Tuesday, July 23, 2013

सावन झूम के


मेरे मन के सावन को
मैं अक्सर रोक लेती हूँ
अपने ही भीतर.
बंद कर देती हूँ
आँखों के पट
आंसुओं को समेट के .
मार देती हूँ कुण्डी
मुंह पे ,सिसकियों को उनमें भर के .
साथ ही साथ ..
नहीं भूलती
लगाना ताला
अपने गले पे
सारी चीखें और रुंधा हुआ सब
कहीं गहरे ही दफना के .

कितना भी रोक लूँ
सावन रुकेगा क्या
मेरे रोके जाने से ..
लो,
आ ही गया सावन झूम के

Tuesday, July 16, 2013

शहर में रहा करो


तुम साथ नहीं
तुम पास नहीं
पर,शहर में हो
यह बात भी तसल्ली देती है.
जब सुन लेती हूँ ख़बर
तुम्हारे कहीं जाने की
अजीब सी हालत होती है मेरे मन की...
बड़ा उचाट सा रहता है
वापसी की बाट जोहता है.

मेरे शहर की वो हवा
जो तुम्हें छू कर गुज़रती है
उसे साँसों में भर लेने से
तेरे करीब होने का एहसास जग जाता है.
शहर में तेरी नामौजूदगी से
जीवन ठहर जाता है
सब कुछ थम जाता है .
इसलिए,सुनो मेरी कही यह बात
प्लीजज्ज जहां के हो वहीं आ जाओ,वापस.

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

Followers