Sunday, November 24, 2013

मन की खिन्नता

थक चली हूँ
खुद के मन की खिन्नता से .
सोचती हूँ कि क्या होता है
क्यूँ होता है
जिसकी वजह से
कुछ यूँ होता है
कि हम इतने निर्मम हो जाते हैं
अपने लिए
अपनों के लिए.

कैसे और क्यूँ इतना क्रूर
कि प्यार को ठुकरा देते हैं
दूसरे की हर उम्मीद को
बेवजह धत्ता बता देते हैं
सब कुछ ठीक होते हुए भी
कहीं से कमियाँ ढूँढ़ लेते हैं
दूसरों की कुछ कमजोरियों से
अपनी ताक़त खींच लेते हैं .
हरेक बात में मन मुताबिक़
खामियां खोज लेते हैं
किसी को दिख न जाएँ दुःख
इसलिए आंसू खुद पोंछ लेते हैं .
क्यूँ ????
दूर होने लगते हैं मजबूर होने लगते हैं
गलतफहमियों को सेने लगते हैं
बीच में फासले को जन्म देने लगते हैं .

मुझे नहीं पता क्या नहीं है
पर कुछ है जो पहले सा नहीं है
कहीं एक खालीपन भरा सा है
कुछ है जो दिलों में जमा सा है .

लग रहा है कि बाहर आना है इस सबसे
वरना अवसाद घिरना तो तय है अभी से
इस सब को पीछे छोड़ना है ,तो
तेरे मेरे साथ के अलावा
मुझे  चाहिए तन्हाई
खूब ढेर सारा वक़्त
कुछ गुस्ताखियाँ
कुछ माफियाँ
एक रोने का सेशन
जिसमें घुल जाएँ
पिछली शिकायतें और सारी टेंशन .

चलो,फिर से
कोशिश करें एक बार
पुरानी बीती बातों पे मिट्टी डाल
बाहर आ जाएँ
पिछ्ला कहा- सुना भूल -भाल .

Saturday, November 23, 2013

तकलीफ

बहुत मुद्दत के बाद
बड़ी शिद्दत के साथ
तुम्हें चाहा था
पर..
हुआ वही जो होना था
पाकर तुम्हें यूँ खोना था
खो दिया ...

तकलीफ में हूँ
परेशान हूँ बहुत
जिस रिश्ते को बहुत तरजीह दी थी मैंने
एक ख़ास मुकाम, अलग ज़मीन दी थी मैंने
वो मेरे सामने बिखर रहा है .
हाल ..बेहाल है मेरा
क्यूँकि बहुत ऊंचाई से गिरो तो
चोट ठीक भले हो जाए
पर उम्र भर टीसती है .
क्या करूं कि तेरी बातों की
तेरी यादों की चक्की
मुझे रात दिन पीसती है .
खीजती हूँ जब सोचती हूँ
कि कमी कहाँ रह गयी
मुझसे गलती कहाँ हो गयी

अब ......
तेरे मेरे दरमियाँ
एक अनकहा सा फासला है
उसमें हाथ नहीं मेरा
वो सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारा फैसला है
तुम्हें शायद हाल ए दिल समझा न सकूँ
क्या हो तुम मेरे लिए कभी बता न सकूँ
पर..हाँ
यह ज़रूर है
अब शायद
किसी से
प्यार मैं कर न सकूँ
किसी पे
ऐतबार मैं कर न सकूँ

Thursday, November 21, 2013

सर्दी की लम्बी रातें


गुलाबी सर्दियों का मौसम शुरू हो रहा है
फैला रही है ठण्ड धीरे धीरे अपने पाँव ..
कोहरे की चादर तान कर स्याह सर्द रात
लम्बी होती जा रही है ..
तुम्हें तो पता नहीं है
न ही होगा
क्यूँ हो जाती हैं लम्बी रातें .
यह सुनते ही
पता है मुझे ,तुम अभी के अभी
सारा विज्ञान,भूगोल समझाने लगोगे
पर..असली कारण
जो है एक राज़
तुमको बताती हूँ
मेरे करीब आओ तुम्हें
सब का सब समझाती हूँ .

जश्न हैं ..ये रातें
मुहब्बत की गर्माहट का
स्वीट नथिंग्स की फुसफुसाहट का
बाहों की कसमसाहट का
होठों की नरमाहट का
क्यूंकि
इनमें ही खिलते हैं
फ़ूल मुहब्बत के
बिखरती है खुश्बू
देह से देह तक
और अलसाया रहता है तन मन
सोचते नहीं थकता है
कि काश...
ज़रा और लम्बी होती रात
तो थोड़ा सा ज़्यादा
मिल जाता तुम्हारा साथ

Saturday, November 16, 2013

मुझे कुछ नहीं पता


तुम नाराज़ हो
पता है मुझको
इस नाराजगी के चलते
बात नहीं करते हो मुझसे .

जब नार्मल होता है न
सब कुछ हमारे बीच
तब कितने दिन भी
बात न हो हमारे बीच
मुझे दिल को समझाने में
मशक्कत नहीं करनी पड़ती
पर,
जब जानती हूँ मैं
कि तुम ख़फा हो मुझसे
तो तुम्हारा अबोला परेशान करता है .
तुम न बोलकर भी सारा दिन
बोलते रहते हो मेरे कान में .
तुम आस पास न होकर भी बहुत पास होते हो
ऐसे वक़्त में .

चाहती हूँ...
जितना दूर तुम जाने की कोशिश कर रहे हो
उतनी ही दूरी मैं भी बढ़ा लूँ तुमसे
पर,फासले बढाने की सोचने भर से
तुम्हें अपने और ज़्यादा करीब पाती हूँ .

मन होता है
तुमसे कुछ न कहूँ
तुमसे कुछ न सुनूँ
पर तुम ही तुम गूँजते रहते हो
मेरे बाहर भीतर .


दिल करता है
चिल्ला कर कहूँ
सारी भूल तुम्हारी है
मेरी कोई गलती नहीं
पर ,तुम्हें अफ़सोस करते देखते ही
तेरी मेरी सारी गलतियाँ
न जाने कैसे,न जाने कब
मेरी अपनी हो जाती हैं .

मुझे नहीं पता
तुमसे मैं क्या चाहती हूँ
तुम्हें पास चाहती हूँ या दूर
तुमसे प्यार चाहिए या नफरत भरपूर
लडूँ तुमसे तो मानूँ खुद ही
या तुम्हारे मनाने का मैं इंतज़ार करूँ
तुम्हें परेशान करूं हर रोज़ किसी नयी बात पर
बस यह परखने के लिए कि मेरी परेशानी
तुम्हें परेशान करती है क्या
फिर वही सारे काम करूँ
जो तुम्हें अच्छे लगते हैं
या सनक में वो सब
जिनसे बेहद चिढ है तुम्हें .

मेरा मन क्या चाहता है
मुझे कुछ नहीं पता
तुम्हें क्या मानता है
मुझे ख़ुद नहीं पता
मैं अपना मन नहीं पढ़ पाती
खुद को ही नहीं समझ पाती
तो कहो न
वो जाहिल मन भला तुम्हें कैसे समझेगा
इसलिए,प्लीज़ नाराज़ मत हुआ करो.
कुछ काम,कई बातें...कितनी ही चीज़ें
मैं क्यूँ करती हूँ ...मुझे नहीं पता
बस पता है तो बस इतना
कि प्यार है तुमसे बेइंतिहा .

Thursday, November 14, 2013

कडवी ज़िंदगी


बहुत कडवी है यह ज़िन्दगी
उतरती है सीने में
जला देती है जिगर.
आँखों के पानी में
घोले बिना ,
इसे पीना ...जीना
लगभग नामुमकिन ।

ज़िंदगी की इस तल्ख़ी को
थोड़ा कम कर लें
आओ, उससे बात कर लें
थोड़ा सा नशा कर लें
थोड़ा सा जी लें
थोड़ा सा मर लें
उससे अपने रिश्ते को
ज़रा कसौटी पर कस लें

Tuesday, November 12, 2013

प्यार में हो न सकूंगी




तुम जबसे नहीं ज़िंदगी में
हरेक सुबह ऎसी है
जैसे कई दिन की छुट्टी के बाद काम पर जाना .

तुम्हारे बग़ैर ..
हरेक सड़क ,बस...वन वे
कुछ नहीं जिससे वापस आया जाये
और अगर लौटा भी जाए किसी तरह
तो ,सवाल यह की आखिर किसके लिए .

तुम्हारे बिना
नीला या लाल
गुलाबी या काली
किसी भी स्याही से लिखा,"मैं तुमसे प्यार करती हूँ "
आपने मायने खो देता है .

तुम नहीं हो जो ..
...तो,हमेशा का मतलब
बहुत-बहुत ज़्यादा लंबा अरसा
नहीं हो सकेगा,कभी.

नहीं होगे जब तुम करीब
तो बसंत से रहेगी दूरी
और यह स्याह सर्द सी ज़िंदगी
मेरे आगे अंतहीन खिंचती जायेंगी .

पता है,तुम्हें
यह सब क्यूँकर हुआ
क्यूंकि,तुम बिन ..
मैं प्यार में हो न सकूंगी
कुछ महसूस कर न सकूंगी.

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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