अक्सर
अपने घर के अकेलेपन में
महसूस होते हो तुम .
मैंने देखे हैं तुम्हारे होंठों के निशाँ
अपनी चाय की प्याली पे .
गीला तौलिया बिस्तर पे पडा
मुझको चिढाता हुआ.
सुनाई देती हैं मुझे मेरी आवाज़
जब दिखती हैं ,तुम्हारी चप्पलें
सारे घर में मटरगश्ती करती हुई .
तुम्हारी महक से पता नहीं कैसे
महकती हूँ मैं ...दिन और रात
आजकल यूँ ही
मुस्कुराती हूँ मैं...बेमतलब ,बेबात
बताओगे...?
ऐसा ही होता है क्या
किसी के इंतज़ार में .
bahut khub
ReplyDeleteधन्यवाद!!
Delete:)
ReplyDelete:-))
Deleteइंतज़ार की अनोखी छटाएं...
ReplyDeleteउम्मीद है ...आपको पसंद आयीं
Deleteये इंतज़ार नहीं ... बस प्रेम का पागलपन है ... जिसमें हर कोई डूबना चाहता है ...
ReplyDeleteलाजवाब ...
प्रेम में पागलपन न हो तो वो प्रेम कहाँ...
Deleteतुम्हारे होठों के निशाँ चाय की प्याली पे ... इंतज़ार के खूबसूरत लम्हे. बहुत प्यारी रचना, बधाई.
ReplyDeleteआभार!!
Deleteशायद ऐसा ही होता है इंतज़ार में.. कभी करेंगे तो आपको ज़रूर बताएँगे :)
ReplyDeleteजब करना इंतज़ार तो बताना ज़रूर.
Deleteबिल्कुल जी यही होता है.....
ReplyDeleteहम्मम्मम
Deleteशुक्रिया!!
ReplyDeleteआभारी हूँ,मेरी रचना को शामिल करने हेतु.
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
इस पागलपन को पढ़ना फिर से अच्छा लगा ...
ReplyDeleteयह पढ़ कर मन खुश हो गया
Deleteबहुत प्यारी रचना ...किसी के इंतज़ार में
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!!
Deleteआपने इंतज़ार की अनुभूतियों को बड़े सलीके से शब्दों में बांधा है. अच्छी लगी ये नज़्म..
ReplyDeleteआपने पसंद किया और सराहा...आभारी हूँ.
Deleteबेहतरीन कविता
ReplyDeleteजन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाये..!!
थैंक्स...!!
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