ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Saturday, October 22, 2011
कारण -कार्य सम्बन्ध
आज तलक़ मैंने यही सुना और पढ़ा
कि हरेक कार्य का कोई कारण होता है
जैसे बिन आग धुंआ नहीं होता
वैसे कोई काम बिन कारण नहीं होता
पर,
आज हुआ है प्यार
सोचती हूँ ,कि
क्या...........
हर पे लागू किया जा सकता है ये सिद्धांत
कैसे हर चीज़ के पीछे वही एक बात .??/
यहाँ "नहीं"....लागू होती ,यही उत्तर मन में आता है
दार्शनिक,वैज्ञानिक इन सबने....
दिल में लगी आग को नहीं देखा
देखा होता तो बता पाते धुंआ कहाँ हैं
सब देखा ...सब जाना ...आगे पीछे ,ऊपर नीचे,अंदर बाहर
बस इन्होने प्यार ही नहीं समझा...जाना .
अच्छा लगने के पीछे कारण ढूंढना
प्यार होने के एहसास को महसूस करते
यह सोचना कि क्यूँ हुआ ,कैसे हुआ
है प्यार को ही नीचे गिराना
एक उत्कृष्ट भावना का पोस्टमार्टम करना
मुझे जबसे इश्क हुआ
मैंने जाना कि कारण-कार्य संबध..
यहाँ ...लागू नहीं होता
बाकी भौतिक जगत आता होगा इसकी सीमा में
पर अनुभूतियों को नहीं बाँधा जा सकता इसकी परिधि में
इन्हीं प्रश्नों के उत्तर देने में
मेरा सारा पढ़ा हुआ चुक जाता है
समस्त जीवन का दर्शन और विज्ञान ,
अंततः........
प्रेम के समक्ष धरा रह जाता है
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ईश्वर पूरी सृष्टि में व्याप्त हैं ... जिस पर उनकी विशेष कृपा होती है उसे प्यार होता है ... ताकि उसे जीवन की हर भाषा का ज्ञान हो
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना....
ReplyDeleteविचारणीय रचना ...
ReplyDeleteप्रेक की आग तो स्वत: ही लग जाती है ... प्रभावी अभिव्यक्ति ...
ReplyDelete्प्रेम का ना कोई कारण होता है और ना कार्य्…………स्वत: प्रवाहित होता है।
ReplyDeleteअंतर्मन की दशा जान पाना कठिन कार्य ही है..यूँ भी कहाँ कोई 'स्वयं' को खोज पाया है..??? वस्तुतः किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिये एक 'आत्मा' चाहिए होती है, जो आपको आपके दर्शन करा सके..आपका स्वयं से परिचय करवा सके..
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्रण..!!!!
रश्मिप्रभा जी....सच,जिनपे ईश्वर की विशेष कृपा होती है...उन्हें ही प्यार होता है...मैं तो सौभाग्यशाली हूँ इस को मान लें तो
ReplyDeleteथैंक्स.............सुषमा !
ReplyDeleteसंगीता जी...शुक्रिया !!
ReplyDeleteदिगंबर जी..प्रेम की खूबी यही है की उसमें सब स्वतः ही होता है
ReplyDeleteआपने सही कहा,बिलकुल...वन्दना.
ReplyDeleteप्रियंका....कुछ भी कठिन नहीं है...दुश्वार नहीं है...यदि मन में ठान लिया जाए .
ReplyDeletebhaut khub... happy diwali...
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें….!
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
सागर.........थैंक्स...आपको एवं आपके अपनों को दीपावली की शुभकामनायें !!
ReplyDeleteसंजय जी...धन्यवाद!!आपको एवं आपके अपनों को दीपावली की शुभकामनायें !!मैं अवश्य आउंगी ..आपके ब्लॉग पर.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाये............
ReplyDeleteप्रकाश पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये ..मेरी और से भी बधाहिया सवीकार कीजिये
विजयपाल जी ...शुक्रिया...आपको एवं आपके अपनों को भी दीपावली की ढेरों शुभकामनायें !
ReplyDeleteदिल में लगी आग को नहीं देखा
ReplyDeleteदेखा होता तो बता पाते धुंआ कहाँ हैं
सब देखा ...सब जाना ...आगे पीछे ,ऊपर नीचे,अंदर बाहर
बस इन्होने प्यार ही नहीं समझा...जाना ......क्या बात है बिना धुंवा की आग को कैसे जाने ?
सब कुछ देखने पर भी इन्होने .........नहीं समझा ....जाना ....वो कैसी समझ है जो प्यार को समझे ?
वो कैसी नज़र है जो प्यार को देख सके ? अच्छा लगने का कारण कैसे ढूंढे ?
इन्हीं प्रश्नों के उत्तर देने में मेरा सारा पढ़ा हुआ चुक जाता है......
निधि जी आप के सवालों में सिर्फ सवाल ही दिमाग से उठें है जवाब के लिए दिमाग चलना ही बंध हो जाता है ...
नयंक जी....सही तो है....कुछ चीज़ों के...सवालों के...लोगों के लिए जवाब दिल से ही निकलने चाहिए...वहाँ,दिमाग को कतई हावी नहीं होने देना चाहिए .आपका बहुत बहुत आभार....रचना को पसंद करने हेतु .
ReplyDelete..बहुत खूबसूरत रचना है निधि ..
ReplyDeleteइश्क के syllabus 'तर्क-ओ-ज्ञान' नहीं शामिल
इन विद्यार्थियों से न करें 'दर्शन-ओ-विज्ञान' की बातें
अमित ....शुक्रिया!!मेरी बात को पसंद करने और उससे सहमत होने के लिए भी ...प्यार के आगे तो..वाकई ...सब धरा रह जाता है..कोई रीजनिंग ...कोई लोजिक ...कोई ज्ञान...इसके आगे नहीं चलते .
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