Thursday, November 3, 2011

कौन किसका करे त्याग



कहाँ चले गए हो?
क्यूँ चले गए हो?
मत जाया करो...
कुछ अच्छा नहीं लगता .
किसी से क्या...
तुमसे भी, कुछ कह नहीं पाती
अंदर ही अंदर सब सहती रहती हूँ.
न जाने मैं कितनी मौतें मरती हूँ .

तुमसे कुछ कहो,तो तुम अनसुना कर जाते हो .
बात बात पे...मोह त्याग का उपदेश झाड चले जाते हो
मैं पूछती हूँ ..
कि
मोह का,प्रेम का,लगाव का , स्नेह का,अनुराग का त्याग ही क्यूँ किया जाए
तुम क्यूँ नहीं कर देते ..
अपने अहम का ,दंभ का ,उदासीनता का ,निर्मोह्पन का ,वीतराग का त्याग ...
मेरे लिए...

31 comments:

  1. महेंद्र जी....हार्दिक आभार ,रचना को सराहने हेतु .

    ReplyDelete
  2. मोह का,प्रेम का,लगाव का , स्नेह का,अनुराग का त्याग ही क्यूँ किया जाए
    तुम क्यूँ नहीं कर देते ..
    अपने अहम का ,दंभ का ,उदासीनता का ,निर्मोह्पन का ,वीतराग का त्याग ...
    मेरे लिए...excellent nidhi ji

    ReplyDelete
  3. रश्मिप्रभा जी ...आप मुझे जी कह कर शर्मिन्दा न करें...आप मुझे नाम से पुकारें...मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा.रचना को पसंद करने हेतु,आभार.

    ReplyDelete
  4. ....Delicate and beautiful post...bahut khoobsurat!!!

    ReplyDelete
  5. संजय जी...थैंक्स!!

    ReplyDelete
  6. tyaag ke baad ye sath bahut khoobsurat ho jayega.....

    ReplyDelete
  7. कुमार...यह तो इसपे आधारित है कि कौन ...किसका त्याग करता है...प्यार रहता है....या ....अहं

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर रचना ...भावपूर्ण बधाई हो
    मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है ...

    ReplyDelete
  9. मनीष...धन्यवाद!!आपके ब्लॉग पर अवश्य आउंगी.

    ReplyDelete
  10. तुम क्यूँ नहीं कर देते ..
    अपने अहम का ,दंभ का ,उदासीनता का ,निर्मोह्पन का ,वीतराग का त्याग ...
    मेरे लिए

    ReplyDelete
  11. तुम क्यूँ नहीं कर देते ..
    अपने अहम का ,दंभ का ,उदासीनता का ,निर्मोह्पन का ,वीतराग का त्याग ...
    मेरे लिए...

    ...बहुत सुंदर..

    ReplyDelete
  12. बहुत ही गहन अभिवयक्ति.....

    ReplyDelete
  13. संगीता जी...टिप्पणी हेतु धन्यवाद!!

    ReplyDelete
  14. कैलाश जी...रचना को सराहने हेतु आभार .

    ReplyDelete
  15. ek uljhan si hai man me.... bhaut hi sundar abhivaykti.....

    ReplyDelete
  16. सागर...थैंक्स,पसंद करने के लिए .

    ReplyDelete
  17. सुषमा....नवाजिश!!

    ReplyDelete
  18. वाह क्या बात कही है…………शानदार रचना।

    ReplyDelete
  19. वंदना..शुक्रिया!!

    ReplyDelete
  20. आपके पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  21. प्रेम सरोवर जी...शुक्रिया...ब्लॉग पर आने के लिए .मैं भी आपके ब्लॉग पर अवश्य आउंगी .

    ReplyDelete
  22. सागर ....शुक्रिया !!

    ReplyDelete
  23. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  24. त्याग की अद्भुत अनुभूति..!!!!

    ReplyDelete
  25. प्रियंका...चलो,तुम्हें अच्छा लगा .

    ReplyDelete
  26. अग्निगर्भा अमृताNovember 7, 2011 at 12:34 AM

    मरना छोड़ दो....

    विलाप करना छोड़ दो....।

    जीना शुरू कर दो....।

    ReplyDelete
  27. दी.............जीने से कौन भाग रहा है....पर,इंतज़ार तो किया ही जा सकता है

    ReplyDelete
  28. ओह निधि कितनी एक सी है हमारी व्यथा ..कहीं परमात्मा ने कार्बन लगा के तो नसीब नहीं लिखा हमारा

    ReplyDelete
  29. तूलिका.....मुझे भी लगता है कि ...कुछ लोग क्यूँ इतनी जल्दी आपके करीब आ जाते हैं...उनसे जुड़ाव का कारण नहीं समझ आता पर वो अपने से लगते हैं....शायद उपरवाले का ही कुछ लेखा होता होगा

    ReplyDelete

टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

Followers