Wednesday, November 9, 2011

जीना चाहती हूँ


जबसे,
गए हो तुम
बहुत तन्हां हूँ मैं .
अपना अता पता भी मालूम नहीं
खुद की कोई खोज खबर नहीं

आओ............
तो, मैं मिलूं खुद से
तुमसे होकर ही...
मैं खुद तक पहुँच पाती हूँ .
जीवन को बहुत ढो चुकी हूँ ,
अब जीवन को जीना चाहती हूँ ....बिंदास !!

30 comments:

  1. भावों की सुंदर अभिव्यक्ति ...

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  2. रजनीश जी....आभार !!

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  3. रश्मिप्रभा जी ....सहज चाह ...सहज रूप से पूरी हो जाए...काश.

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  4. जीवन को बहुत ढो चुकी हूँ ,
    अब जीवन को जीना चाहती हूँ ....bahut khoob....

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  5. प्रियंका...धन्यवाद!!

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  6. महेंद्र जी....हार्दिक धन्यवाद!!

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  7. अंजू............थैंक्स!!

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  8. सुंदर अभिव्यक्ति..!!

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  9. वाह ...बहुत खूब ।

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  10. जीवन को जीने का आनद ही असल आनंद है ...

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  11. प्रियंका...तहे दिल से शुक्रिया !!

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  12. सदा.....धन्यवाद!!

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  13. दिगंबर जी....जीवन को पूरी शिद्दत से जीना ही असल जीना है.

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  14. सच.....खुद के अक्स से अलग जी कहाँ पाते हैं........

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  15. कुमार....यही तो सबसे बड़ी परेशानी है कि जीवन जीते हैं पर,जीना ही नहीं आता .

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  16. अब जीवन को जीना चाहती हूँ ....बिंदास !!मन के भावो की बेहतरीन प्रस्तुती....

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  17. सुषमा ....बहुत -बहुत शुक्रिया !!

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  18. जीवन को बहुत ढो चुकी हूँ ,
    अब जीवन को जीना चाहती हूँ ....मनोभाव का सहज अभिव्यक्ति..

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  19. निधि जी,
    आपने बहुत सुंदर लिखा की.
    जीवन बहुत ढो चुकी हूँ
    अब जीवन को जीना चाहती हूँ..उम्दा पोस्ट
    मेरी राय में आपको रचनाकार बनना चाहिए..
    कोशिश जारी रखे...मेरी बधाई स्वीकार करे...
    मेरे नए पोस्ट -वजूद-में आपका हार्दिक स्वागत है....

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  20. महेश्वरी जी ...आपका बहुत धन्यवाद !!

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  21. धीरेन्द्र जी..आपके ब्लॉग पर अवश्य आउंगी ...आपकी प्रशंसा हेतु आभार .

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  22. सब कुछ कह दिया..अब जीवन को जीना चाहती हूँ....बेहतरीन रचना निधि जी !!

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  23. behtareen nidhu.............''bindaas'' was just like n icing on d cake !!:))
    gulzar saab ki kuch panktiyaan yaad aa rahi hein......''tumhi se janmu toh shaayad mujhe panaah mile .....''<3

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  24. गुंजन...कोई भी काम करो ...कुछ भी करो...करना पूरी शिद्दत से चाहिए...

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  25. संजय जी.....आपका आभार.

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  26. निधि ! किसी के जाने और वापस आने के दरमियाँ इंतजार का लम्बा फासला होता है ...चले आओ न .....देखो न बेकरारी मेरी भी

    तुम्हारे जाने ...
    और लौट कर वापस आने के बीच
    मेरी आँखों सा गहरा
    आसुओं सा खारा
    एक गहरा समंदर है , इंतजार का ...
    इन्तेहा न करना
    जल्दी आना
    कहीं और खारा न हो जाये
    तुम्हारा समंदर
    मेरे आंसुओं से ....
    कहीं धुंधली न हो जाये
    रौशनी
    तकती आँखों की ...

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  27. तूलिका ...ये जाने और वापस आने के बीच का वक्त सदियों सा होता है ...बेकरारी का लिहाज कर ले कोई...

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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