Tuesday, November 22, 2011

बहुत उलझन में हूँ..............


बहुत उलझन में हूँ.....
समझ ही नहीं आ रहा
क्या करूँ?
खुद को खुद से जुदा कर
कैसे जियूं ???

तुम जाने वाले हो ....
बस,इसका है पता...
बाक़ी ,किसी चीज़ का
कोई होश नहीं .

बस, एक सवाल कि
करूँ तो क्या करूँ?????
अभी से थोड़ी दूरी बढ़ा लूँ..
मैं खुद को तैयार कर लूँ..
या चलने दूँ ...
जैसा सब चल रहा है
जो ,जब,जैसा होगा
उस वक्त देखा जाएगा .

दूरी बढाती हूँ..
तुम्हारी भी तकलीफ बढाती हूँ
अपने को भी परेशान पाती हूँ
पर,
जैसे -जैसे तेरे जाने का दिन
करीब आएगा
तुझे मुझसे दूर ले जाने के लिए .
सब सहन करना ...
सह कर जी पाना
मुश्किल नहीं ..
बहुत मुश्किल होगा
मेरे लिए .

खुद को तैयार करूँ...
अधूरेपन के लिए
अभी से
या
उस दिन,उस वक्त का
इंतज़ार करूँ .
तू ही बोल न...
क्या करूँ?????????

31 comments:

  1. रश्मिप्रभा जी...चुप रहना तो औ मुश्किलें पैदा करता है...........

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  2. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ... ।

    कल 23/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे ....?
    धन्यवाद!

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  3. रश्मिजी की सलाह पढ़ कर बस यही प्रतिक्रिया हुई :):)

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  4. सदा....थैंक्स!!

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  5. महेंद्र जी....आपका आभार !!

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  6. ्जो भी जाने वाला हो उसे उसकी अहमियत तो बतानी पडेग़ी कि उसकी क्या अहमियत है आपकी ज़िन्दगी मे …………चाहे हालात पर वश ना चले मगर पहले से मूँ ह तो नही मोडा जा सकता नही तो बाद मे दिल मे एक गिला रह जायेगा उम्र भर के लिये कि मैने ऐसा क्यो किया।

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  7. संगीता जी....मुझे तो समझ नहीं आया कि आपने ऐसी प्रतिक्रया क्यूँ दी..अब लग रहा है कि कहीं बहुत खराब तो नहीं लिखा है....कि इस कारणवश रश्मि जी ने मुझे चुप रहने को कहा हो.

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  8. वंदना ....जाने वाले को अहमियत बता भी दो.पर उसके जाने से पहले खुद को तैयार कर पाना बहुत मुश्किल है.क्या करें..मन इसी दुविधा में रहता है ...कि क्या करें....पहले से ही दूरी बनाना सही है या उस वक्त जब बिछड़ने की घडी आये तब एक झटके में जो हो ..सो हो.

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  9. सागर........धन्यवाद!!

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  10. जो ,जब,जैसा होगा
    उस वक्त देखा जाएगा .
    ......................
    खुद को तैयार करूँ...
    अधूरेपन के लिए
    अभी से
    या
    उस दिन,उस वक्त का
    इंतज़ार करूँ .
    तू ही बोल न...
    क्या करूँ?????????

    Bahut sundar....
    www.poeticprakash.com

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  11. प्रकाश जी...ब्लॉग पर आने के लिए..शुक्रिया!१

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  12. samay aane par khud hi shakti bhi aa jayegi sahne ki..........

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  13. बहत खूबसूरती से पिरोया है भावनाओं के फूलों को

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  14. यह उलझन बहुत दर्द देती है....बस दर्द....

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  15. मन की उलझन को बहुत सटीक बयां किया है आपने।

    सादर

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  16. मृदुला जी...वक्त सबसे बड़ा मरहम है....पर हाँ,उसके काम करने की भी अपनी ही गति है..

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  17. ममता जी....तहे दिल से आपका शुक्रिया!!

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  18. कुमार....दर्द से ही रिश्ता गहरा हो जाता है..बस.

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  19. यशवंत....हार्दिक धन्यवाद!!

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  20. उलझन को बुनकर कितनी सुन्दर रचना रच दी आपने....

    बहुत सुन्दर....
    सादर...

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  21. संजय जी....आपको रचना अच्छी लगी ...आभारी हूँ !!

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  22. अधूरेपन की व्यथा को बखूबी अपनी लेखनी के माध्यम से सबके सामने रखा है आपने ...आभार

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  23. अंजू....आपका शुक्रिया कि आपने रचना को पढ़ा और सराहा

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  24. .
    कहाँ कहाँ से जुदा कर सकोगे तुम मुझको
    हज़ार रिश्तों से तुमसे जुड़ा हुआ हूँ मैं
    जाने वाले जाते कहाँ हैं निधि ! वो तो और गहरे समा जाते हैं .....कुछ ऐसे कि अगर हम खुद चाहें तो भी अलग होना मुश्किल होता है ..................हाँ! शिकायत किसी और से है "मुझे यूँ ही कर के ख्वाबों से जुदा , जाने कहाँ छुप के बैठा है खुदा"....................और हाँ ! जानना चाहती हो न कि क्या करूँ?......"लौट कर कभी न कभी तो आएगा , वो गया वक़्त नहीं है जो आ न सके ".................

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  25. तूलिका....यही चीज़ तो तकलीफ देती है ...समझ ही नहीं आता कि क्या करें ...
    मन बनाते हैं कि कोई दूर जा रहा है तो थोडा अपने को पहले से इसके लिए तैयार करें ..तो खुद को तकलीफ कम होगी...पर,जब ऐसा करते हैं..मन को कहीं और लगाने की कोशिश करते हैं तो पाते हैं कि खुद को और अगले को..दोनों को और ज्यादा परेशान कर रहे हैं...
    कहाँ जाएँ..क्या करें....बड़ी असमंजस की स्थिति होती है
    मैं मानती हूँ कि जाने वाले जाते कहाँ हैं..और गहराई से जज़्ब हो जाते हैं...अंदर कहीं...

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  26. ... बहुत सुंदर रचना है .. निधि ....

    उलझने न हुई कम कभी ज़माने में
    और उलझता गया मैं सुलझाने में

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  27. ... बहुत सुंदर रचना है .. निधि ....

    उलझने न हुई कम कभी ज़माने में
    और उलझता गया मैं सुलझाने में

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  28. बड़े दिन बाद.......अमित ,आपका कुछ लिखा, पढ़ने को मिला ..उलझनों का स्वभाव ही यही है शायद...उन्हें जितना सुलझाओ वो उतना ही उलझती जाती हैं .

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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