Saturday, September 29, 2012

सांझ



ये सांझ ....
मेरी  तुम्हारी
बीतेगी कैसे...
तुम ही कहो न.

उस शाम ,
तुम्हारे बिछड़ने के उस पल से
मेरी सुरमई आँखों में
तैरती लाली
तेरी आँखों में
ठहर गयी है
लाख जतन कर लो
मेरी ये कजरारी आँखें
अब कभी
तुम्हारा पीछा नहीं छोडेंगी .

Thursday, September 27, 2012

सिगरेट



तुम इतने संजीदा क्यूँ हो जाते हो
जब भी मैं यह कहती हूँ
सिगरेट पीने से उम्र कम हो जाती है
छोड़ क्यूँ नहीं देते इसे पीना .
मर जाओगे तो पता है
सांसें भले लेती रहूँ
पर मैं जीते हुए भी
रो-रो मर जाउंगी.

पता है ,तुम मर गए अगर
तो तुम्हारी तस्वीर को नहीं टांगूंगी दीवार पे...
न उसपे कोई माला चढाऊंगी
न ही अगरबत्ती जलाऊँगी ,उसके आगे.
अपनी माला के लोकेट में
पहन लूंगी,तुम्हारी तस्वीर
आस पास रहोगे मेरे दिल के.
अगरबत्ती न जला के
मैं ही सिगरेट पीना शुरू कर दूंगी
जिससे तुम तक पहुँच सके
सिगरेट का धुंआ...
और मैं भी उस धुंए में रहते रहते
जल्दी मर जाऊं
आकर के तुमसे मिल पाऊं.

Wednesday, September 26, 2012

मुखौटे



वो लोग अभागे होते हैं
जिनके पास होते हैं
वो,जो...ओढ़े ही रहते हैं मुखौटे

ताउम्र.

ताउम्र.
उनके आवरणों के टाँके
कच्चे हो भले
पर,उनके मुखौटों के साथ
चेहरे की ,मन की खाल में जज़्ब हो जाते हैं.

नाटक करना ही शगल है जिनका
अंतस के भाव वो कहाँ से लायें ?
ऐसे लोगों का क्या करेगा
तुम्हारा विश्वास ...
तुम्हारा निस्स्वार्थ प्रेम .

वो विश्वास और वो प्रेम
रोयेंगे अपनी किस्मत पे
एक दिन इस्तेमाल करने के बाद
जब फेंक दिया जाएगा
उन्हें ...बेकार समझ
कतरनों के ढेर पर .
तुम अपने लिए सीखना सिलाई का हुनर ...
रखना पक्के धागे तैयार
क्यूंकि जब तुम्हारा यकीं होगा तार-तार
बखिया उखड़ेगी तुम्हारी
तो हो तुम्हारे खुद के पास
ज़ख्म सीने की सारी तैयारी .

दोबारा जीने के लिए
भरोसे को सिलने के लिए
ज़ख्मों को छिपाने के लिए
दर्द को सहने के लिए
माफी की लेस
बड़प्पन के बटन टांक देना
क्यूंकि जैसे तुम नहीं बदलोगे
वैसे ही वो भी नहीं बदलेंगे,कभी.

Monday, September 24, 2012

ओवर हेड




क्यूँ इतना उलझ जाती है ज़िंदगी
कोई सिरा नहीं मिलता कभी-कभी
ढूँढते रहो..
वो एक राह ...
जिस से तुम तक पहुंचा जा सके .
सारी दुश्वारियां....सारे स्पीड ब्रेकर
भगवान ने ....बस इसी राह पे
मेरे लिए बना छोड़े हैं .

यार...चलो न
अपना एक ओवर हेड बना ले
प्यार का पुल ...
जो सीधे ...
फुल स्पीड ....
मुझे तुम तक पहुंचा सके .

Sunday, September 23, 2012

उलाहना



तुमसे जो कहना था
कभी नहीं कहा .
तुमसे जो सुनना चाहा
वो तुमने नहीं कहा .
रिश्ता....हमारा
कोमल एहसासों की
नरम गर्माहट में बस ऐसे ही
पलता रहा...बढ़ता रहा .

तुम अपनी आशंकाओं में घिरे रहे
मुझे दुविधाओं से फुर्सत न मिली
नतीजा उसका यह हुआ
कि हम....
दूर हुए ..मजबूर हुए
अलग-अलग ज़िंदगी जीने को..

आसानी से हमारा संग-साथ
मुमकिन हो सकता था
आज जो सबसे बड़ा दुःख है
वो सबसे बड़ा सुख हो सकता था .
वो चाहते रहना और कह न पाना
सोचने बैठूं ...
तो मलाल सा होने लगता है
खुद पे और तुमपे भी गुस्सा आता है .
सामने हाथ बढाने की देर थी
तू मेरा हो सकता था .
ज़रा सी कोशिश,थोड़ी सी हिम्मत से
सब बदल सकता था.
पता है....इसीलिए अब
जब भी ख़्वाब आते हैं
उनमें भी हम एक दूजे को नहीं पाते हैं
वो सारे सपने भी अपने साथ
सिर्फ ढेर से उलाहने लाते हैं .

Friday, September 21, 2012

स्वीकारने के करीब



सामने जब तक वो रहा

लफ्ज़ भी न निकला मुंह से

वो बोलता रहा...

मैं सुनती रही.

खुली आँखों से

ख़्वाब बुनती रही .


जब सोचा

रात के ख़्वाबों की तामीर कर दूँ

आज अपने दिल कि सारी बातें कह दूँ .

बस कहने को लब हिले ही थे

मन में कुछ फूल खिले ही थे

कि उसने कहा

बातों बातों में वक्त का पता नहीं चला

साढ़े छह हो गए हैं

अँधेरा हो रहा है

मैं चलता हूँ

तुम भी अपने घर जाओ.


मेरे कहते ही कि कुछ कहना है

उसका हाथ हिला कर कहना

अभी चलता हूँ...

...कल फिर मिलते है

...तब सुनूँगा सब

जो भी तुम्हें कहना है .


बार-बार ऐसा ही होता है

मैं स्वीकारने के करीब होती हूँ

और तुम्हें ठीक उसी वक्त

कुछ काम याद आ जाता है .

Wednesday, September 19, 2012

मन्नत






तुम देखना
अबकि बार
जब बस ज़रा धीमे होगी....
उस मोड पर ....
एक पेड है ..बड़ा पुराना सा..
मैंने बांधी है उसपे
अपनी सितारों टंकी
तेरे प्यार सी सुर्ख चुन्नी
कि ...तुम लौट आओगे
शहर में नहीं रम जाओगे .

देखो......कब आओगे???
मन्नत पूरी होती है...होगी
सबके इस यकीं को
कायम रखने के लिए .

वैसे ,उसी मोड पे ....
मैंने देखा है कि
सारे के सारे मवेशी तक
अपना रास्ता भूल जाते हैं.

Tuesday, September 18, 2012

बस,आ जाओ




सीधी सी बात यही है कि..
बस,तुम आओ....
चले आओ...मेरे पास.
कोई मौसम हो...
उससे क्या फर्क पड़ता है ?
मेरे मन के सारे मौसमों पे
तो बरसों बाद भी
एक बस तेरा ही कब्जा है .
मौसम का आना जाना
उससे मुझे क्या लेना देना
तुम्हारा आना....मेरे लिए
है बसंत का आना .
और प्रतीक्षा मत कराओ
कबसे ठहरा है बसंत उस मोड पे,
जहां मुड गए थे तुम मुझे छोड़ के .

Sunday, September 16, 2012

मन हो रहा है ...




आजकल
बहुत मन हो रहा है
कि काश मैं सिगरेट बन जाऊं .
तुम्हारी कमीज़ की उस जेब में रहूं .
जो तुम्हारे दिल के करीब है.

तुम्हारी उँगलियों में फंसी रहूं
और होठों को छूती रहूं .
तसल्ली इस बात की
कि तुम्हारी टेंशन
तुम्हारी खुशी
हर में ...साथ रही .

मैं जलूं भी तो
इस बात का चैन कि
दम तोड़ा तुम्हारे करीब
तुम्हारे हाथों से राख हुई.

गंध मेरी
मेरे जाने के बाद भी रहे
तुम्हारी उँगलियों में
तुम्हारी साँसों में
तुम्हारे ज़ेहन में ...हमेशा.

काश ......
"आमीन" कहो न.

Friday, September 14, 2012

क़सम लगती है



मुहब्बत अपनी इबादत ओ धरम लगती है
इनायतें तेरी खुदा का करम लगती हैं

मुझको लगा था कि मैं भूल चुकी हूँ तुझको
फिर तेरे ज़िक्र पे क्यूँ ज़रा नब्ज़ थमती है

तू मुझे छोड़ गया तो कोई तुझसा न मिला
तेरी परछाईं है जो हमक़दम सी चलती है

तुम्हारे हाथ से जब छूट गया हाथ मेरा
अब खुदाई भी बस एक भरम लगती है

तुम गए तो अब अच्छा नहीं लगता कुछ भी
यूँ तो तन्हाई में यादों की बज़्म सजती है

जो तोड़ गए थे दिल मेरा मुहब्बत में कभी
सुना तो होगा कि उनको भी क़सम लगती है

Thursday, September 13, 2012

तुम पागल हो




कितना कुछ कहना था
कब से रुका हुआ था
अंदर दबा हुआ सा था
मन पे एक बोझा था
अकेले सहना मुश्किल था .
अब.....
सब बह गया है..
उतर गया है सब.

पाँव ज़मीन पे नहीं रहते
दिल उड़ने को करता है
तुमसे मिलने को करता है
सब कुछ तुम्हें दे कर
तुम्हें पा लेने को करता है
अजीब सा हो गया है कुछ
हर घडी न जाने क्या-क्या
ये जी करता है .
कुछ समझ नही आ रहा
किस राह जाने की
तैयारी है इसकी .

जुडना...
तुम्हारे हर सुख ...हर दुःख से
सुनना ...
बातें तुम्हारी कही-अनकही सी
रहना...
तुम्हारे ख़्वाब और ख्यालों में
चाहना...
तुम्हारा प्यार...तुम्हारा विश्वास
मांगना...
तुम्हारा साथ दिन रात
सच कहूँ ,तो.......

रास आ रहा है ये पागलपन मुझे
कि तुम्हारे मुंह से
"तुम पागल हो "सुनना अच्छा लगता है

Wednesday, September 12, 2012

शुक्रिया....प्यार



एक तेरे आ जाने से
कितना कुछ आया है
मेरे जीवन में .

ढेर से डर हैं ...
तुझसे मिल नहीं पाने के .
रोज़ एक नयी आशंका
बिछड जाने की .
बातें ..
कही -अनकही
सरकारी दफ्तर की
पेंडिंग फाइलों सी....
खत्म ही नहीं होतीं .
रतजगे ...
जिनमें एहसासों के तार जुड़े .
आंसू,हँसी,....
इन सब के सिलसिले .

एक मुहब्बत के साथ
कितने सारे बदलाव आ जाते हैं जीवन में .
शुक्रिया,प्यार...
जीवन में यूँ दबे पाँव आने के लिए
हरेक शै पे यूँ छा जाने के लिए.

Sunday, September 9, 2012

न जाने कहाँ गयी ....




जेठ की तपती दुपहरी
गरम साँसों की आवाजाही
लू भी जब जी जला रही
तब...एकाएक
उसने कहा कि
वो दूर जाने वाला है
कुछ दिन का विरह
बीच में आने वाला है .

मैंने कहा,बता कर जाना
उसका कहना कि
मुझसे कहे बिना क्या
संभव होगा उसका जा पाना ?

वो गया ...
जब चला गया...
दुनिया ने बताया .
जब लौटा ..तब भी....
जग ने ही खबर दी,
उसकी वापसी की .
बताने की ज़रूरत उसे
महसूस ही नहीं हुई .
उसकी ज़िंदगी वैसे ही
मेरे बिन भी चलती रही .

बड़े दिन बाद
एक दिन बात हुई
शिकवे हुए शिकायत हुई
पर,
उसकी आवाज़ की ठंडक
कलेजे के खून को जमा गयी
आषाढ़ के महीने में भी
रिश्तों में से गर्माहट
न जाने कहाँ गयी .

Saturday, September 8, 2012

आप्शन



विदा ही एकमात्र आप्शन है
उन सभी के प्रेम के लिए
जो मोहब्बत तो करते हैं ...
पर......
नैतिकता को छोड़ नहीं पाते .

वो भले दुखी हों ,पर
सारा समाज सुखी है..कि
जिनके मन मिले...थे
उनके शरीर को मिलने नहीं दिया.
वो खडा रहा
पहरेदार बन कर
जब भी कभी
मेरे हाथों ने ,होठों ने
तुम्हें छूना चाहा .

सारे संस्कारों की दुहाई दे दी गयी
कि वो चाहते रहे
एक दूसरे को ,हमेशा
पर...मिलन की कोई सूरत न हो.

प्यार ...बस तब तक प्यार है
जब तक ..अलग अलग बिस्तरों पे
हम एक दूसरे को याद करते -करते
अपनी शराफत ..अपने मूल्यों को
साथ लेकर सोते रहे,रोते रहे ....

सारी मर्यादाएं ,वर्जनाएं
साथ साथ चलती रहीं
मेरी तेरी उदासीनता के साथ
और कहती रहीं...
ज्यादा अच्छे लोगों को ..कुछ भी हो
प्रेम ना होने पाए कभी."

Friday, September 7, 2012

सच में....



प्रेम का इतिहास,जुगराफिया
फिजिक्स,केमिस्ट्री
कुछ नहीं पता.
जानती हूँ बस इतना
कि जब वो नहीं होता
तो सब बेस्वाद हो जाता है.

किसी काम में मन नहीं रुचता
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
हरेक लम्हा भारी
सब ओर एक शख्स तारी .
जिसने खुद कभी प्रेम प्याला चखा नहीं
वो इसके तिलिस्म को जान सकता नहीं
जादू है इसमें कुछ जो नज़र आता नहीं
किताबों में पढ़ने से इसका सबक आता नहीं

सच में .....
प्रेम ,आस्वाद है.....
जिसे खुद चखे बिना नहीं जाना जा सकता .

Wednesday, September 5, 2012

सुनो न ..




तुम ,
कुछ कहो न कहो..
कुछ लिखो न लिखो
मुझे वो सारे हुनर आते हैं
जिनसे
तुम्हारी आँखों से होकर
मैं मन तक पहुँच जाती हूँ
और सब अनकहा ...सुन आती हूँ.
सब अनलिखा ...पढ़ आती हूँ .

अब तो कभी नहीं कहोगे न ..
कि "कुछ नहीं हुआ "
"पता नहीं "कह कर नहीं टालोगे
या ...बस,"ऐसे ही "कह कर बहलाओगे नहीं .

Tuesday, September 4, 2012

सड़क




सड़क : खत्म हो जाती हैं यकीनन वहाँ
तुम मेरा हाथ छोडोगे जहां ..
मेरे हमसफ़र !!

सड़क : सब पहुँच जाते हैं उससे होकर
कहीं न कहीं
कभी न कभी
वो रह जाती है ,बस
वहीं की वहीं .

सड़क : थक जाती है सारा दिन
लोगों के कोलाहल से
सन्नाटा पसरता है
चाहती है ये भी
कमर सीधी कर के
आराम करना .

सड़क : बाँट क्यूँ देते हो मुझे
डिवाइडर बना कर
एक मैं ...
दो हिस्से
एक ले जाने वाला कहीं
एक ले आने वाला वहीं

सड़क : पत्थर ,गिट्टी
कोलतार ,मिट्टी
रोड रोलर से दबा दिए
तब भी उभर उभर आती है
गिट्टियां ..
संग चली आती हैं
चप्पल में चिपक कर
तेरी याद सी ढीठ है
ये गिट्टियां भी .

सड़क : हादसों को रोज़ देखती हैं
खून और आंसू समेटती हैं
जब भीड़ तमाशबीन होती है
चाहती है...काश
मोबाइल जो वहाँ गिरा है
उसे उठा मरने वाले के
किसी दोस्त को फोन लगा दे.

सड़क : रेगिस्तान की
सारे समय
रेत से ढकी
अपने किनारों को ढूँढती सी
जो खो गए रेत में .
पर ,वो खुश है रेत में यूँ गुम होकर .

सड़क:मानचित्र में
कहाँ है वो सड़क
जो तुम्हें मुझ तक लाएंगी .
उसके बाद मानचित्र की सारी सडकें
गायब हो जाएँ ,बस .

सड़क: तुम इनसे ही गए हो दूर
मेरे लिए ये हाथ की
वो काली रेखा है
जो मेरी पत्री से
ज़मीन पे उतरी है .

(प्रकाशित)

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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