ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Saturday, November 16, 2013
मुझे कुछ नहीं पता
तुम नाराज़ हो
पता है मुझको
इस नाराजगी के चलते
बात नहीं करते हो मुझसे .
जब नार्मल होता है न
सब कुछ हमारे बीच
तब कितने दिन भी
बात न हो हमारे बीच
मुझे दिल को समझाने में
मशक्कत नहीं करनी पड़ती
पर,
जब जानती हूँ मैं
कि तुम ख़फा हो मुझसे
तो तुम्हारा अबोला परेशान करता है .
तुम न बोलकर भी सारा दिन
बोलते रहते हो मेरे कान में .
तुम आस पास न होकर भी बहुत पास होते हो
ऐसे वक़्त में .
चाहती हूँ...
जितना दूर तुम जाने की कोशिश कर रहे हो
उतनी ही दूरी मैं भी बढ़ा लूँ तुमसे
पर,फासले बढाने की सोचने भर से
तुम्हें अपने और ज़्यादा करीब पाती हूँ .
मन होता है
तुमसे कुछ न कहूँ
तुमसे कुछ न सुनूँ
पर तुम ही तुम गूँजते रहते हो
मेरे बाहर भीतर .
दिल करता है
चिल्ला कर कहूँ
सारी भूल तुम्हारी है
मेरी कोई गलती नहीं
पर ,तुम्हें अफ़सोस करते देखते ही
तेरी मेरी सारी गलतियाँ
न जाने कैसे,न जाने कब
मेरी अपनी हो जाती हैं .
मुझे नहीं पता
तुमसे मैं क्या चाहती हूँ
तुम्हें पास चाहती हूँ या दूर
तुमसे प्यार चाहिए या नफरत भरपूर
लडूँ तुमसे तो मानूँ खुद ही
या तुम्हारे मनाने का मैं इंतज़ार करूँ
तुम्हें परेशान करूं हर रोज़ किसी नयी बात पर
बस यह परखने के लिए कि मेरी परेशानी
तुम्हें परेशान करती है क्या
फिर वही सारे काम करूँ
जो तुम्हें अच्छे लगते हैं
या सनक में वो सब
जिनसे बेहद चिढ है तुम्हें .
मेरा मन क्या चाहता है
मुझे कुछ नहीं पता
तुम्हें क्या मानता है
मुझे ख़ुद नहीं पता
मैं अपना मन नहीं पढ़ पाती
खुद को ही नहीं समझ पाती
तो कहो न
वो जाहिल मन भला तुम्हें कैसे समझेगा
इसलिए,प्लीज़ नाराज़ मत हुआ करो.
कुछ काम,कई बातें...कितनी ही चीज़ें
मैं क्यूँ करती हूँ ...मुझे नहीं पता
बस पता है तो बस इतना
कि प्यार है तुमसे बेइंतिहा .
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भावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeleteथैंक्स!
Deleteरूपचंद्र जी....शुक्रिया!मेरी रचना को शामिल करने के लिए.
ReplyDeleteप्यार है इतना ही काफी है.....
ReplyDeleteबहुत प्यारी अभिव्यक्ति........
अनु
हाँ ,और क्या ...अनु
Deleteबहुत सुन्दर व हृदय को स्पर्श करती आपकी रचना , आदरणीय , एक सूत्र आपके लिए अगर समय मिले तो , आपका स्वागत हैं। नया प्रकाशन --: प्रश्न ? उत्तर -- भाग - ६
ReplyDelete" जै श्री हरि: "
धन्यवाद!!!
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteआभार!!
Deletehttp://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ मैं आपकी इस रचना को शुक्रवारीय अंक ४७ २२/११/२०१३ में शामिल किया गया हैं कृपया अवलोकन हेतु पधारे
ReplyDeleteमेरी रचना को शामिल करने के लिए,शुक्रिया!
Deleteबहुत ही सुन्दर भाव चित्रण।
ReplyDeleteथैंक्स!
Deleteबस प्यार ही प्यार
ReplyDeleteसुंदर !!
शुक्रिया!
Deleteबहुत लम्बे वक़्त के बाद कुछ लिखा हैं..... आप सब की नज़र कुछ अलफ़ाज़..
ReplyDelete(१)
मेरी साँसों तलक में तुम बग़ावत ढूंढते हो,
और कहते हो की दोस्ती का रंग फीका हैं.
मिले हो गले अक्सर, लेकर हाथ में खंजर,
तुम ही कहो ये रिश्तो का क्या सलीका है.....
(२)
एक तेरे जिक्र से आलम रूहानी हो गया,
ऐसा ना हो तुमसे मिलके हम खुदा ही हो जाए,
यूँ न तुम लो नाम मेरा मुस्करा कर बज्म में,
दोस्त और दुश्मनों में कही हम दुआ न हो जाए.