ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Thursday, November 3, 2011
कौन किसका करे त्याग
कहाँ चले गए हो?
क्यूँ चले गए हो?
मत जाया करो...
कुछ अच्छा नहीं लगता .
किसी से क्या...
तुमसे भी, कुछ कह नहीं पाती
अंदर ही अंदर सब सहती रहती हूँ.
न जाने मैं कितनी मौतें मरती हूँ .
तुमसे कुछ कहो,तो तुम अनसुना कर जाते हो .
बात बात पे...मोह त्याग का उपदेश झाड चले जाते हो
मैं पूछती हूँ ..
कि
मोह का,प्रेम का,लगाव का , स्नेह का,अनुराग का त्याग ही क्यूँ किया जाए
तुम क्यूँ नहीं कर देते ..
अपने अहम का ,दंभ का ,उदासीनता का ,निर्मोह्पन का ,वीतराग का त्याग ...
मेरे लिए...
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वाह, बहुत सुंदर
ReplyDeleteमहेंद्र जी....हार्दिक आभार ,रचना को सराहने हेतु .
ReplyDeleteमोह का,प्रेम का,लगाव का , स्नेह का,अनुराग का त्याग ही क्यूँ किया जाए
ReplyDeleteतुम क्यूँ नहीं कर देते ..
अपने अहम का ,दंभ का ,उदासीनता का ,निर्मोह्पन का ,वीतराग का त्याग ...
मेरे लिए...excellent nidhi ji
रश्मिप्रभा जी ...आप मुझे जी कह कर शर्मिन्दा न करें...आप मुझे नाम से पुकारें...मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा.रचना को पसंद करने हेतु,आभार.
ReplyDelete....Delicate and beautiful post...bahut khoobsurat!!!
ReplyDeleteसंजय जी...थैंक्स!!
ReplyDeletetyaag ke baad ye sath bahut khoobsurat ho jayega.....
ReplyDeleteकुमार...यह तो इसपे आधारित है कि कौन ...किसका त्याग करता है...प्यार रहता है....या ....अहं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...भावपूर्ण बधाई हो
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है ...
मनीष...धन्यवाद!!आपके ब्लॉग पर अवश्य आउंगी.
ReplyDeleteतुम क्यूँ नहीं कर देते ..
ReplyDeleteअपने अहम का ,दंभ का ,उदासीनता का ,निर्मोह्पन का ,वीतराग का त्याग ...
मेरे लिए
तुम क्यूँ नहीं कर देते ..
ReplyDeleteअपने अहम का ,दंभ का ,उदासीनता का ,निर्मोह्पन का ,वीतराग का त्याग ...
मेरे लिए...
...बहुत सुंदर..
बहुत ही गहन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteसंगीता जी...टिप्पणी हेतु धन्यवाद!!
ReplyDeleteकैलाश जी...रचना को सराहने हेतु आभार .
ReplyDeleteek uljhan si hai man me.... bhaut hi sundar abhivaykti.....
ReplyDeleteसागर...थैंक्स,पसंद करने के लिए .
ReplyDeleteसुषमा....नवाजिश!!
ReplyDeleteवाह क्या बात कही है…………शानदार रचना।
ReplyDeleteवंदना..शुक्रिया!!
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteप्रेम सरोवर जी...शुक्रिया...ब्लॉग पर आने के लिए .मैं भी आपके ब्लॉग पर अवश्य आउंगी .
ReplyDeletebhaut gahan saargarbhit rachna...
ReplyDeleteसागर ....शुक्रिया !!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteत्याग की अद्भुत अनुभूति..!!!!
ReplyDeleteप्रियंका...चलो,तुम्हें अच्छा लगा .
ReplyDeleteमरना छोड़ दो....
ReplyDeleteविलाप करना छोड़ दो....।
जीना शुरू कर दो....।
दी.............जीने से कौन भाग रहा है....पर,इंतज़ार तो किया ही जा सकता है
ReplyDeleteओह निधि कितनी एक सी है हमारी व्यथा ..कहीं परमात्मा ने कार्बन लगा के तो नसीब नहीं लिखा हमारा
ReplyDeleteतूलिका.....मुझे भी लगता है कि ...कुछ लोग क्यूँ इतनी जल्दी आपके करीब आ जाते हैं...उनसे जुड़ाव का कारण नहीं समझ आता पर वो अपने से लगते हैं....शायद उपरवाले का ही कुछ लेखा होता होगा
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