बीस साल मेरे साथ रहा
आज कहीं खो गया ......
ढूंढ-ढूंढ कर थक गयी हूँ
मिलता ही नहीं है ....मेरा फाउंटेन पेन .
वो समझता था मेरे हरेक इशारे को
बाँध लेता था सारे एहसासों को लफ़्ज़ों में
जानता था मेरे हाथ के दवाब को
पहचानता था मेरी उँगलियों के पोरों को .
मेरी हर सफलता-असफलता का साथी कहाँ गया???????
आज दुकान पे जब स्याही वाला कलम माँगा
दुकानदार ने ऐसे देखा कि न जाने क्या मांग लिया मैंने
बोला,ये लीजिए जेल पेन,बालपेन
ये अच्छे रहते हैं
फ़टाफ़ट चलेंगे....
इस्तेमाल कीजिये
फिर फेंक कर दूसरा ले लीजिए.
बिना कलम लिए घर आ गयी
अब सोचती हूँ............
आजकल सम्बन्ध भी ऐसे ही हो गए हैं न ?
इस्तेमाल करो,छोडो,फेंको,दूसरा लो
इस वन नाईट स्टैंड और लिव इन के ज़माने में
मैं कहाँ सालों की बात ले बैठी......
कहाँ अब बरसों का साथ?
कहाँ अब वो साथ कि बातें?
कौन सा निकटता का एहसास ?
कौन से अनकहे जज़्बात ?
कहाँ है वो प्यार ?????
कहाँ वो लगाव ?????
सब छु मंतर होता जा रहा है
फाउन्टेन पेन की तरह .....
हरेक चीज़ इन्स्टेंट मिल जाए
तो वक्त कि बर्बादी कहाँ कि अकलमंदी है ?
महफूज़ कैसे अब रिश्ते रहेंगे ?????
गायब तो नहीं हो जायेंगे धीरे-धीरे ...
आज कहीं खो गया ......
ढूंढ-ढूंढ कर थक गयी हूँ
मिलता ही नहीं है ....मेरा फाउंटेन पेन .
वो समझता था मेरे हरेक इशारे को
बाँध लेता था सारे एहसासों को लफ़्ज़ों में
जानता था मेरे हाथ के दवाब को
पहचानता था मेरी उँगलियों के पोरों को .
मेरी हर सफलता-असफलता का साथी कहाँ गया???????
आज दुकान पे जब स्याही वाला कलम माँगा
दुकानदार ने ऐसे देखा कि न जाने क्या मांग लिया मैंने
बोला,ये लीजिए जेल पेन,बालपेन
ये अच्छे रहते हैं
फ़टाफ़ट चलेंगे....
इस्तेमाल कीजिये
फिर फेंक कर दूसरा ले लीजिए.
बिना कलम लिए घर आ गयी
अब सोचती हूँ............
आजकल सम्बन्ध भी ऐसे ही हो गए हैं न ?
इस्तेमाल करो,छोडो,फेंको,दूसरा लो
इस वन नाईट स्टैंड और लिव इन के ज़माने में
मैं कहाँ सालों की बात ले बैठी......
कहाँ अब बरसों का साथ?
कहाँ अब वो साथ कि बातें?
कौन सा निकटता का एहसास ?
कौन से अनकहे जज़्बात ?
कहाँ है वो प्यार ?????
कहाँ वो लगाव ?????
सब छु मंतर होता जा रहा है
फाउन्टेन पेन की तरह .....
हरेक चीज़ इन्स्टेंट मिल जाए
तो वक्त कि बर्बादी कहाँ कि अकलमंदी है ?
महफूज़ कैसे अब रिश्ते रहेंगे ?????
गायब तो नहीं हो जायेंगे धीरे-धीरे ...
kalam ke sahare jindagi jee li aapne..:)
ReplyDeletebahut khub!
ek kalam...samajhta tha jo sabkuch... akalpniy khyaal , bahut badhiyaa
ReplyDeleteकलाम कलम का कमाल का लगा.
ReplyDeleteदिल और दिमाग कंप्यूटर में लगा है तो रिश्ते भी कम्प्यूटरीकृत ही होंगें न.
आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
आपका मेरे ब्लॉग पर इंतजार है.
कुछ समय निकालिएगा,प्लीज.
यूज एंड थ्रो आज की हकीकत बनता जा रहा है |faunten पेन के माध्यम से बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteमुकेशजी..............ये मेरे साथ एक बार हो चुका है कि मैं निब खरीदने गयी तो दुकानदार ने कहा कहाँ निब स्याही के चक्कर में हैं...ज़माने लद गए इसके.....अब जेल पेन का ज़माना है.......मुह्झे सुन कर कोफ़्त हुई थी ..आपको पढ़ कर अच्छा लगा उससे मेरे ज़ेहन में जो दूकान दार के लिए क्षण भर को कहीं कभी नाराजगी उभरी थी वो शायद कम हो जाए ....
ReplyDeleteरश्मि जी..........बहुत बहुत आभार!
ReplyDeleteराकेशजी.....आपके ब्लॉग पर जल्द ही आऊँगी .....सच रिश्ते भी मशीनी और कम्प्युटर से बेजान हो गए हैं......आजकल.
ReplyDeleteशोभना जी.......आजकल जिधर नज़र उठाईये हर चीज़ जैसे एक बार के इस्तेमाल के लिए ही होती जा रही है......उससे रिश्ता मत जोडीये ........नया लीजिए ........पुरानी चीज़ें,पुराने लोग ,पुराने मूल्य,पुरानी भावनाएं आधुनिकता कि अंधी दौड में हम खोते जा रहे हैं.आप को रचना पसंद आयी ,जान कर मुझे प्रसन्नता हुई......
ReplyDeletemere paas shabd nahi hain is kamaal ki rachna ki tareef ke liye ..
ReplyDeletesheershak hi kitna accha hai....
sach me dukh hota hai aaj ke zamane se!
main kahan aa gaya!
bahut jyada accha lagi mujhe !
maaf kariyega, mere paas bhi shabdon ki kami si hai, jaise rishton me mithas ki !
वाह निधि जी वाह, लोग दुनिया में कलम से लिखा करते हैं, और आज आपने कलम (Fountain Pen) का सहारा ले, आज की इस जिन्दगी की खोखली सच्चाई बयां कर दी...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर, बधाई आपको...
वैसे एक बात आपसे बांटना चाहता हूँ, में हूँ बहुत ही दकियानूसी सा इंसान, आज भी Fountain Pen ही इस्तेमाल किया करता हूँ...
baht khoob nidhu.........waqt ke dhaare mein yun hi beshkimati cheeze khoti jaati hain.....aur hum emotionaly aur strong hote jaate hai......"kahan hai wo pyaar??....wo apnapan........aajtak nahi dikha nidhu........exclnt piece of emotions.......love you hamesha sweety......:)))<3
ReplyDeleteकभी कभी आने वाले समय की कल्पना से सिहर उठती हूँ
ReplyDeleteआज ये कविता बड़ी प्रासंगिक लग रही है..निधि बहुत अच्छे ढंग से तुमने ये बात उठाई [रैनी
आदित्य.........तुम तो खुद भी लिखते रहते हो कम से कम तुम तो न कहो की शब्द नहीं हैं..........खैर ,चलो मुद्दे की बात यह है कि तुम्हे मेरा लिखा पसंद आया .........इसके लिए मेरी ओर से थैंक्स !
ReplyDeleteविनयजी.............मैं भी आज तक फाउंटेन पेन से ही लिखना पसंद करती हूँ ....अपनी कलम से भी बरसों साथ रहने से एक रिश्ता बन जाता है.....आपको रचना अच्छी लगी ,शुक्रिया
ReplyDeleteरेनी......मुझे भी आगे कि कल्पना कर के डर लगता है........हम लोग कहाँ थे कहाँ आ गए हैं अब और कितना आगे जायेगे ...सब मूल्यों को ,भावनाओं को क्या यूँ ही टाक पर रख कर आगे ही बढते जायेंगे...
ReplyDeleteडिम्पल ........वाह जी वाह.........आज आपका लिखा कुछ पढ़ने को मिला कई दिन बाद ........शुक्रिया.......मेहरबानी.भावनात्मक रूप से मज़बूत होने के लिए मुझे ये खोना रास नहीं आता........मैं क्या करूँ?
ReplyDeleteनिधि, आप एक बेहतरीन 'कवियित्री' ही नहीं एक उम्दा 'विचारक' व 'समालोचक' भी है... आपने 'आधुनिक कविता' को नए 'मापदंड', 'संभावानाएं', 'विषय', उपमाएं और मायने प्रदान किये है .... 'फाउनटेन पेन' के माध्यम से आपने रिश्तों में पनपती 'आतुरता' और 'व्यग्रता' को बहुत ही सटीक ढंग से उजागर किया है.. इसके लिए आपको साधुवाद .....
ReplyDelete.....
.....
बनकर रोशनाई कागज़ पर घिसता रहा
लहू था मेरा जो कलम की नोंक से रिसता रहा
अमित...........आपके शेर मुझे लाजवाब कर देते हैं ......आपने कुछ ज्यादा ही तारीफ कर दी है ..........मैं खुद में इतनी काबलियत नहीं देखती हूँ ....तब भी आपकी प्रशंसा हेतु धन्यवाद .
ReplyDeletechiti si bat apke prakash se jan aa gai jo logo k lie sadharan ho uspe lekhak kaise shamil ho jata hai yahi ek lekhak ki khaseyat hai,bahut sundar rachna nidhi ji
ReplyDeleteआदर्शिनी ..................आप मेरे ब्लॉग पर आई....समय निकाल कर पढ़ा,टिप्पणी दी...........रचना को पसंद किया ............इस सबके लिए थैंक्स !
ReplyDeleteनिधि: सच में तुमने कलम की मिसाल जो रिश्तों से दी है, वो कमाल तुम ही कर सकते हो...बेहद खूबसूरत, अद्भुत और बेमिसाल है....आज इस जल्द बाज़ी की दुनिया में इंसान के वक़्त नहीं है, इतनी तेज़ी से भाग रहे हैं सब के उनके लिए न तो रिश्तों के लिए वक़्त है और न ही उन रिश्तों को निभाने के लिए, बिलकुल उसी प्रकार जैसे अब रोशनाई डालने का भी वक़्त नहीं रह गया है.....बस मेरी यही दुआ है की इसी तरह लिखती रहो और खूब नाम कमाओ...खुश रहो हमेशा....
ReplyDeleteMS...............आपकी दुआ सर आँखों पर.....आपने ,जो बात मैं कहना चाह रही थी.......कायदे से समझी है......सच में आज कल रिश्तों और मूल्यों के ह्रास से मन दुखी हो जाता है ...........मैं वाकई एक दिन पेन कि निब लेने गयी थी तब दुकानदार की बात से कि किसके पास वक्त है इंक पेन के लिए........अब निब नहीं मिलती जेल पेन लीजिए........से मन परेशान हो गे था वही यहाँ इस रूप में आपके सामने रखा .........
ReplyDeleteरिश्तों के लिए खूबसूरत बिम्ब तलाशा है आप ने.
ReplyDeleteबहुत ही खूब.
विशाल...........आभार कि आप ब्लॉग पर आये रचना पढ़ने के लिए और आपने अपनी प्रतिक्रया भी दी.
ReplyDeleteपेन के माध्यम से बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteवाह !
इस कविता का तो जवाब नहीं !
संजय जी...मैं शुक्रगुजार हूँ की आपने अपना अमूल्य समय मेरी रचनाओं को पढ़ने के लिए दिया .मैं कोशिश करूंगी की आगे भी अच्छालिखती रहूँ जो आप से सुधी जनों को पसंद आये
ReplyDeleteaap bahut achha likhti hai...bilkul jeevan se judi baaten.
ReplyDeleteब्रजरानी जी.........आप लोगों का स्नेह है जो मुझे इतने अपनेपन से और इज्ज़त से नवाजते हैं .....शुक्रिया......
ReplyDeletebahot hi badhiya....
ReplyDeleteNidhi ji....mai aap ka likha aksar padhati hu...
bahot pasand aata hai...aap ko frd request bheji hai FB par....aap plz accept kar dijiye....kab se intazaar kar rahi hu....
मेरे पास रोज करीब ४-५ फ्रेंड रीकुएस्ट आती हैं..........आप अपना नाम बताईये मैं तुरंत हामी भर दूंगी..............मैं ,दरअसल उतने ही दोस्त रखना चाहती हूँ जितने मैं संभाल पाऊँ..........केवल संख्या बढाने का मुझे शौक नहीं है......आप ब्लॉग देखती रहती हैं जान कर अच्छा लगा..........पढ़ने ,टिप्पणी करने के लिए आपका शुक्रिया..........
ReplyDeleteसब कुछ इंस्टैंट है निधि.... इसीलिए किसी नई चीज़ पर भरोसा नहीं होता.....।
ReplyDeleteतुम्हारी ये कविता बहुत सुन्दर है.....।
दी....इंस्टेंट के ज़माने में .....हम लोग ही पुराने हो चले हैं ,शायद !!
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