Saturday, August 25, 2012

सांप सीढ़ी



कभी निन्यानवे पे गोटी हो
लग रहा हो मंजिल दूर नहीं
तभी अचानक किसी दूसरे को मिल जाती है सीढ़ी
और वो नीचे से सीधा चढ के आता है
करीब में कहीं
और किस्मत ने उसे जो चांस दिया होता है
सीढ़ी चढ़ने का......
उससे जब निन्यानवे पे रखी गोटी पीटता है
और फिर पीटने की चांस ले कर
पहुँच जाता है ,मंजिल तक.
तब,लगता है कि
इससे अच्छा होता
इतनी ऊपर आये ही न होते
जीतने के सपने खुद को दिखाए न होते.

बात..बस इतनी सी है
ज़रूरी नहीं हर की किस्मत
हर एक वक्त साथ दे.
अगर तय था तुमसे न मिल पाना
संभव नहीं था तुम तक पहुँच पाना
तो इतना तो लकीरें साथ दे ही सकती थी
कि मुझे ...अपनी मंजिल के इतने पास न लाती
मैं पहले ही खुद को सच्चाई के सांप से कटवा लेती
कोई भी ख्वाब कभी न सजाती .
फालतू की उम्मीदें बाँधकर
फिर उनके टूटने के दर्द के साथ
हार जाने का दुःख क्यूँ कर सहती .


किस्मत का सांप हमेशा ही बेवक्त डसता है.

10 comments:

  1. यही तो ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा है यही चुनौती है।

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    1. कभी कभार ....बड़ा हतोत्साहित कर देता है जीवन

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  2. वाह!

    बेशुमार बेलगाम उम्मीदें
    किन बेरंग को रंगूँ मैं,
    बढ़ा हाथ थामले अंगुली
    "रूह" किस रंग में रंगूँ मैं।

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    1. बहुत सुन्दर अश'आर

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  3. जीवन भी इसी खेल की तरह है ... पर फिर भी चलना पड़ता है गोटियों की रफ़्तार से ...

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  4. तभी अचानक किसी दूसरे को मिल जाती है सीढ़ी
    और वो नीचे से सीधा चढ के आता है
    बहुत ही सही बात कही ये आपने !

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    1. पसंद करने के लिए....थैंक्स!

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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