ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Friday, August 31, 2012
राहे इश्क में पहला क़दम....
ग़मों से दोस्ती का मैं दम रखती हूँ
राहे इश्क में पहला क़दम रखती हूँ
खुदा की नेमत सी लगे है ये दुनिया
यही सोचकर शिकायत कम रखती हूँ
बिछड के सूख न जाए प्यार की बेल
आज तलक तेरी यादें नम रखती हूँ
किसी एक दिन तुम हो जाओगे मेरे
दिल के कोने में ये भरम रखती हूँ
लोगों को चाहिए मौक़ा हँसने का
इसी से छिपा के अपने गम रखती हूँ"
Wednesday, August 29, 2012
बनी रहे ....
हसरत है कि मेरे शहर में ये शराफ़त बनी रहे
बहू -बेटी किसी की भी हों उनकी अस्मत बनी रहे
मैंने कुछ भी चाहा ही नहीं कभी बस इसके सिवा
हक़ में दुआएं करने वालों की बरक़त बनी रहे
कोई कसर तूने छोड़ी कहाँ सितम ढाने में ख़ुदा
तुम बता दो किसलिए तुझपे ये अक़ीदत बनी रहे
निगाहों को,दिलों को पढ़ने का फ़न किसे आता है
इन्हें बांचना सीख लूँ बस ये लियाक़त बनी रहे
अपने ही अपनों के ख़ून के प्यासे ना हो जाएँ
दूरी इस सूरते हाल से ताक़यामत बनी रहे
तरक्क़ी पसंद हूँ मैं इसमें कोई दो राय नहीं
देहलीज़ लांघ कर निकलूँ तो भी नज़ाकत बनी रहे
बिछड़ना जो पड़ जाए नसीब से हार कर कभी हमें
ज़रूरी है हम में रस्मे ख़तो क़िताबत बनी रहे
देखा सुना बहुत सीखा नहीं कुछ प्यार के सिवा
तमाम उम्र मुझ जाहिल की ये जहालत बनी रहे
कुछ भी ग़लत होता देखें तो आवाज़ बुलंद करें
मिजाज़ में सब लोगों के बस ये बग़ावत बनी रहे
(प्रकाशित)
Saturday, August 25, 2012
सांप सीढ़ी
कभी निन्यानवे पे गोटी हो
लग रहा हो मंजिल दूर नहीं
तभी अचानक किसी दूसरे को मिल जाती है सीढ़ी
और वो नीचे से सीधा चढ के आता है
करीब में कहीं
और किस्मत ने उसे जो चांस दिया होता है
सीढ़ी चढ़ने का......
उससे जब निन्यानवे पे रखी गोटी पीटता है
और फिर पीटने की चांस ले कर
पहुँच जाता है ,मंजिल तक.
तब,लगता है कि
इससे अच्छा होता
इतनी ऊपर आये ही न होते
जीतने के सपने खुद को दिखाए न होते.
बात..बस इतनी सी है
ज़रूरी नहीं हर की किस्मत
हर एक वक्त साथ दे.
अगर तय था तुमसे न मिल पाना
संभव नहीं था तुम तक पहुँच पाना
तो इतना तो लकीरें साथ दे ही सकती थी
कि मुझे ...अपनी मंजिल के इतने पास न लाती
मैं पहले ही खुद को सच्चाई के सांप से कटवा लेती
कोई भी ख्वाब कभी न सजाती .
फालतू की उम्मीदें बाँधकर
फिर उनके टूटने के दर्द के साथ
हार जाने का दुःख क्यूँ कर सहती .
किस्मत का सांप हमेशा ही बेवक्त डसता है.
Sunday, August 19, 2012
खाप
क्लास लगी है
वहीं...बरगद के चबूतरे पर
गाँव के दद्दा सिखाएंगे
कि लड़का लड़की प्यार कैसे करेंगे .
मिलते ही...दिल के जुड़ने से पहले
पूछेंगे ...गोत्र,धर्म जाति
फिर अंदाज़ा कि
पैसे से मजबूत है की नाही .
उसके बाद प्यार करना बच्चो
वरना ,फिर सामू और कम्मो
कि तरह मरना बच्चो .
सिखा रहे हैं
पढ़ा रहे हैं पाठ ...
प्यार होना नहीं चाहिए
क्यूंकि
प्यार सब देख भाल कर ...कह सुन कर ...जांच-परख कर
करने वाली चीज़ है.
Wednesday, August 15, 2012
आज़ादी दिवस
एक पागल है ..
सारे शहर में घूम घूम के
हरसिंगार के झरे फूल और गिरी पत्तियां
इकट्ठी करता है .
सुना है...
वक्त का है मारा
फ़ौजी है पुराना
इन फूल पत्तियों में
उसे...
अपना तिरंगा नज़र आता है .
जिससे हर शख्स बेखबर नज़र आता है .
अपने देश की स्थिति दिखायी देती है .
बात-बात पे उसकी आँख भर आती है .
देश के लिए कुछ करने..देश को कुछ दे पाने का पागलपन हम पे भी हावी हो जाए .
आज़ादी दिवस आप सभी को मुबारक हो !!
Monday, August 13, 2012
ज़रूरी नहीं ....
ज़रूरी यह नहीं
कि प्रेम कितनी बार हुआ
एक बार हुआ या कई बार
ज़रूरी यह है कि
जब हुआ ..जिससे हुआ
उस वक्त
हम उसके साथ
पूरी तरह से थे या नहीं .
उन पलों में जब थे साथ
तब जिए पूर्ण ईमानदारी से
मन-तन सब रहा उसके साथ
यूँ भी...रिश्ता कोई भी हो
किसी से भी हो,कभी भी हो
उसमें शिद्दत की...
ईमानदारी की दरकार
होती है और होनी भी चाहिए
Monday, August 6, 2012
इंतज़ार में....
अक्सर
अपने घर के अकेलेपन में
महसूस होते हो तुम .
मैंने देखे हैं तुम्हारे होंठों के निशाँ
अपनी चाय की प्याली पे .
गीला तौलिया बिस्तर पे पडा
मुझको चिढाता हुआ.
सुनाई देती हैं मुझे मेरी आवाज़
जब दिखती हैं ,तुम्हारी चप्पलें
सारे घर में मटरगश्ती करती हुई .
तुम्हारी महक से पता नहीं कैसे
महकती हूँ मैं ...दिन और रात
आजकल यूँ ही
मुस्कुराती हूँ मैं...बेमतलब ,बेबात
बताओगे...?
ऐसा ही होता है क्या
किसी के इंतज़ार में .
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Thursday, August 2, 2012
राखी
याद ही होगा तुम्हें भी
जब साथ होने की
कोई अहमियत न थी .
राखी ...आती थी
और ले आती थी
अपने साथ
शर्तें,फरमाइशें
यह देना वो देना ..
इतने रुपयों से कम दोगे
तो राखी नहीं बांधेंगे .
वक़्त बदलता है
एक सा कब रहता है
आज ...दूर हैं
राखी खुद बाँध लोगे
गिफ्ट भी भिजवा दोगे
पर,मन होता है
कुछ न देते
पर पास होते
साथ होते .
मन का चाहा...कब होता है
खैर छोडो ......
दूर सही
पर दुआओं में हमेशा रहोगे...............पास .
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