Saturday, March 30, 2013

डर



स्याह सी खामोशियों के
इस मीलों लंबे सफ़र में
तन्हाइयों के अलावा ..
साथ देने को दूर-दूर तक
कोई भी नज़र नहीं आता .

जी में आता है
कि कहीं तो एक उम्मीद दिखे
कोई तो हो हमक़दम
जिसके हाथों को थाम के चलें.
पर फिर वही डर...वही खटका
मन का ...
कि गर कोई मिल भी गया
तो..................
बीच राह में वो छोड़ कर न जाए
मुझे कुछ और खाली
कुछ और अधूरा सा
न कर जाए .

उनका क्या हो जो लोग जन्मते ही हैं ...ज़िंदगी का सारा खालीपन और उदासी अपने में समेटने के लिए .

Saturday, March 16, 2013

रंगीला बसंत


तेरी यादों की बालियाँ
पक गयी हैं
लहलहाने लगी हैं.
आम पर लद रही है बौर
जैसे संग है मेरा दर्द
मुझे महकाता हुआ .
अलसी के फूलों ने
ले लिया है नीलापन
मेरी हर अंदरूनी चोट से.
सरसों ने उधारी पर लिया है
थोड़ा पीलापन
मेरे ज़र्द चेहरे से
पर ...मज़े की बात है कि
इस सब के बीच में ही
फूल रहा है हमारा प्यार
पलाश सा दहकता हुआ लाल .
कितना रंगीन होता है न बसंत...!!

Friday, March 15, 2013

बसंती


बसंती बयार
कोयल की पुकार
सरसों महकता हुआ
टेसू दहकता हुआ
बौराये आम
दरकिनार काम
अलसाए तन
पगलाये मन
अनमने से हम
और उस पर तेरी याद
न जाने क्या क्या
गुल खिलाती हुई
है मेरे साथ
कभी करती आबाद
तो कभी बर्बाद

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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