Monday, May 30, 2011

बिन तुम्हारे

बिन तुम्हारे......
मैं,ये तो नहीं कहूँगी कि .....
तुम्हें देखने को तरसती हूँ
पर ,तब भी तुम्हारी झलक भर दिख जाने से
जो खिल जाती थी मैं एकदम से
अब वैसा नहीं होता
इसलिए मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता,....शायद !

बिन तुम्हारे...........
मैं ये तो नहीं कहूंगी कि.......
तुम्हारी यादों के सहारे जीती हूँ
पर,तब भी तुम छाये हो मेरे अस्तित्व पर
और न चाहते हुए भी याद आते हो बार-बार
दिल रोता है जार-जार
इसलिए मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता ..........शायद !

बिन तुम्हारे ...........
मैं ये तो नहीं कहूंगी कि.....
तुम्हारी कमी खलती  है
पर,तब भी कुछ रीत सा गया है मेरे भीतर
संभवतः मेरा कुछ तुम्हारे साथ गया है
जिसे मैं ढूंढती रहती हूँ शाम ओ सहर
इसलिए मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता........शायद !

बिन तुम्हारे..........
मैं ये तो नहीं कहूंगी कि......
जीवन में स्नेह की कमी है
पर,तब भी वो तुम्हारा कुछ कहना,मेरा रूठ जाना
मुझे रूठा  जान तुम्हारा मुझको मनाना
अब इन बातों का अस्तित्व ही मिट गया है
इसलिए मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता........शायद !

बिन तुम्हारे..........
मैं ये तो नहीं कहूंगी कि......
तन्हाई डसती है
पर,तुम्हारे साथ जो दिन गुजार जाते थे पल से
वो अब सदियों से लगते है
काटे नहीं कटते हैं
इसलिए मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता........शायद !

बिन तुम्हारे..........
मैं ये तो नहीं कहूंगी कि......
मैं अब नहीं लिखूंगी
पर,कभी जो लेखनी स्वयं चलती थी
वो आज मेरा साथ नहीं देती
चाह के भी लफ़्ज़ों पे पकड़ नहीं जमती
इसलिए मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता........शायद !

बिन तुम्हारे..........
मैं ये तो नहीं कहूंगी कि......
जीवन कटता ही नहीं
पर,तेरे साथ से जो भरा था ,
नवीनता,उत्सुकता,सरसता से
वहाँ मात्र शेष है नीरवता,एकरसता
इसलिए मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता........शायद !

इस "शायद " को आज मैं अगर छोड़ दूं
और निर्भय होकर सबसे कह दूं
कि बिन तुम्हारे मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता
क्यूंकि,ये जीवन .........
जीवन सा नहीं लगता .
मैं खुद को अधूरी लगती हूँ ,
कुछ भी पूरा नहीं लगता .





Friday, May 27, 2011

अनजाना सा डर ....

कितने करीब थे ....कभी ,हम..............
सालों साल....तुझसे वास्ता रहा
किसी कारण
किसी मोड पे फिर बिछडना पड़ा
आज ...........
ज़िंदगी एक ऐसी जगह ले आई है
जहां............
मैं हूँ
तू है
और तन्हाई है ....
मुझे यूँ तुमसे मिलना
सालों के बाद
बहुत अच्छा लग रहा है
साथ में,
एक अनजाना सा डर भी सता  रहा है.

तुमसे नहीं डर रही हूँ
अपने से डर लग रहा है
कि
तुम्हारी ख्वाहिशें
नज़रों से जो कह रही हैं
.... कहीं तोड़ ना दें....
..वो सारी बंदिशें..........
मैंने जो ओढी हुई हैं.तुम तो रोक लोगे खुद को
मैं जानती हूँ
पर ,मैं....
तुम्हारी एक छुअन से
बिखर ना जाऊं कहीं ......
तोड़  ना दूं सारे बंधन
जो खुद पर हैं थोपे हुए.

जो भावनाएं  कहीं दिल के किसी कोने में
डाल कर ,बंद कर ,भूल चुकी हूँ
उसकी चाभी तो तुम्हारे पास ही छोड़ आई थी ना.........
उस मोड पर जहां  बिछड़े थे हम

Tuesday, May 24, 2011

किस को सच मानूं

दुनिया को बहलाना ,चलाना
कोई तुमसे सीखे
तुम प्यार करते हो......मुझसे
ये अकेले में कहते हो
सबके सामने स्वीकारने  में डरते हो ,शायद.
बल्कि ,औरों के आगे तो ..........
तुम ,मुझे शर्मिंदा करने में भी नहीं झिझकते
बस यह साबित करने के लिए कि...............
मेरे तुम्हारे बीच प्यार तो क्या
प्यार जैसा भी कुछ नहीं  है .
पर,प्यार ऐसे होता है क्या????
कितना कुछ मेरे अंदर मरता है
तुम, सब को ....
जब मेरी भावनाओं का माखौल उड़ाते हुए
जतलाते हो कि
मैं तुमसे प्यार करती हूँ और तुम बस मेरा दिल रख रहे हो
तुम्हारी ओर से मेरे लिए कुछ भी नहीं है......
इससे .. मैं क्या समझूं
किस को सच मानूं.....................

कभी मानोगे या स्वीकारोगे भी...........
कि मैं तुम्हें पसंद हूँ..........
या ,वो दिन कभी आएगा ही नहीं
कभी-कभी मुझे लगता है
कि तुम दुनिया से सच बोल रहे हो
और मुझे ही भरमा रहे हो........
अच्छा ,चलो
अकेले में ही सही
इस सच से भी कभी पर्दा उठा दो
कि क्या मायने हैं मेरे
तुम्हारी जिंदगी में .

Saturday, May 21, 2011

पसोपेश

अजीब पसोपेश में हूँ ....
तुमसे जब बात होती है
तो ,आये दिन
तुम्हारी कोई न कोई बात खराब लग जाती है.

मूड खराब कर लेती हूँ.....
बात करना भी बंद कर देती हूँ.

बात-चीत बंद होते ही .........
मूड पहले से भी कई गुना
खराब कर लेती हूँ.
न इस पहलू चैन,
ना उस करवट आराम

प्यार न हुआ मुसीबत हो गयी

क्या करूँ?.......बोल लूं तुमसे.....
फिर झगड़ने के लिए
या झगडा जारी रखूँ .....ना बोल कर
पता नहीं.....
कुछ समझ नहीं आता.........
तुम ही कहो न........

वैसे सच कहूँ तो इस इन्तेज़ार में हूँ
कि तुम पहल भर कर दो
और मैं तुरंत बोल लूं

न बोल कर मूड खराब करने से
लाख दर्जे बेहतर है
तुमसे बोलते रहकर
लड़ते-झगड़ते,कुछ कहते -सुनते
मूड खराब करना

Thursday, May 19, 2011

देह के समीकरण

देह के समीकरण भी कितने अजीब होते हैं
यूँ तो एक और एक हमेशा ही दो होते हैं
पर, देह के सन्दर्भ में यह गणित बदल जाता है
एक और एक दो न होकर बस एक हो जाता है
कुछ लोगों का कहना है ,कि .........
प्यार के लिए देह ज़रूरी ही नहीं
पर ,प्यार की अभिव्यक्ति देह से ही होती है मुखरित
प्यार के स्पंदन को देह ही देती है जीवन
इसलिए,नाराज़ मत होना
अगर, मैं कहूं,
कि  .......
मैं तुम्हे आधा-अधूरा नहीं,
संपूर्ण प्यार करती हूँ.
तुम्हारी आत्मा के साथ-साथ ...
तुम्हारे शरीर से भी प्यार करती हूँ .

Monday, May 16, 2011

पता नहीं क्या बात है


बरसों बीत गए
तुमसे जुदा हुए
दुनिया की नज़र में
तुम्हें भूल भी चुके हैं.
पर,पता नहीं क्या बात है
हाथ दुआ में उठते हैं
तो तुम जुबां पे आते हो
आँखें बंद करूँ
तो तुम ही  नज़र आते हो .
इस सब से तो आज भी यही लगता है
कि,तुम जहां भी रहो,
जिसके साथ भी रहो,
जैसे भी रहो ......
पर,
मेरे दिल में
सालों पहले ....
जहां दर्द-ए-मोहब्बत होता था
वो दर्द आज भी वहाँ ......
...पूरी शिद्दत से बरकरार है.

Saturday, May 7, 2011

मुझमें बचपना है

आज तुम नाराज़ हो गए मुझसे
कहने लगे ,कि
मैं बड़ी कब होउंगी ?
बहुत बचपना है अब भी मुझमें.
मैं क्या करूँ मेरे अंदर का बचपना नहीं जाता ?
मानती हूँ, कि, तुम बड़े हो गए हो
मेरे अंदर का बच्चा क्यूँ कहीं नहीं जाता ?
सच कहूँ.....................
तो यही बचपना जो मुझमें है
वही हमारे रिश्ते कि डोर को मजबूती से थामे हुए है
कहीं जो मैं भी बड़ी हो गयी, तुम्हारी तरह
तो हमारा रिश्ता छोटा पड़  जाएगा.

तुम बड़े हो
तुम्हारा अहम भी बड़ा है
मुझमें बचपना है
इसलिए
अहम क्या होता है पता ही नहीं.

तुम बड़े हो गए हो
वादे करते  हो भूल जाते हो
मुझमें बचपना है
इसलिए उम्मीद के खिलौने से बहला देते हो.

तुम बड़े हो ,
तुम  बड़ी  बातों से ,चीज़ों से खुश होते हो
मुझमें बचपना है
मेरी खुशियाँ बस तुम तक सीमित हैं

तुम बड़े हो
सब कहा सुना याद रखते हो
मुझमें बचपना है
तभी, मुझे कुछ भी कह लेते हो
मैं भूल जाती हूँ.

तुम बड़े हो
आसानी से नहीं मानते
मुझमें बचपना है
तुम्हारे एक चुम्बन से मैं मान जाती हूँ.

अच्छा है न ,कि
"तुम" और "मैं "
दोनों ही बड़े नहीं हैं ......

Friday, May 6, 2011

मैं क्या करूँ?

मेरा कुछ बोलना तुमसे

और तुम्हारा खफा होना

जब,तय किया कि नहीं बोलूंगी

तुमसे आगे कभी भी,

तो,तुम्हें मेरी चुप्पी भी खली.

अब ,तुम्ही बताओ 

आखिर मैं क्या करूँ?

बोलूं तुमसे या चुप रहूँ?

या फिर...........

.....वो बोलूँ ..जो ,तुम्हें अच्छा लगे

और नहीं तो बस चुप रहूँ.

Tuesday, May 3, 2011

फाउन्टेन पेन

बीस साल मेरे साथ रहा
आज कहीं खो गया ......
ढूंढ-ढूंढ कर थक गयी हूँ
मिलता ही नहीं है ....मेरा फाउंटेन पेन .
वो  समझता था मेरे हरेक इशारे को
बाँध लेता था सारे एहसासों को लफ़्ज़ों में
जानता  था मेरे हाथ के दवाब को
पहचानता था मेरी उँगलियों के पोरों को .
मेरी हर सफलता-असफलता का साथी कहाँ गया???????

आज दुकान पे जब स्याही वाला कलम माँगा
दुकानदार ने ऐसे देखा कि न जाने क्या मांग लिया मैंने
बोला,ये लीजिए जेल पेन,बालपेन
ये अच्छे रहते हैं
फ़टाफ़ट चलेंगे....
इस्तेमाल  कीजिये
फिर फेंक कर दूसरा ले लीजिए.

बिना कलम लिए घर आ गयी
अब सोचती हूँ............
आजकल सम्बन्ध भी ऐसे ही हो गए हैं न ?
इस्तेमाल करो,छोडो,फेंको,दूसरा लो
इस वन नाईट स्टैंड और लिव इन के ज़माने में 
मैं कहाँ सालों की  बात ले बैठी......
कहाँ अब बरसों का साथ?
कहाँ अब वो साथ कि बातें?
कौन  सा निकटता का एहसास  ?
कौन से अनकहे जज़्बात ?
कहाँ है वो प्यार ?????
कहाँ  वो लगाव ?????
सब छु मंतर होता जा रहा है
फाउन्टेन पेन की तरह .....
हरेक चीज़ इन्स्टेंट  मिल जाए
तो वक्त कि बर्बादी कहाँ कि अकलमंदी है ?
महफूज़ कैसे अब  रिश्ते रहेंगे ?????
गायब तो नहीं हो जायेंगे धीरे-धीरे ...








सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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