ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Saturday, October 29, 2011
आदत
आदतें कितना बेबस कर देती हैं...
चार दिन हुए तुमसे बतियाते हुए
अब इधर बात नहीं हो पा रही ...तो मन अनमना सा क्यूँ है ?
मुलाक़ात ...
बात न हो पाने से...
मुझे यकीन है कि ...
तुम भी सोचते होगे मुझे दिन रात
इसीलिए,
शायद ...
मुझे इतनी हिचकियाँ आती हैं,आजकल .
मानो लो न..कि..
अच्छा ,चलो छोडो...
मुझे पता है ,
तुम्हें प्यार के लफ्ज़ से चिढ सी है
इसलिए ,
यह कहना तो ठीक है न
कि
हम दोनों को एक दूसरे से प्यार भले न हो
पर ,
हमें यकीनन एक दूसरे की आदत हो गयी है
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मनोभाओं का सुन्दर चित्रण .....कलात्मक है ,शुक्रिया जी /
ReplyDeleteयह कहना तो ठीक है न
ReplyDeleteकि
हम दोनों को एक दूसरे से प्यार भले न हो
पर ,
हमें यकीनन एक दूसरे की आदत हो गयी है
क्या बात है! क्या सचमुच इतना बैलेन्स भी हो सकता है?
हम दोनों को एक दूसरे से प्यार भले न हो
ReplyDeleteपर ,
हमें यकीनन एक दूसरे की आदत हो गयी है
हो जाता है सचमुच ऐसा !!
इस प्रकार की आदत ही प्यार बन जाती हैं, अच्छी लगी रचना .....
ReplyDeleteहाँ आदत ही सही... तुम कहाँ हो
ReplyDeleteरामकुमार जी...यह बेलेंस बनाना ही तो जीवन है
ReplyDeleteसंगीता जी...आदतें ..बड़ी ही मुश्किल से छूटती हैं
ReplyDeleteसुनील जी...बहुत -बहुत आभार,आपका .
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी...साथ चाहिए ..फिर चाहें उसे आदत मान लें या प्यार कह लें
ReplyDeleteआदतें कितना बेबस कर देती हैं...
ReplyDeleteचार दिन हुए तुमसे बतियाते हुए
अब इधर बात नहीं हो पा रही ...तो मन अनमना सा क्यूँ है ?
man ki bebasi ka bakhubi lekhan.......bahut khub
अनु...थैंक्स !!ब्लॉग पर आने ,रचना को पढ़ने एवं सराहने के लिए
ReplyDeleteसुंदर शब्द पिरोये हैं....बेहद खूबसूरत लगे निधि जी
ReplyDeleteसंजय जी...शुक्रिया!!
ReplyDeletebaht behtareen nidhi <3.........aadatein kab humein gher leti hein pata hi nahi chalta ........par inke bina guzaara bhi nahi hota !!..........humein bhi sach mein ek doosre ki aadat si ho gayi hai ......nahi???
ReplyDeleteगुंजन....शुक्रिया...ब्लॉग पर आकर टिप्पणी करने के लिए.आदत ..तो यकीनन हो चली है,तुम्हारी..तभी न इंतज़ार रहता है,तुम्हारा .आदतों से छुटकारा ...बहुत कठिन ...
ReplyDelete"..अफसूं-ए-कायनात बिखर गया, ऐसा क्यों ?
ReplyDelete..हरसू पसरा वही अफसाना, ऐसा क्यों ? .." # BKM #
behad khubsurat ... aisa lag raha hai mano dekh raha hoon ...
निधि ,
ReplyDeleteकैसे कह दिया कि बात नहीं होती है ....
मुलाकात नहीं होती है ....
दिन -रात ..अवचेतन मन क्या करता है ?
हिचकियाँ क्या कहती हैं ?
..अच्छा चलो छोड़ो ....
प्यार इस जग कि सबसे बड़ी और हसीन आदत है ...
तूलिका....आपने सही कहा कि निस दिन मन जिसको सोचा करे...उससे मुलाक़ात नहीं ...बात नहीं ...कैसे कहा जा सकता है....यहाँ, मैं उन लोगों की बात कर रही हूँ जिन्हें प्यार शब्द गाली सा लगता है...वो स्वीकार नहीं कर पाते कि ...वे प्रेम में हैं....उनको किन्ही और शब्दों...भावनाओं की आवश्यकता सदा रहती है अपना प्रेम छुपाने के लिए .
ReplyDeleteब्रजेश ...देखिये...देखिये..किसने रोका है....
ReplyDeleteप्यार ही हर और फैला है...इसीलिए वही दिखाई देता है चहुँ ओर.
अच्छी आदतें हैं..!!!
ReplyDeleteहाँ...अच्छी आदत है
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