Friday, November 20, 2015

चुनना

तुमने चुनी अपनी सुविधा
अपनी पसंद को जिया
किसी और के मुताबिक़ चलना
किसी के जज़्बातों की कद्र करना
कभी ये सीखा ही कहाँ 
तुम तो फिर तुम हो न आखिर
अपने लिए जीते हो अपने लिए ही जियोगे
बाक़ी किसी की परवाह भला क्यों करोगे
यह जानते बूझते मैंने ठानी है
तुमसे कुछ कहना बेमानी है
अब ...बस अपने आप को
समेटने की कोशिश है
संभालने का प्रयास है
धीरे धीरे अपने को समझाना है
समझाते हुए ख़ुद को सिखलाना है
कि कुछ बातें अपने हाथ नहीं होतीं
और तुमसे जुड़ा मेरा सब कुछ
इन्हीं बातों में आ जाता है

Monday, October 12, 2015

मुल्तवी

मुल्तवी कर दिया है...
तुमसे कुछ कहना
कि पता है ,सुनोगे नहीं
सुन जो लिया तो
समझोगे नहीं
और गर समझ लिया
तो भी...मानोगे कतई नहीं
तो कहने का फायदा नहीं
छोड़ो न...
जाने देते हैं
सारी कही अनकही
बातें छोटी छोटी सी
या कहानी लंबी सी
दरमियां बची...
इक ज़िन्दगी अजनबी सी

Thursday, October 8, 2015

अवसाद

बहुत घने साये हैं
उदासी के
दिन रात सब हैं
बासी से

क़दम फिसलते जा रहे हैं
अवसाद के
इस अंधे कुएं की ओर
रोकना चाह कर भी
चलता नहीं इनपे ज़ोर
अच्छा बुरा लगना सब बंद हो गया है
ऊपर से सब चाक चौबंद हो गया है
पर असलियत कुछ और है
तुम्हारी सख़्त ज़रूरत का दौर है

कोई आस बची नहीं
कोई प्यास रही नहीं
एक आखिरी पुकार
तुम्हारे लिए यार कि
बाहर खींच लो उसे
हताशा के दलदल से
रोज़ मर रहा है
वो न जाने कब से
रात और नींद में उसकी
दुश्मनी हो गयी है
दिन भर अजीब सी उसकी
मनःस्थिति हो गयी है
कौन कौन से कहाँ कहाँ के
कितने ऊल जुलूल ख़्याल हैं
आजकल पास उसके
ढेरों फ़िज़ूल से सवाल हैं

तुम बाँह उसकी थाम लो
खींच के बाहर निकाल लो
वक़्त ज़रा सा भी न खराब करो
सोचो मत, जो करना है अब करो
आस की,विश्वास की डोर थमाओ उसे
आशा का सवेरा दिखाओ उसे
आवाज़ दो यार अब जगाओ उसे

Saturday, September 5, 2015

शिक्षक दिवस

वही कुछ सीख पाया है
जिसने सीखना चाहा है

माँ बाप यार दोस्तों ने
कुछ न कुछ सिखाया है

हर तजुर्बा खुद बेमिसाल
जिसने जीना बताया है

हर सबक सीख लेगा वो
उस्ताद उसका सरमाया है

हादसों औ ज़ख्मों तक ने
तरबीयत* को अपनाया है

*teaching

सीखने सिखाने वालों को आज के दिन की मुबारकबाद!!

Tuesday, September 1, 2015

ख़्वाब हो तुम

क्या था वो
सुबह को तो
याद नहीं रहता जो
बस होता रहता है
इक अच्छा सा एहसास
कि जो देखा वो था ख़ास
उस ख़्वाब सरीखे हो तुम

ख़्वाब हो तुम वही बने रहना
खूबसूरत  प्यास बने रहना
ख़्वाबों का होना ज़रूरी है
बताते हैं ये
कितनी तमन्नायें अधूरी हैं

काली रातों की नाउम्मीदी में
तुमसे आस का सवेरा झांकता है
तुम्हें सच करने की कोशिश में
पा लेने की उम्मीद पे
कोई अपने दिन रात काटता है

Monday, August 31, 2015

उम्मीद

तू मुझसे रूठा
तेरा साथ छूटा 
ज़िन्दगी वीरान
ख़ुशी न मुस्कान
कहीं से कोई ख़बर आती नहीं
तुम तक कोई डगर जाती नहीं

तेरे सिवा ...
न कोई था न कोई और है
कहूँ क्या....
नाउम्मीदी का एक दौर है

तेरी बातें तेरी यादें 
ढाँढस बंधाती हैं
मेरी आस का चिराग़
दिन रात जलाती हैं 
कहीं कोई तो चिंगारी 
है अब तक बाकी 
जो सुलगती और जलाती है 
नाउम्मीदी के इस दौर में भी
उम्मीद मरने नहीं पाती है

Sunday, August 30, 2015

ध्यान से सुनना तुम


इसे फुसला लेना तुम
यूँ ही बहक जाएगा
बुद्धु है दिल मेरा
इक इशारा करना तुम
साथ तुम्हारे चल देगा
है पागल मनचला
आवाज़ जो दोगे तुम
हर हाल चला आएगा
कि ज़िद्दी बड़ा
कोई इम्तिहाँ हो तैयार ये
जब जैसे चाहे आज़माना
मन मेरा ... सरफिरा

कान नहीं देते हो
मेरी किसी बात पे
पर इस बात को
ध्यान से सुनना तुम
क़सम से ये जी जायेगा
कि प्यार निभाना तुम
तेरे बिन कहीं न जाएगा
इसका ठौर ठिकाना तुम

Friday, August 28, 2015

सुनो न

यार सुनो न
एक बात कहनी है
वो जो अपने होठों पे
तुमने मुस्कान पहनी है
वो यूँ ही सजाये रखना
मैंने,
तेरे हिस्से के सारे आंसू
मांग लिए हैं रब से
एवज में दे दी हैं
अपने हिस्से की
सारी खुशियाँ और हंसी।
शर्त सिर्फ इतनी सी
दिन हो या रात हो
कैसे भी हालात हों
यूँ ही आसपास रहना
मेरे संग साथ रहना
सदा

Thursday, August 27, 2015

यायावर

यायावर हूँ
घुमक्कड़ी...काम मेरा
बेमतलब इधर उधर भटकते रहना
बिन काम के यहाँ वहाँ फिरते रहना
तेरे दिल के सिवा न घर न मकाँ मेरा

तुमसे छूटा तो फिर कहीं बंध न सका
ज़िन्दगी में इक ठौर कभी रुक न सका
भागता रहा हमेशा कहीं थम न सका
कोई चीज़ कोई बंधन मुझे कस न सका

प्यार खोया और मैं उसे ढूंढता रह गया
वो ख़त हूँ जिसका पता लापता हो गया
क्या करता यार
तेरे प्यार में पागल हुआ आवारा हो गया
तेरे दिल से निकला तो मैं बंजारा हो गया

Wednesday, August 26, 2015

तोहफे

तुम्हारी दी हुई चीज़ जब
दरकती टूटती ..
अटकती बिगड़ती ..
फिसलती छिटकती है
तो ,पता नहीं क्यों
उसे हमारे रिश्ते से जोड़ के
देखने लग जाती हूँ
इतना कुछ खो चुकी हूँ पहले
कि अब कुछ भी खोने से डरती हूँ

तुमने जो कुछ मुझे दिया है
फिर वो चाहें
मोहब्बत का एहसास हो
या ये भरोसा कि तुम पास हो
कई ख़त दुआओं से भरे हुए
या छोटे बड़े अनगिन तोहफे
अब  ,
जब कभी इनमें से
किसी को कुछ होता है
इक डर सताता है मुझे
सब बिखर जाने का

उसके बाद अक्सर मनाती रहती हूँ
मुहब्बत का कभी एक लम्हा न छूटे
तेरे प्यार पे जो है भरोसा वो न टूटे
दुआओं के ख़त में न देर हो कभी
चाहत का रंग फीका न पड़े कभी

Tuesday, August 25, 2015

अबोला


आजकल तुमसे कह नहीं पाती
दिल की कोई बात
यही वजह सब अनकहा
कागज़ पे ख़ुद चला आता है
मेरे लिखे लफ़्ज़ों में तुम हो
स्याही में घुली हर बात
बहती है खुद को कहती है

पहले तुमसे सब बोल देती थी
रीत जाती थी
अब अंदर ही अंदर घुटती हूँ
भीतर से भरी रहती हूँ
कलम से कागज़ तक का सफ़र
सिर्फ़ तुमसे अपनी कहने का
इक नया तरीका भर है

अबोला...
अच्छा है कई मायनों में
देखो न इसमें भी कुछ न कुछ
पॉज़िटिव ढूंढ लिया मैंने
हर चीज़ में कुछ अच्छा खोजना
तेरी ये बात भूली नहीं अब तक मैं
अब तक तेरी ये बात भूली नहीं मैं।

Monday, August 24, 2015

चुनाव

सारे तरीके
सब हथकंडे
पता थे उसे
कब क्या करे
जो मुझे अच्छा लगे
किस बात को न करे
कि बुरी लगती है मुझे
कैसे मुझे प्यार करे
कब मुझसे नाराज़ रहे
कहाँ दर्द होगा
क्या कहाँ कितना छुपा होगा
किधर चोट लगेगी
कैसे आंसुओं की थमी नदी बहेगी
कब होठों पे हँसी खिलेगी
किस बात पे ख़ुशी छलकेगी

पर,आजकल
वो सिर्फ और सिर्फ
वही करता है जान के
जिससे मुझे खराब लगे।
उन बातों को कहता है
जिससे मेरा जी जले
एक पल चैन न पड़े
उसकी हर बात खले

उसके तरीके उसके से निराले
अजब ढंग हैं प्यार जताने के
अब हैं तो हैं
जो है जैसा है वो
चुनाव तो मेरा है

Sunday, August 23, 2015

हो तो क्या हो?

अच्छा किसी को गर इतना चाहा जाये .....
कि प्यार में डुब कर तरना आ जाये
उसपे मर कर जीना आ जाये
इतनी दूरी हो कि क़रीब आ जाये
इतना भूलें कि वो बेहद याद आये
मैं बन जाऊं जो धरती सी
तो वो झुका आसमान लगे
इतनी कठिन हो चीज़ें
कि बाक़ी सब आसान लगे
सच्चा लगे वो इस क़दर
कि दुनिया बेईमान लगे
आस पास सारे इंसान हैं वही रहे
और वो एक शख़्स भगवान लगे
......तो हो तो क्या हो????

Saturday, August 22, 2015

सच्चाई

हार जाती हूँ हर बार
दिल दिमाग की लड़ाई में यार
दिमाग कहता है सब छोड़ के आगे बढ़ो
दिल समझाता है रुको एक मौक़ा और दो
इनकी इस खींचातानी में पिसती जाती हूँ
यूँ देखें तो इनकी कोई ख़ास गलती नहीं
सामने जब तुम आते हो
दिल दिमाग दोनों  में से
किसी की भी चलती नहीं
मेरी तरह ये फेर में पड़ जाते हैं
क्यूंकि.............
इन्होंने आज तक इतनी सच्चाई से
झूठ बोलते किसी को भी देखा नहीं

Friday, August 21, 2015

प्यार में पागल

नाराज़ थी तुमसे न जाने कबसे
पर जब बात हुई
कुछ मैंने कही
कुछ तूने कहीं
मेरा कहा कितना सुना पता नहीं
तेरी हर बात सीधी दिल में उतरी
उन बातों को दिल में संजोती रही
उनके साथ जीती रही मरती रही
कहां गया गुस्सा कहाँ गयी नाराज़गी
पता नहीं
तुमने कहा पागल हो क्या
मैं क्यों ऐसा करूंगा भला
बस ...तेरा इतना कहना
और मैंने जिसने सब झेला था
 क्यूं और कैसे  सब भुला दिया
तेरे इस एक पागल हो क्या ने
सब पिछला किया धरा बिसरा दिया
प्यार में पगलाना
इसी को कहते हैं क्या ??

Thursday, August 20, 2015

समझौता

कभी किसी का मान रखने को
तो कभी मन रखने को
अधिकतर इसलिए कि
किसी को खराब न लगे
कोई बुरा न मान जाये
कभी किसी की इज़्ज़त की खातिर
तो कहीं किसी के प्यार के लिए
कहीं रिश्ता बचाने को
कभी बात समझाने को
कभी किसी बड़े की खातिर
तो कई बार छोटों के लिए
समझौते कर के अब ऊब गयीं हूँ ...
इस तरह के जीने से
बिना सही गलत की सोचे
झुकते चले जाने से
दूसरा दबाता जाये
खुद के दबते जाने से थक चुकी हूँ

बचपन से लेकर अब तक
नम्र रहना ,लड़ना मत ,
बड़ों का कहा मानना
छोटों का कहा सुनना
यह सब सुन सुनकर
बुरी तरह से पक गयी हूँ

क्यों नहीं सिखाता कोई
नम्र रहकर,बिना लड़े
सही गलत में चुनाव करना
कि जो सही है
फिर वो बड़ा है या कि छोटा
यह मायने रखता नहीं
उसका कहा सुनना
उसका कहा मानना
जो सही लगे
बस वही करना।
जो गलत हो या गलत लगे
उसको न सहना...
तुम लड़ना ।

कोई रिश्ता कभी न ढोना
परिवार समाज की दुहाई पे
कहना तुम यह खुल के
नहीं चाहिए ऐसा कोई रिश्ता
जहां उसूलों को छोड़ना पड़े
रीढ़ की हड्डी में लोच आये जिससे
ऐसा कोई सम्बन्ध गवारा ही नहीं

बात समझने की सीखने की
यूँ भी बस इतनी सी ही
समझौतों की एक हद होती है
और खुद्दारी पे अगर बात आये
तो उसपे कायम रहना
ज़िन्दगी कहती है

Wednesday, August 19, 2015

मोह के धागे

अपनी खुशियों का कारण माना था
सिर्फ तुम्हें मुस्कुराहटों में जाना था
न जाने कब तुमसे जुड़ती चली गयी
तेरे मोह के धागों में बंधती चली गयी
अपना जुड़ना ..जुड़ के बंधना ..
पता था
जो नहीं पता तो वो ये था
कि आखिर तेरे मन में क्या था
तेरी फुरसत का शग़ल भर थी मैं
या दिल में होने वाली हलचल थी मैं

अब तेरी ज़िन्दगी से बेदखल हूँ मैं
वाकिफ हूँ कहीं दाखिल नहीं हूँ मैं
पर  इसके बाद भी उदास नहीं हूँ मैं
आखिरकार सीख ही लिया मैंने
खुशियों को खोजना तेरे बिना भी
नयी जगहों में नये लोगों में
ढूंढ लेती हूँ हंसने की वजह भी

तुमसे लगाव था क्यूंकि
सो वजह मान लिया था
तुमको अपनी ख़ुशी की
फिर सोचा क्यों गिरवी रहे
तेरे पास ......
चाभी मेरी हंसी ख़ुशी की

जुड़ाव के वो धागे
काट रही हूँ धीरे धीरे
जिससे प्यार सिर्फ प्यार रहे
न किसी को साधे न किसी को बांधे
न सधे  न बंधे कभी किसी बंधन में

Tuesday, August 18, 2015

इश्क़ की लत

कुछ कह दे कैसे भी कहे कहीं कहे
क्यों कर देती हूँ क्यों मान लेती हूँ
सब, बिना कुछ सोचे ,बिन हिचके।
कितनी बार उठना तो दूर हिलने का मन नहीं होता
पर तेरे लिए दौड़ लेती हूँ ख़ुशी ख़ुशी

कई बार तुम्हारी तल्खी देख
बात करना तो बहुत दूर की बात
पलट के देखने को जी नहीं करता
फिर तुम एक स्माइली भेज देते हो
मैं पिछला रवैया भूल जाती हूँ

मुझसे जुड़ी लगभग हर बात तुम भूल जाते हो
इस सब के बाद भी मेरा जो कुछ तुमसे जुड़ा है
उसमें कोई बेतरतीबी नहीं हुई कभी
मुझे सब सिलसिलेवार याद रहता है

तुम कितनी ही बातें बताना ज़रूरी नहीं समझते
कह देते हो बताने लायक कुछ नहीं था
जबकि मेरा हाल यह है कि
मामूली सी बात हो या कोई ज़रूरी किस्सा
तुमसे न कहूँ तो चैन नहीं पड़ता

छोटी से छोटी बात पे तुम्हारी बड़ी सी ईगो है
इससे उलट तुम्हारे सामने
मैं बहुत चाहती हूँ कि खड़ी रहूँ सीधी पर...
मेरा सेल्फ रेस्पेक्ट ऐन उसी वक़्त
न जाने कहाँ तेल लेने चला जाता है

तुम बता दो प्लीज़
कैसे बन जाऊं तुम्हारी सी
फ़िक्र न करूँ ज़रा सी भी
बदतमीज़ हो जाऊं थोड़ी सी
ईगो कर लूँ आसमान सा
करूँ न तेरा ध्यान ज़रा सा
कोशिश जारी

मैं हारी
इश्क़ की लत ...कमबख्त....
सब पे भारी

Monday, August 17, 2015

ज़रुरत का क्या है


भविष्य ने बुलाया था तुम्हें
तरक्की ने रास्ता निहारा था
तुम्हारी अपनी ज़रूरतें थीं
हमेशा अपनी सहूलियतें
सब चुना अपनी मर्ज़ी से
आज भी और कल भी
अब लौट आये हो फिर
इस उम्मीद पे
मैं तो मिलूंगी
वहीं खड़ी इंतज़ार में
बड़ी देर इंतज़ार किया था
तुम जाते वक़्त
कह नहीं गए थे
वापस आओगे
तब भी ……
पर ,देर कर दी यार तुमने
अभी तक तुमने जो चाहा किया
अबकि मैंने तुमसे ये सीख लिया
जो दिल ने चाहा वो चुना
तुम्हें छोड़ अपनी खुद्दारी चुनी
वैसे भी तुम्हारा तो कोई पता नहीं
आज लौटे हो कल फिर चल दो कहीं
प्यार तो मुझसे था नहीं कभी
और ज़रुरत का क्या है
वो तो बदल जाती हैं
लोगों की … आय दिन ही

Sunday, August 16, 2015

जाने के बाद


जाने के बाद
वो खाली कमरा
याद करता है तुम्हें।
जहाँ सांसें महकती हैं तुम्हारी
बातें अब भी बतियाती हैं तुम्हारी
नाराज़गियां खटकती हैं तुम्हारी
परेशानियां परेशां हैं तुम्हारी
मुस्कुराहटें मुस्काती हैं तुम्हारी।
छोड़ गए…
जाना ही था तुम्हें।
कमरा खाली…
मैं अकेली……
आँखें भरी भरी
और दिल भारी

Saturday, August 15, 2015

आज बस इतना करना

जिन देशभक्तों ने आज़ादी के लिए लड़ी लड़ाई
जन जन के मन में स्वतंत्रता की अलख जगाई
फांसी पे लटक गए और न जाने कितने कष्ट सहे
उनकी बदौलत आज हम आज़ाद हो सांस ले रहे

जो दिन रात भारत माँ की सीमा की रक्षा करते हैं
उस हरेक सैनिक को आज दिल से नमन करते हैं
वीरगति को जो प्राप्त हुए तुम उनका सम्मान करो
तिरंगें में जो लिपट के आये तुम उनका ध्यान करो

मत भूलो कभी भारत माँ के उन सपूतों का बलिदान
जिन्होंने देश के गौरव पे न्योछावर कर दी अपनी जां
उनको कुछ देना है तो बढ़ाओ हाथ कर लो एक वादा
जो करोगे उसमें देशहित का ध्यान रखोगे सबसे ज़्यादा

Tuesday, August 11, 2015

दूरियाँ


धीरे धीरे सरकते हुए
पता ही नहीं चला कब
दूरियां इतनी बढ़ गयीं
कि हम दो किनारे हो गये
थोड़ी मेरी खामोशी थी
तो कुछ तेरी चुप्पी भी
दोनों का नतीजा ये हुआ
कि दरमियां फासले हो गये
न मैंने कहा कुछ कभी
न तुम ही कह पाये
दिल में बातें रखने से हुआ यूँ
कि ये हाल हमारे हो गये
महसूस हुई बेरुखी तेरी
तुम्हें भी लगी दूरी सी
जिस बात का डर था
सच वही हादसे सारे हो गए

Monday, August 10, 2015

दोराहे पे नहीं


मैं बदली थोड़ा
कुछ तुम बदले
हालातों ने फिर
साथ करवट बदले
वक़्त तो यूँ भी
खातिर किसी की
रुका नहीं है कभी
पते की बात बस इतनी सी
एक बार प्यार हो जाए जो
तो वो कभी जाता कहीं नहीं
आज भी तुम हो वहीँ
दिल के कोने में किसी
पर हाँ..अब हो
हक़ीक़त से दूर बड़े
बस ख़्वाबों और यादों में
महसूस होती रहती
है तुम्हारी मौजूदगी

शुक्रिया दोस्त तुम्हारा
जो ज़िन्दगी अब किसी दोराहे पे नहीं

Saturday, August 8, 2015

बदल जाओ तुम भी


तुम्हारा इंतज़ार किया
उम्र तमाम किया
बार बार ये दोहराते क्यों हो
हर दफा ये जतलाते क्यों हो
बात बात पे ...जब देखो
केवल इस बात की
दुहाई देते नज़र आते क्यों हो

यूँ भी ये जो इंतज़ार किया
वो तुम्हारा मन किया ..
तो तुमने किया

मैंने तो कभी कहा था नहीं
रुकना या इंतज़ार करना मेरा
मैंने तो चाहा था यही
कि जैसे वक़्त बदला ,परिस्थितियां बदलीं
ज़िन्दगी ने एक नयी राह पकड़ी
वैसे ही बढ़ जाओ आगे तुम भी

हाँ...बिल्कुल मेरी तरह बदल जाओ तुम भी

समझदारी


तुम्हारी कितनी बातें दिखती हैं
समझ आती हैं दर्द दे जाती हैं
दिल चाहता है तुमसे सब कह दूँ
अपने मन का बोझ हल्का कर लूँ
पर फिर लगने लगता है
क्या होगा भला तुमसे बोलकर
तुम जो हो जैसे हो जहां हो
रहोगे वही वैसे ही वहाँ के होकर
यूँ भी तुमसे कुछ कहना फ़िज़ूल है यार
अपने आगे किसी की तुमने सुनी है क्या
जो मेरी सुनोगे यार।

इसलिए चुप हूँ
अब तुम इसको
यानि कि मेरी चुप्पी को
आदत कह लो या रिश्ता बचाने की समझदारी

बेकार


तुम मसरूफ़ थे
मसरूफ़ ही रहे
उस दौर में
जब मैंने इंतज़ार किया तुम्हारा
ज़रूरत की बाहें फैलाये हुए

मज़े की बात ये हुई
उसी दौर में
कि जो लोग ....
खाली थे,बेकार थे
वो मेरे काम आये

आखिर


तुम यूँ ही करते रहना
अपनी बेबसी का ज़िक्र
अपनी हार छिपाने के लिये
ढूंढना रोज़ नये बहाने
असफलताओं के दौर के लिये
तलाशना एक कमज़ोर कड़ी
विफलताओं की ओर से नज़र चुराने को
रचना रोज़ एक नयी फ़ालतू परिभाषा
अपनी बेवक़ूफ़ियों के लिये
रोज़ हर किसी को देना एक नया तर्क
जब कोई समझाने की कोशिश करे
ओढ़ लेना अपनी किस्मत को सर से पाँव तक
मान लेना हार बिन आजमाए
यही करना जो करते आये हो तुम आज तक
और बैठे रहना फिर यूँ ही
एक बदलाव के इंतज़ार में
अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव तक
मुझे है यक़ीन
कुछ नहीं तो कम से कम
बेचारगी का एक तमगा
जीत ही लोगे तुम
ख़ुद की खातिर
.....आखिर

फिर एक दिन


उसने ढेरों मीठी बातें की
फिर एक दिन यूँ अचानक
वो मुकर गया उन बातों से
ज़िन्दगी कड़वा गयी

उसने एक से बढ़ कर एक वादे किये
पर न जाने क्यों
एक के बाद एक उनसे फिरता गया
ज़िन्दगी बिखरा गयी

उसने बदन पे रोज़ कई फूल खिलाये
फिर किसी दिन बस
इस खेल से ऊब गया
ज़िन्दगी मुरझा गयी

वो चला था साथ मेरा हाथ थामे
एक दिन न जाने क्या हुआ
हाथ छोड़ दिया उसने
ज़िन्दगी बेपता हुई

चैन था सुकून था मज़ा था उसके साथ से
फिर इक रोज़ हुआ कुछ ऐसा
वो साथ छोड़ गया
ज़िन्दगी बेमज़ा हुई

उसके होना भर दुआ था जैसे
बिन कुछ कहे सुने
वो छूट गया कहीं
ज़िन्दगी सज़ा हुई

Friday, February 13, 2015

तुम्हारे नाम का कोना





HAPPY KISS DAY!!!

लबों को लबों से छुओ कि तुममें खोना है
मैंने तय कर लिया है अब कि तेरा होना है

तेरी चाहत ने भुला दिया बाक़ी सब कुछ
सोचती हूँ प्यार है या कोई जादू टोना है

किसी को वहाँ आने की इजाज़त नहीं है
मेरे दिल में तुम्हारे नाम का जो कोना है

तुम्हारे होने से ख़ुशियों की बारात है जीवन
वरना तो किसी न किसी बात का रोना है

ज़िन्दगी इसी आरज़ू के साथ बितायी है मैंने
कि जब दम निकले तो तेरी बाहों में होना है

मेरी आँखों का नमक उस तक पहुंचा होगा
इसी वजह से शायद वो इतना सलोना है..

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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