ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Tuesday, November 1, 2011
सूजी आँखें
आज रात भर ...........
जम कर बरसेंगे बादल
तुम ,
मानो या न मानो
पर.......
मेरी इन बेमौसम बरसातों से
तुम्हारा.....
रिश्ता पुराना है .
कसम है... मुझे ,तुम्हारी
जो मेरी इन लाल ,सूजी हुई आँखों में
सिवा तेरे नाम के कोई और नाम हो तो .
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बढ़िया रचना
ReplyDeleteGyan Darpan
RajputsParinay
शुक्रिया.....रतन सिंह जी .
ReplyDeleteलाजवाब शेर....
ReplyDeleteसुषमा......शेर???
ReplyDeleteसिर्फ तुम्हारे लिए
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी ....हार्दिक धन्यवाद !!
ReplyDeletekyaa baat hai!!! bahut khoob.
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति ..बस तुम ही तुम हो ..
ReplyDeleteसूर्यकांत जी...आभार !!
ReplyDeleteसंगीता जी....कुछ लोगों से वाकई बरसातों का रिश्ता होता है
ReplyDeleteइस बरसात का अंदाज़ होगा सबसे जुदा......
ReplyDeleteकुमार.....हाँ इन बरसातों का...अंदाज़ जुदा होता है....तब होती हैं...जब दर्द का बादल जवां होता है
ReplyDeleteनिधि ,
ReplyDeleteआँखों से नमी का रिश्ता उतना ही पुराना है जितना दिल से दर्द का
तूलिका ....ये रिश्ते हमेशा से हैं...और हमेशा रहेंगे .
ReplyDeleteसुंदर चित्र - सुन्दर कविता !
ReplyDeleteसंजय जी...आपको चित्र एवं कविता अच्छी लगी...इसके लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteवो आँखों से बरसेंगे बादल.....बेमौसम बरसातों की तरह ...क्यों रिश्ता जो है उनसे ...सामाजिक या जो भी हो ....जो इस बरसातों और लाल ,सूजी हुई आँखों का कारण भी है ...फिर भी कसम से ये केहना सिवा उनके नाम, वोही आँखों में कोई और नाम नहीं है .......वो चाहे माने या न माने. एक गाना याद आ रहा है " खुश रहो,हर खुशी हैं तुम्हारे लिए , छोड़ दो आँसूं को हमारे लिए ...मेरे होते ना खुद को परेशान करो ....दे दो कांटे हमें फूल ले लो सभी ..." कुछ ऐसा मनो मंथन ....सूजी हुई आँखें सब बयां करती है ....रिश्ता , दर्द , विश्वास ..प्रेम ......मानलो एक घडी , अगर ये न होता तो बेमौसम बरसात ही क्यों होती ?
ReplyDeleteवाह निधि जी, आँखों में सूजन के बाद भी कसम और उसको निभाने का बेहतरीन अंदाज़...
ReplyDeleteबधाई आपको...
नयंक जी....आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया ...इन बेमौसम बरसातों का दर्द से गहरा रिश्ता है..
ReplyDeleteथैंक्स.......विनय जी..!प्यार हो..तो,उसे निभाने के अलावा कोई दूसरा चारा भी तो नहीं होता
ReplyDeleteवाह निधि, प्यार, आँखें, बरसात और आखों की सूजन, सब गुंथे हुए है एक साथ......एक सहज और सरल अभिव्यक्ति पर दिल में उतर जाने वाली........
ReplyDeleteशुक्रिया...अंजू!!प्यार बहुत खूबसूरत है..एक लाजवाब एहसास...पर,राह बड़ी कठिन है...खुशियाँ कम ..गम अधिक हैं...मुस्कान हैं पर आंसू भी कम नहीं...खिलखिलाती धूप की अपेक्षा बरसातें ज्यादा हैं....तभी न प्रेम दुश्वार है...निभाना कठिन है
ReplyDeleteखूबसूरत दर्द..!!!
ReplyDeleteदर्द और खूबसूरत ???
ReplyDelete