थक चली हूँ
खुद के मन की खिन्नता से .सोचती हूँ कि क्या होता है
क्यूँ होता है
जिसकी वजह से
कुछ यूँ होता है
कि हम इतने निर्मम हो जाते हैं
अपने लिए
अपनों के लिए.
कैसे और क्यूँ इतना क्रूर
कि प्यार को ठुकरा देते हैं
दूसरे की हर उम्मीद को
बेवजह धत्ता बता देते हैं
सब कुछ ठीक होते हुए भी
कहीं से कमियाँ ढूँढ़ लेते हैं
दूसरों की कुछ कमजोरियों से
अपनी ताक़त खींच लेते हैं .
हरेक बात में मन मुताबिक़
खामियां खोज लेते हैं
किसी को दिख न जाएँ दुःख
इसलिए आंसू खुद पोंछ लेते हैं .
क्यूँ ????
दूर होने लगते हैं मजबूर होने लगते हैं
गलतफहमियों को सेने लगते हैं
बीच में फासले को जन्म देने लगते हैं .
मुझे नहीं पता क्या नहीं है
पर कुछ है जो पहले सा नहीं है
कहीं एक खालीपन भरा सा है
कुछ है जो दिलों में जमा सा है .
लग रहा है कि बाहर आना है इस सबसे
वरना अवसाद घिरना तो तय है अभी से
इस सब को पीछे छोड़ना है ,तो
तेरे मेरे साथ के अलावा
मुझे चाहिए तन्हाई
खूब ढेर सारा वक़्त
कुछ गुस्ताखियाँ
कुछ माफियाँ
एक रोने का सेशन
जिसमें घुल जाएँ
पिछली शिकायतें और सारी टेंशन .
चलो,फिर से
कोशिश करें एक बार
पुरानी बीती बातों पे मिट्टी डाल
बाहर आ जाएँ
पिछ्ला कहा- सुना भूल -भाल .
कहा सुना भूल जाना चाहिए ... कुछ दिन की जिंदगी है इसे जीना चाहिए ...
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति ...
जी,बिलकुल जीना चाहिए..जी भर के
Deletesundar bhaav
ReplyDeleteथैंक्स!
Deleteमेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु आपका हार्दिक आभार!
ReplyDeleteजो बीत गया वो बात गई ...नया शुरुयात करना ही उचित है--बढ़िया प्रस्तुति !
ReplyDeleteनई पोस्ट तुम
शुक्रिया!
Deleteकाफी सुंदर चित्रण ..... !!!
ReplyDeleteकभी हमारे ब्लॉग पर भी पधारे.....!!!
खामोशियाँ
थैंक्स....!!
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteआभार!!
Deleteबेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रिया!
Deleteआँसू चाहते हैं कांधा तेरा..
ReplyDeleteइक शब..मैं तेरा..तू मेरा..
शब्दों के माध्यम से अंतर्मन की हर वेदना-संवेदना अभिव्यक्त करना आपसे बेहतर कौन कर कर सकता है..?? बहुत सुन्दर लिखा है..
मैं नहीं जानती कि कितना समझती हूँ......या कह लो जितना समझती हूँ उतना कागज़ पर उतार पाती हूँ या नहीं.......कुछ नहीं पता
Deleteहार्दिक धन्यवाद ..मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु
ReplyDelete