ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Tuesday, November 22, 2011
बहुत उलझन में हूँ..............
बहुत उलझन में हूँ.....
समझ ही नहीं आ रहा
क्या करूँ?
खुद को खुद से जुदा कर
कैसे जियूं ???
तुम जाने वाले हो ....
बस,इसका है पता...
बाक़ी ,किसी चीज़ का
कोई होश नहीं .
बस, एक सवाल कि
करूँ तो क्या करूँ?????
अभी से थोड़ी दूरी बढ़ा लूँ..
मैं खुद को तैयार कर लूँ..
या चलने दूँ ...
जैसा सब चल रहा है
जो ,जब,जैसा होगा
उस वक्त देखा जाएगा .
दूरी बढाती हूँ..
तुम्हारी भी तकलीफ बढाती हूँ
अपने को भी परेशान पाती हूँ
पर,
जैसे -जैसे तेरे जाने का दिन
करीब आएगा
तुझे मुझसे दूर ले जाने के लिए .
सब सहन करना ...
सह कर जी पाना
मुश्किल नहीं ..
बहुत मुश्किल होगा
मेरे लिए .
खुद को तैयार करूँ...
अधूरेपन के लिए
अभी से
या
उस दिन,उस वक्त का
इंतज़ार करूँ .
तू ही बोल न...
क्या करूँ?????????
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बस चुप रहो न ...
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी...चुप रहना तो औ मुश्किलें पैदा करता है...........
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ... ।
ReplyDeleteकल 23/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे ....?
धन्यवाद!
रश्मिजी की सलाह पढ़ कर बस यही प्रतिक्रिया हुई :):)
ReplyDeleteबहुत सुंदर, क्या कहने
ReplyDeleteसदा....थैंक्स!!
ReplyDeleteमहेंद्र जी....आपका आभार !!
ReplyDelete्जो भी जाने वाला हो उसे उसकी अहमियत तो बतानी पडेग़ी कि उसकी क्या अहमियत है आपकी ज़िन्दगी मे …………चाहे हालात पर वश ना चले मगर पहले से मूँ ह तो नही मोडा जा सकता नही तो बाद मे दिल मे एक गिला रह जायेगा उम्र भर के लिये कि मैने ऐसा क्यो किया।
ReplyDeleteसंगीता जी....मुझे तो समझ नहीं आया कि आपने ऐसी प्रतिक्रया क्यूँ दी..अब लग रहा है कि कहीं बहुत खराब तो नहीं लिखा है....कि इस कारणवश रश्मि जी ने मुझे चुप रहने को कहा हो.
ReplyDeleteवंदना ....जाने वाले को अहमियत बता भी दो.पर उसके जाने से पहले खुद को तैयार कर पाना बहुत मुश्किल है.क्या करें..मन इसी दुविधा में रहता है ...कि क्या करें....पहले से ही दूरी बनाना सही है या उस वक्त जब बिछड़ने की घडी आये तब एक झटके में जो हो ..सो हो.
ReplyDeletebhaut hi khubsurat abhivaykti....
ReplyDeleteसागर........धन्यवाद!!
ReplyDeleteजो ,जब,जैसा होगा
ReplyDeleteउस वक्त देखा जाएगा .
......................
खुद को तैयार करूँ...
अधूरेपन के लिए
अभी से
या
उस दिन,उस वक्त का
इंतज़ार करूँ .
तू ही बोल न...
क्या करूँ?????????
Bahut sundar....
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प्रकाश जी...ब्लॉग पर आने के लिए..शुक्रिया!१
ReplyDeletesamay aane par khud hi shakti bhi aa jayegi sahne ki..........
ReplyDeleteबहत खूबसूरती से पिरोया है भावनाओं के फूलों को
ReplyDeleteयह उलझन बहुत दर्द देती है....बस दर्द....
ReplyDeleteमन की उलझन को बहुत सटीक बयां किया है आपने।
ReplyDeleteसादर
मृदुला जी...वक्त सबसे बड़ा मरहम है....पर हाँ,उसके काम करने की भी अपनी ही गति है..
ReplyDeleteममता जी....तहे दिल से आपका शुक्रिया!!
ReplyDeleteकुमार....दर्द से ही रिश्ता गहरा हो जाता है..बस.
ReplyDeleteयशवंत....हार्दिक धन्यवाद!!
ReplyDeleteउलझन को बुनकर कितनी सुन्दर रचना रच दी आपने....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
सादर...
संजय जी....आपको रचना अच्छी लगी ...आभारी हूँ !!
ReplyDeleteअधूरेपन की व्यथा को बखूबी अपनी लेखनी के माध्यम से सबके सामने रखा है आपने ...आभार
ReplyDeleteअंजू....आपका शुक्रिया कि आपने रचना को पढ़ा और सराहा
ReplyDelete.
ReplyDeleteकहाँ कहाँ से जुदा कर सकोगे तुम मुझको
हज़ार रिश्तों से तुमसे जुड़ा हुआ हूँ मैं
जाने वाले जाते कहाँ हैं निधि ! वो तो और गहरे समा जाते हैं .....कुछ ऐसे कि अगर हम खुद चाहें तो भी अलग होना मुश्किल होता है ..................हाँ! शिकायत किसी और से है "मुझे यूँ ही कर के ख्वाबों से जुदा , जाने कहाँ छुप के बैठा है खुदा"....................और हाँ ! जानना चाहती हो न कि क्या करूँ?......"लौट कर कभी न कभी तो आएगा , वो गया वक़्त नहीं है जो आ न सके ".................
तूलिका....यही चीज़ तो तकलीफ देती है ...समझ ही नहीं आता कि क्या करें ...
ReplyDeleteमन बनाते हैं कि कोई दूर जा रहा है तो थोडा अपने को पहले से इसके लिए तैयार करें ..तो खुद को तकलीफ कम होगी...पर,जब ऐसा करते हैं..मन को कहीं और लगाने की कोशिश करते हैं तो पाते हैं कि खुद को और अगले को..दोनों को और ज्यादा परेशान कर रहे हैं...
कहाँ जाएँ..क्या करें....बड़ी असमंजस की स्थिति होती है
मैं मानती हूँ कि जाने वाले जाते कहाँ हैं..और गहराई से जज़्ब हो जाते हैं...अंदर कहीं...
... बहुत सुंदर रचना है .. निधि ....
ReplyDeleteउलझने न हुई कम कभी ज़माने में
और उलझता गया मैं सुलझाने में
... बहुत सुंदर रचना है .. निधि ....
ReplyDeleteउलझने न हुई कम कभी ज़माने में
और उलझता गया मैं सुलझाने में
बड़े दिन बाद.......अमित ,आपका कुछ लिखा, पढ़ने को मिला ..उलझनों का स्वभाव ही यही है शायद...उन्हें जितना सुलझाओ वो उतना ही उलझती जाती हैं .
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