत रूठ जाता है...मौन हो जाता है...
आँखों से झर-झर सारे स्वप्न बिखर कर झर जाते हैं ....... कुछ यूँ कि जैसे ...
"तन बदन का स्पर्श भूला,
पुलक भूला, हर्ष भूला,
आज अधरों से अपरिचित हो गई मुस्कान!
व्याकुल आज तन-मन-प्राण!"
या कि फिर.....
"एक पल था स्वर्ग सुन्दर,
दूसरे पल स्वर्ग खँड़हर,
तीसरे पल थे थकिर कर स्वर्ग की रज छान!
स्वर्ग के अवसान का अवसान!"
... बच्चन
जब स्वप्न टूटते हैं.......तो उसके साथ बहुत कुछ और भी नष्ट हो जाता है.........
मन में टूटे व्यामोहों की किरचियाँ सी चुभतीं हैं.....
और तब ...वही रंग....जो एक पर वसंत सा आता है.....
दुसरे के लिए अवसान का प्रतीक बन जाता है........
ये रंग जो हैं ना....ये बाहर नहीं....अन्दर प्रतिबिंबित होते हैं ...
ये रंग हमारी मनःस्तिथी के प्रिज़्म से गुज़र कर.....हमारे मानस पर झलकते हैं !
हर बार की तरह अनुपम अभिव्यक्ति ......जितनी सरल ...उतनी गहन भी !
मन की संवेदनाओं को जितनी सूक्ष्मता से ....और नितांत नारी ह्रदय की तरलता से तुम देखती-परखती हो......शायद ही कोई और करता हो !
इतनी कोमल, सुन्दर और संवेदनशील कविता के लिए....साधुवाद !
अर्चि दी...सारा काव्य..जैसे आपकी इस एक टिप्पणी में आकर ठहर गया है. आपकी बात बिलकुल सही है कि रंग हमारी आंतरिक स्थिति को द्योतित करते हैं ...वो वैसे ही दीखते हैं...खुशनुमा या दुःख से घिरे,भरे...जैसा हमारा मन होता है.
Deleteआपने इतना सुन्दर लिखा ...हमेशा कि तरह ...पर, इस बार पता नहीं क्यूँ मेरी रूह को छूने में कोई कसर सी रह गयी .मेरी ओर से ही ग्रहण करने में शायद कोई कमी रही जिसकी वजह से मैं आप के मर्म को पूरी तरह समझ नहीं पायी...या अपनी कविता को आपको नहीं समझा पायी.
दी...आप जब भी लिखती हैं तो ना जाने और कितना कुछ जानने को ...सीखने को मिल जाता है.एक ही जगह कितने कवियों,लेखकों का लिखा आप उद्धृत करती हैं जिससे स्वतः ही ज्ञानवर्धन हो जाता है.
सराहने के साथ ही साथ हौसला अफजाई के लिए भी शुक्रिया,आपका.
आर्ची दी ने इतना कुछ लिख दिया ......मेरे लिखने को कुछ नहीं बचता ......इतना ज़रूर कहूँगी .....पीले रंग के ये दो मिजाज़ जिसने महसूस किए हों ...वही इसकी गहराई को महसूस कर सकता है...कि कैसे किसी के पीले हाथों पर इतराती हल्दी किसी की ज़र्द पीली आँखों का आभास देती है.........कैसे बासंती चटक ओढनी...बसंती बयार से किसी के प्यार की याद दिलाती है...और कैसे किसी के पीताभ चेहरे मे ज़र्द चेहरा भी छुपा होता है.........ये पीला रंग मेरे हिसाब से तो प्रेम का हो ही नही सकता ....प्रेम का तो रंग सुर्ख लाल होता है ...ये पीला विकट प्रेम के बाद ..दुःसह विरह का रंग है ..... इसे लिखने के लिए इसकी वेदना को भोगना..आँखें नम करना ज़रूरी है ...............बहुत बधाई निधि इस बेहतरीन रचना के लिए
ReplyDeleteतूलिका..तुमने बिलकुल ठीक कहा ...पीले रंग के ये दो मिजाज़ वही समझ सकता है जिसने इन्हें महसूस किया हो...एक ओर हाथ पीले हो शादी के लिए तैयार होती लड़की ...दूसरी ओर पीले चेहरे और बेनूर आँखों से उसे निहारता कोई ....और उसके ज़र्द हुए चेहरे की वेदना को समझता कोई .धन्यवाद...समझने के लिए.
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