Saturday, October 29, 2011

आदत



आदतें कितना बेबस कर देती हैं...
चार दिन हुए तुमसे बतियाते हुए
अब इधर बात नहीं हो पा रही ...तो मन अनमना सा क्यूँ है ?
मुलाक़ात ...
बात न हो पाने से...
मुझे यकीन है कि ...
तुम भी सोचते होगे मुझे दिन रात
इसीलिए,
शायद ...
मुझे इतनी हिचकियाँ आती हैं,आजकल .

मानो लो न..कि..
अच्छा ,चलो छोडो...
मुझे पता है ,
तुम्हें प्यार के लफ्ज़ से चिढ सी है
इसलिए ,
यह कहना तो ठीक है न
कि
हम दोनों को एक दूसरे से प्यार भले न हो
पर ,
हमें यकीनन एक दूसरे की आदत हो गयी है

Thursday, October 27, 2011

रूटीन


वही सुबह,वही रातें...
वही दोपहर ,वही शामें....
कुछ भी अलग नहीं...
जीवन के ये दिन......
बस यूँ ही....
बीतते जाते हैं.

बोझल बातें हैं....
बेबस सांसें हैं .....
रुकी-रुकी धडकनें....
थमी-थमी मुस्कुराहटें....

"तुम" आ जाओ ,न ........
तुम्हारी बातों का इन्द्रधनुष
मेरी बेरंग जिंदगी में रंग भरता है .
तेरा हर बात पे कहना ,"पता नहीं "..."कुछ नहीं "
नीरस जीवन में जैसे रस भरता है .
आओ, कि..कुछ तो हो...
रूटीन से हट कर .

Saturday, October 22, 2011

कारण -कार्य सम्बन्ध


आज तलक़ मैंने यही सुना और पढ़ा
कि हरेक कार्य का कोई कारण होता है
जैसे बिन आग धुंआ नहीं होता
वैसे कोई काम बिन कारण नहीं होता
पर,
आज हुआ है प्यार
सोचती हूँ ,कि
क्या...........
हर पे लागू किया जा सकता है ये सिद्धांत
कैसे हर चीज़ के पीछे वही एक बात .??/

यहाँ "नहीं"....लागू होती ,यही उत्तर मन में आता है
दार्शनिक,वैज्ञानिक इन सबने....
दिल में लगी आग को नहीं देखा
देखा होता तो बता पाते धुंआ कहाँ हैं
सब देखा ...सब जाना ...आगे पीछे ,ऊपर नीचे,अंदर बाहर
बस इन्होने प्यार ही नहीं समझा...जाना .

अच्छा लगने के पीछे कारण ढूंढना
प्यार होने के एहसास को महसूस करते
यह सोचना कि क्यूँ हुआ ,कैसे हुआ
है प्यार को ही नीचे गिराना
एक उत्कृष्ट भावना का पोस्टमार्टम करना

मुझे जबसे इश्क हुआ
मैंने जाना कि कारण-कार्य संबध..
यहाँ ...लागू नहीं होता
बाकी भौतिक जगत आता होगा इसकी सीमा में
पर अनुभूतियों को नहीं बाँधा जा सकता इसकी परिधि में
इन्हीं प्रश्नों के उत्तर देने में
मेरा सारा पढ़ा हुआ चुक जाता है
समस्त जीवन का दर्शन और विज्ञान ,
अंततः........
प्रेम के समक्ष धरा रह जाता है

Friday, October 21, 2011

स्वीकृति की संजीवनी


अजीब होता है प्यार .....
नहीं होता तो ....नहीं होता
और जब होता है तो ...
देश ,काल ,उम्र ,समय ,सीमा
किसी को नहीं जानता,नहीं मानता .

पागल सा कर देता है
खुद पे खुद का बस नहीं चलता है
बहुत परेशान करता है
कई रोग लगा देता है
पर,
इसके बाद भी कितना
खूबसूरत होता है

प्यार करके जाना मैंने
कि
मोहब्बत में मर जाना किसे कहते हैं .
जान पे बनी थी मेरी ....
कि ,कल रात ख्वाब सा कोई ...
सपने में आकर ,मेरे सिरहाने
स्वीकृति की संजीवनी रख गया
बीती रात से जी उठी हूँ ...मैं .

Thursday, October 20, 2011

खुद को रोक लूँ

किसी ने कहा ..
कि,
एक कोशिश करके देखूं .
उसे इतना न चाहूँ ...
कि ,
जुड़ाव के कारण
मुझे कोई तकलीफ हो.
जितना गहरा उतरूंगी
बाहर आना उतना मुश्किल हो जाएगा .

शुरुआत है
अभी ही रोक लूँ ..खुद को
क्या करूँ...?
मान लूँ ..?
पर,
ऐसा... होगा कैसे
वो भी...मुझसे
सोचती हूँ, कि प्रेम है...रहेगा
कैसे रोकूँ खुद को..??

चलो,ये कर लेती हूँ..
कि प्यार करती हूँ ...करती रहूंगी,सदा
बस,आज के बाद ..
जतलाना बंद कर दूंगी,तुम्हें .

मैं भी देखूं जो प्यार करते हैं पर जताते नहीं
किसी को चाह के भी कभी जो कह पाते नहीं
दूसरे लफ्जों में कहूँ तो जो तुमसे होते हैं
प्यार होता है फिर भी स्वीकार पाते नहीं
वो कैसे जीते हैं
उन्हें कैसा लगता है
दुआ करना मेरी इस कोशिश के सफल होने की
शायद..इस बदौलत
मैं जान पाऊं वो वजह, तुम्हारी ..
जुड के भी मुझसे दूरी बनाए रखने की

Tuesday, October 18, 2011

प्रेम का तावीज़


शर्त लगाई है....खुद से
जिद है...मेरी
बचपना ...भी कह सकते हो
यकीन है तुम मानोगे ...
...एक न एक दिन स्वीकारोगे..
कि प्यार करते थे,हो और करते रहोगे मुझसे.

अनजान बने रहते हो
अनदेखा भी कर देते हो
अबोला भी हो जाता है
अनसुना कुछ रह जाता है ..
अपने को कब तक यूँ परेशान करोगे,तुम ?

कह दो....
बोलो न....
तुम्हारी बेचैनी ,बेकरारी,घबराहटें,डर,झिझक
को मिटा देना सब ...है मेरे बस में
आओ न...आगे बढ़ो ..एक कदम
स्वीकारो कि मेरा प्रेम तुम्हारे लिए
और तुम्हारा प्रेम मेरे लिए
एक तावीज़ है ...............
इस प्रेम के तावीज़ ...के साथ
हम सारी परेशानियों से लड़ लेंगे
स्वीकार कर लो न!!!

Wednesday, October 12, 2011

कौन हूँ मैं??????




कौन हूँ मैं?
कितनी बार यह सवाल खुद से करती हूँ ...
फिर तुम्हारी बातों में से ही ..
एक उत्तर खोज लेती हूँ
क्यूंकि ,
अधिकतर ,मैं वही सोचती हूँ
जो सब चाहते हैं कि मैं सोचूं .
मेरा मन...??
वो क्या है ...
सबके मन की करते -करते
भूल चुकी हूँ कि मेरे पास भी
अपना एक मन है .
मेरा दिमाग ???
औरतों के पास भी दिमाग होता है क्या???
कभी इस्तेमाल करती और कोई सराहता
तो ही उसे जानती ,पहचानती न !
मेरी भावनाएं????
उनकी मुझे क्या ज़रूरत
मेरा तो धर्म है ...
सबकी खुशी में खुश होना और दुःख में दुखी .
मेरी इच्छाएं?????
मैं मजाक कर रही हूँ क्या?????
मैं और तुम अलग हैं क्या
जो तुम चाहो
बस वही होनी चाहिए मेरी इच्छा .


न मन अपना,न भावनाएं अपनी
न दिमाग अपना ,न इच्छाएं अपनी
न सोच अपनी,न खुशी- गम अपने
अच्छा ,तुम ही कहो न?!
मैं सजीव हूँ या निर्जीव ....??????

(प्रकाशित)

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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