ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Monday, December 24, 2012
मन के प्लेटफॉर्म पर
ऐसा कभी नहीं हो सकता
कि मन के प्लेटफॉर्म पर
तुम्हारी यादों से भरी
धीरे धीरे चलने वाली
मालगाड़ी न आये .
यह गाडी...
मेरे मन के एक कोने से
दूजे कोने तक
सब दर्द पहुंचाती है
मुस्कानें समेटती है
अश्क बटोरती है
पुरानी बातों को ढोती है
नयी यादों को चढाती है
सब कुछ सहेजती है ....
तुम खुद क्यूँ नहीं आ जाते कभी
यह गाडी लेकर ..
मेरे वजूद के स्टेशन के ...इस मन नाम के प्लेटफॉर्म पर
Saturday, December 15, 2012
साथ-साथ
प्यार करते हो तुम,मुझसे
तुमने अनगिन बार ये
दोहराया है .
मुझमें और तुममें कोई अंतर नहीं
बार-बार यह समझाया है.
पूर्णता के साथ भूलना कैसे संभव है ?
भूलने के लिए भी तो याद करना ज़रूरी है .
कहो,कैसे भूला जाए उस को
जिसने मुझे संपूर्ण किया .
अपूर्ण थी मैं ...
तुमसे मिलके पूर्ण हुई मैं ..
इसलिए ,
विस्मरण जैसा कुछ भी
प्रेम में संभव ही नहीं
तुम मेरा अस्तित्व
मैं तेरा वजूद
इसलिए ....अकेला बिखरता नहीं कोई
जब भी टूटेंगे ...बिखेरेंगे
हम साथ साथ होंगे .
Sunday, December 9, 2012
सच कहना
सच कहना रुकता है क्या ...कुछ
किसी के होने से या न होने से .
कहीं कुछ नहीं थमता
वैसे ही है चलता रहता
अच्छा है जितनी जल्दी
आ जाएँ बाहर ...इस गफलत से
कि फर्क पड़ता है किसी को
हमारे होने या न होने से
साथ जीने मरने की कसमें खाना ...
....अलग बात है
या कह लो सिर्फ बात है.
साथ साथ लोग जी सकते हैं
साथ मरते भई मैंने तो किसी को नहीं देखा.
Wednesday, December 5, 2012
इंतज़ार में
अक्सर
अपने घर के अकेलेपन में
महसूस होते हो तुम .
मैंने देखे हैं तुम्हारे होंठों के निशाँ
अपनी चाय की प्याली पे .
गीला तौलिया बिस्तर पे पडा
मुझको चिढाता हुआ.
सुनाई देती हैं मुझे मेरी आवाज़
जब दिखती हैं ,तुम्हारी चप्पलें
सारे घर में मटरगश्ती करती हुई .
तुम्हारी महक से पता नहीं कैसे
महकती हूँ मैं ...दिन और रात
आजकल यूँ ही
मुस्कुराती हूँ मैं...बेमतलब ,बेबात
बताओगे...?
ऐसा ही होता है क्या
किसी के इंतज़ार में .
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Tuesday, December 4, 2012
उदासी की रोटी
चलो मिल बैठेंगे
किसी रोज.....
बाँट लेंगे उदासी की यह रोटी
निगल लेंगे इसे
अश्क़ॉ के नमक के साथ.
बांटेंगे अपने ग़म
करेंगे थोड़ी हंसी ठिठोली
यूँ भी ...
कितना वक्त गुज़र गया
माहौल हल्का हुए
अचार के मस्त चटखारे का स्वाद
जुबां भूलने लगी है .
(प्रकाशित)
Saturday, December 1, 2012
पुराने प्रेम पत्र
पुराने प्रेम पत्र......
सारा बीता वक्त
ला कर के खड़ा कर देते हैं
आँखों के सामने
टाइम मशीन के जैसे.
डर लगता है कि
कहीं उन्हें खोलते ही
दिल में छिपा हुआ.... सब
सबके आगे ...आ गया तब .
सुना नहीं होगा न
कि किसी के बीच में होने से
कोई हो जाता है करीब.
है तो है अजीब
पर...सच यही है.
कुछ शब्द .....
जो हमने लिखे
हमने जिए
साथ साथ होने के
एक दूसरे को साक्षी मान
वो छिपाते रहे सबसे
जबकि
साथ होने के वो शब्द
जो औरों ने लिखे
वो मन्त्र हो गए .
मंत्रोच्चार ,अग्नि ,देवता
हमारे बीच होते
तो हम होते करीब
क्यूंकि
इनकी मौजूदगी के बिन
हम साथ नहीं हो सकते ,कभी .
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