कभी निन्यानवे पे गोटी हो
लग रहा हो मंजिल दूर नहीं
तभी अचानक किसी दूसरे को मिल जाती है सीढ़ी
और वो नीचे से सीधा चढ के आता है
करीब में कहीं
और किस्मत ने उसे जो चांस दिया होता है
सीढ़ी चढ़ने का......
उससे जब निन्यानवे पे रखी गोटी पीटता है
और फिर पीटने की चांस ले कर
पहुँच जाता है ,मंजिल तक.
तब,लगता है कि
इससे अच्छा होता
इतनी ऊपर आये ही न होते
जीतने के सपने खुद को दिखाए न होते.
बात..बस इतनी सी है
ज़रूरी नहीं हर की किस्मत
हर एक वक्त साथ दे.
अगर तय था तुमसे न मिल पाना
संभव नहीं था तुम तक पहुँच पाना
तो इतना तो लकीरें साथ दे ही सकती थी
कि मुझे ...अपनी मंजिल के इतने पास न लाती
मैं पहले ही खुद को सच्चाई के सांप से कटवा लेती
कोई भी ख्वाब कभी न सजाती .
फालतू की उम्मीदें बाँधकर
फिर उनके टूटने के दर्द के साथ
हार जाने का दुःख क्यूँ कर सहती .
किस्मत का सांप हमेशा ही बेवक्त डसता है.
यही तो ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा है यही चुनौती है।
ReplyDeleteकभी कभार ....बड़ा हतोत्साहित कर देता है जीवन
Deleteवाह!
ReplyDeleteबेशुमार बेलगाम उम्मीदें
किन बेरंग को रंगूँ मैं,
बढ़ा हाथ थामले अंगुली
"रूह" किस रंग में रंगूँ मैं।
बहुत सुन्दर अश'आर
Deleteजीवन भी इसी खेल की तरह है ... पर फिर भी चलना पड़ता है गोटियों की रफ़्तार से ...
ReplyDeleteसहमति हेतु,आभार!
Deleteतभी अचानक किसी दूसरे को मिल जाती है सीढ़ी
ReplyDeleteऔर वो नीचे से सीधा चढ के आता है
बहुत ही सही बात कही ये आपने !
पसंद करने के लिए....थैंक्स!
Deletebeautiful Blog
ReplyDeleteVisit my website: Ajay Walia Photography
थैंक्स!
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