Saturday, March 30, 2013

डर



स्याह सी खामोशियों के
इस मीलों लंबे सफ़र में
तन्हाइयों के अलावा ..
साथ देने को दूर-दूर तक
कोई भी नज़र नहीं आता .

जी में आता है
कि कहीं तो एक उम्मीद दिखे
कोई तो हो हमक़दम
जिसके हाथों को थाम के चलें.
पर फिर वही डर...वही खटका
मन का ...
कि गर कोई मिल भी गया
तो..................
बीच राह में वो छोड़ कर न जाए
मुझे कुछ और खाली
कुछ और अधूरा सा
न कर जाए .

उनका क्या हो जो लोग जन्मते ही हैं ...ज़िंदगी का सारा खालीपन और उदासी अपने में समेटने के लिए .

14 comments:

  1. बहुत प्यारे भाव

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  2. बहुत खूब !


    आज की ब्लॉग बुलेटिन क्योंकि सुरक्षित रहने मे ही समझदारी है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. बहुत खूब ...........मन की कशमकश का सही आंकलन

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  4. तन्हाईयाँ ...वे पल जो हमें और मज़बूत ...और क्रिएटिव बनाते हैं...वह सुना है न
    " हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें
    हम दर्द के सुर में गाते हैं"
    तन्हाई ...एक बहुत खूबसूरत दोस्त भी है ....जो हमारा परिचय हमीसे कराती है ...है न ...

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  5. बहुत खूब ...दिल के इस डर को तो मिकालना ही होगा ... जीवन का मतलब भी तो समझना जरूरी है ...

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  6. तन्हाई भी जीवन का एक हिस्सा है, जिससे कहाँ बच सकते हैं...बहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी रचना..

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  7. दूर दूर तक साथ देने कोई नहीं आता
    बहुत ही बेहतरीन रचना निधि जी

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  8. कोई छोड़ कर चला न जाए इस डर से अकेले जीना स्वीकार ...होती हैं ऐसी कई जिंदगियाँ जिनके हिस्से सिर्फ अकेलापन और दर्द... फिर भी जीनी होती है ज़िंदगी. भावपूर्ण अभिव्यक्ति, बधाई.

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  9. बहुत सुन्दर....बेहतरीन रचना
    पधारें "आँसुओं के मोती"

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  10. नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!! बहुत दिनों बाद ब्लाग पर आने के लिए में माफ़ी चाहता हूँ

    बहुत खूब बेह्तरीन अभिव्यक्ति

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    मेरी मांग

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  11. आपकी यह उत्कृष्ट रचना 'निर्झर टाइम्स' पर लिंग की गई है। कृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर अवलोकन करें।आपका सुझाव सादर आमन्त्रित है।

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  12. मन के उचाटपन की सुन्दर अभिव्यक्ति!

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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