
तुमसे जब बात होती है
तो ,आये दिन
तुम्हारी कोई न कोई बात खराब लग जाती है.
मूड खराब कर लेती हूँ.....
बात करना भी बंद कर देती हूँ.
बात-चीत बंद होते ही .........
मूड पहले से भी कई गुना
खराब कर लेती हूँ.
न इस पहलू चैन,
ना उस करवट आराम
प्यार न हुआ मुसीबत हो गयी
क्या करूँ?.......बोल लूं तुमसे.....
फिर झगड़ने के लिए
या झगडा जारी रखूँ .....ना बोल कर
पता नहीं.....
कुछ समझ नहीं आता.........
तुम ही कहो न........
वैसे सच कहूँ तो इस इन्तेज़ार में हूँ
कि तुम पहल भर कर दो
और मैं तुरंत बोल लूं
न बोल कर मूड खराब करने से
लाख दर्जे बेहतर है
तुमसे बोलते रहकर
लड़ते-झगड़ते,कुछ कहते -सुनते
मूड खराब करना
निधि जी...
ReplyDeleteयह नोक-झोंक, यह तकरार-मनुहार... वाह.... सिर्फ इतना कहूँगा...
दिल भर न जाए कहीं सिर्फ प्यार का मीठा खा-खा के,
स्वाद बदलने को की सही, प्यार की खटास को चखा मैंने...
आपके सुन्दर लेखन के लिए बधाई...
so sweet
ReplyDeleteबिना बोले से तो नॉक झोंक ही अच्छी है ..जीवंतता बनी रहती है
ReplyDeleteआदरणीय निधि जी..
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत ही सुन्दर... कुछ अलग सी रचना
पूरी रचना बहुत ही खूब.कुछ भी छोड़ दूं तो नाइंसाफी होगी.
क्या बात कह दी आपने ...विनय जी...रिश्तों में भी हर तरह के स्वाद को चखना चाहिए .तभी आनंद आता है........
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी ,आप के दो शब्द भी मुझे आनंदित कर जाते हैं..........बहुत आभार कि आप मेरे लिए समय निकालती हैं
ReplyDeleteसंजय जी.............आपकी टिप्पणी का मैं इन्तेज़ार करने लगी हूँ क्यूंकि आप हरेक बार कुछ नए ही तरीके से मेरी रचना कि प्रशंसा करते हैं....हाँ,इतना अवश्य चाहूँगी कि कभी कुछ गलत लगे तो उस को भी इंगित करने से चूकियेगा मत
ReplyDeleteसंगीता जी...........वाकई ,बोलना ज्यादा अच्छा है क्यूंकि बिन बोले से बड़ी बोझिलता हो जाती है..एक अजीब सा भारी सा माहौल हो जाता है........असहनीय
ReplyDelete@ nidhi .........behatareen!! bhai hum issi pasopesh mein hein ke kyaa likhe jo tumhaare dil ko karaar aa jaaye .....aur mera pyaar bhi tum tak panhuch jaaye( iss khoobsurat se ehaas ko yaad dilaane ke liye ,,jo shaadi ke shuruaat ke years mein huaa kartaa tha )................TOO GOOD !!;))♥♥
ReplyDeleteगुंजन ...........शादी के शुरूआती दौर से क्या मतलब है .......मेरे साथ तो अब भी होता है.कोई भी ना बोले तो मेरा कहीं मन नहीं लगता ...पूरा माहौल भारी सा हो जाता है...चारों ओर उदासी फ़ैल जाती है.....बहुत बोझिल हो जाता है....इससे तो लड़ लो पर बोलते रहो...............
ReplyDeleteशुक्रिया.............पसंद करके खुले दिल से सराहने के लिए !
bahut hi sambedanshil rachana.....kehte hai ki kuchh nhi se kuchh achha....behtar hai..or chup rehne se jyda achha hai ki bol bol ke samne bale ko chup kar do.....
ReplyDeleteअर्थिजा..............बोलते रहना.लड़ते झगडते रहना ..चुप्पी से लाख दर्जे बेहतर option हैं.........और अगर बोलते बोलते दूसरे को चुप कर दें तो वो बेहतरीन है.................थैंक्स ,पसंद अकरने के लिए
ReplyDeleteनिधि .... बहुत बेबाकी से आपने जज्बातों को उभारा है.....रिश्तों के तमाम पहलू और समीकरणों पर आपकी 'नज़र' और 'कलम' है .... इसके लिए आपको साधूवाद ...
ReplyDelete....
बस यूंही अनायास मुंह से निकल गया
दिल दुखे किसी का यह इरादा नहीं था
अमित..........बड़ा इन्तेज़ार करवा कर आप भी कमेन्ट करते हैं ...आपको पोस्ट अच्छी लगी...नवाजिश!जीवन में यूँ भी रिश्तों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कुछ नहीं होता ......ऐसा मेरा मानना है.......इसलिए ही बरबस कलम भी उनपे ही अधिक चलती है .........आपके शेर के लिए क्या कहूँ....वो तो हमेशा ही दिल को छु जाते हैं
ReplyDeleteGreat thoughts ... makes one think it over and over again ... giving more meaning and value in each reading .... thanks for sharing it with us
ReplyDeleteतुझसे लडूं या तेरी यादों से
ReplyDeleteदोनों से रंजिश मुझको है
लड़ न सकी तेरी यादों से
और तुझसे भी लड़ना मुश्किल है
Kiran Deep
wow!nidhiji bahut sunder bhavavyakti.maza aa gaya pad kar.laga jaise ye baat mai bhi kahna chahti thi ya koi bji kahna chahega.pad kar anayas hi chehre par mere muskurahat fail gai.kafi der tak man mera prasann raha.dhanyawad nidhji itni sunder kavita se roobaru karwana ke liye.
ReplyDeleteकिरण दीप........आजकल आपकी टिप्पणी का मुझे इन्तेज़ार रहता है...शुक्रिया!!
ReplyDeleteसंदिव जी................धन्यवाद आपका कि आपने रचना को पसंद किया और मेरा सौभाग्य कि आपने कई बार उसे पढ़ा ....
ReplyDeleteसुनीला जी...................मुझे आपकी टिप्पणी बहुत अच्छी लगी क्यूंकि ये जानकार हर्ष हुआ की मेरी रचना पढ़ने के बाद आपका मन प्रसन्न रहा..........ये मेरे लिए एक उपलब्धि की तरह है ........आपका आभार.................
ReplyDeleteअज़ीज़ रिश्तों में लड़ना झगड़ना उतना बुरा नहीं होता , जितना की चुप हो जाना ...
ReplyDeleteOnce again
I want to shout
To laugh
To cry
with you....
http://vanigyan.blogspot.com/2009/12/blog-post_20.html
घर घर की और हर मन की कहानी बयाँ कर दी।
ReplyDeleteस्नेह के समीकरण भी कितने विचित्र होते हैं !!!........एक और एक हमेशा दो क्यों नहीं होते ???........नहीं मालूम !....पर ये सच है कि प्रणय कि परिधि में नहीं होते !!! ......मेरा स्नेह सरल है...स्निग्ध है...मधुर है......पर उसको प्रतियुत्तर भी चाहिये .....प्रतिभाव चाहिए .....संवेदना चाहिए.....कोमलता चाहिए !!!.........और जब तुम वो सब कृपणता पूर्वक अपने ही पास समेट कर रख लेते हो.....तो सच ...बड़ा कष्ट होता है !!!........बहुत खीझती हूँ मैं ......आवेश में...अबोला भी कर लेती हूँ.........बड़ा अपमान सा लगता है........लगता है ....जिसको अपना सर्वस्व दे रहीं हूँ ;....भावों की सारी पूँजी ....प्रेम का सारा वैभव......अंतस का सारी निधि जिस के चरणों में अर्पण कर रही हूँ ......उसको कोई भी अंतर क्यों नहीं पड़ता ?..........क्यों तुम इतने उदासीन रहते हो ??....क्यों मुझे निर्दयता से अनदेखा कर देते हो ???.......क्यों उपेक्षा से बोलते हो ???........वीरेन्द्र मिश्र जी की वो पंक्तियाँ गूँज जातीं हैं मन में.......
ReplyDelete" तुम न समझे गान को ;
मेरे सरल इंसान को ;
दुःख है यही !
क्या तुम्हें कुछ भी पता है ;
अश्रु में क्या - क्या व्यथा है ;
बूँद के सीमान्त में जीवन समूचा डोलता है ;
तुम न समझे मान को ;
जब - तब हुए अपमान को ;
दुःख है यही !!! ............"
और इसी दुःख को जीती हुई....मैं तुमसे अबोला करती हूँ.......रूठती हूँ......नाराज़ होती हूँ.......संकल्प करती हूँ...कि अब नहीं मानूँगी.....बार बार वही अपमान नहीं झेलूंगी !...........पर जब तुम मेरे मौन को ...मेरे रूठने को भी सहज रूप में स्वीकार कर लेते...तो फिर छटपटा जातीं हूँ !.....तुम्हारी हर दूरी ....हर चुप्पी मुझको तोड़ देती है........मेरी सांसें रुक जातीं हैं ...... स्पंदन थम जाता है.......प्राण कुंठित हो जाते हैं........जीवन रसहीन.....अर्थहीन.....प्रयोजनहीन सा लगता है !!! ....सच मुझे न यूँ चैन है....न यूँ चैन !!!........तुम्हारी अवहेलना रुलाती है ....तो तुम्हारा वियोग प्राण लेता है !!!
सोचती हूँ......रोने का कष्ट फिर कहीं वांछित है .....तुम्हारे बिना जीने की यंत्रणा भोगने से !!!........
तुम जो मुझको एक बार मना ही लेते......मेरे अबोले का थोड़ा सा मान ही रख लेते......तो मेरा.......थोड़ा सा भ्रम......थोड़ी सी वंचना....थोड़ी सी भ्रान्ति ही रह जाती !!!
और मैं भी ....अहिल्या कि तरह .......अपने पाषाण मौन से मुक्ति पा लेती ........तुम्हारे आगे सदा के लिए बिखर जाती अवश स्नेह में !!! "
संगीता जी............आपने मेरी रचना को साप्ताहिक काव्य मंच के लिए लिया........आभार!!
ReplyDeleteवानी जी.......आपने बिलकुल सही कहा ...अबोले की टीस ज्यादा कष्टकर होती है..........हमेशा.लड़ो झगडो,रूठो मनाओ पर बोलते रहो.......चुप्पी अच्छी नहीं लगती
ReplyDeleteवन्दना जी...........मुझे भी यही लगता है कि हर कोई कभी न कभी इस दुविधा से अवश्य गुजरा होगा
ReplyDeleteअर्ची दी......आपकी प्रतिक्रया पढ़ने के बाद से मुझे लगने लगा है कि आपकी टिप्पणी के समक्ष तो मेरी रचना भी फीकी है .......क्या लिखती है ,आप.कमाल.......!!
ReplyDelete.अहिल्या कि तरह .......अपने पाषाण मौन से मुक्ति पा लेती ........तुम्हारे आगे सदा के लिए बिखर जाती अवश स्नेह में !!! " क्या बात अख दी,आपने.........अद्वितीय .........!मै खुशकिस्मत हूँ कि मेरी एक साधारण पोस्ट को एक आसाधारण,अनमोल कमेन्ट से आपने नवाज़ दिया
सही निर्णय लिया आपने, वह गीत याद आ रहा है तुम रूठी रहो मै मनाता रहूँ .....
ReplyDeleteनिधि: ज़िन्दगी पेशो पेश से घिरी हुई है, मेरा मानना है की इसका मूल कारण अहंकार है, जो हम सब में होता है, यही अहंकार हमें कभी हठी बनाता है, और मजबूर कर देता है के दूसरा पहल करे.....अहंकार एक ऐसी चीज़ है जिसका कोई उपयोग नहीं है . जब तक ये अहम् है मन की चंचलता नहीं मिट सकती . यह अहम् आपस मैं मनमुटाव पैदा करता है ....
ReplyDeleteबेहतरीन अन्दाज .. अंतर्मन की सूक्ष्मता का बयान
ReplyDeleteसुनील जी...........धन्यवाद मेरे निर्णय को सही ठहराने हेतु .
ReplyDeleteMS............आपने एकदम दुरुस्त फरमाया .....ये अहंकार.अहम,ईगो ...जो भी कह लें ये ही सारे रिश्तों के बिखराव का मूल कारण है .
ReplyDeleteवर्मा जी............ब्लॉग पर आने,रचना को पढ़ने एवं सराहने हेतु आपका आभार .
ReplyDeleteमित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
ReplyDeleteआओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
--
बुधवारीय चर्चा मंच ।