Saturday, December 14, 2013

एक गली संकरी सी


तुम देखना ,
ध्यान से ज़रा,
आगे एक चौराहा आएगा
उस चौराहे से जो रस्ते जाते हैं न चार
वहाँ है पैसा ,खूबसूरती,तरक्की ,व्यापार.


उनपे न जाना .
थोड़ा पीछे चलना
उससे ज़रा पहले ही
एक गली है संकरी सी
कोई नाम पता कहीं नहीं
बस प्रेम की सुगंध है
यादों की ईटों से बनी
दर्द के कोलतार से ढकी
महकती रहती है.

उस के पास पहुँच भर जाओ
तो खुद ब खुद खिंचे चले आओगे
एक बार आकर ,रास्ता भूलना हो
तो उसी गली में भूलना...प्लीज़

Saturday, December 7, 2013

बेआवाज़ रात



चले गए हो तुम
दूर देस .
तब भी ...
दिल में
वैसे ही
रहते हो तुम .

अक्सर ,
दिल के इस मकान के बाहर
तेरी यादों का जो चबूतरा है
उसपे ही मेरा दिन उतरता है
शाम ढलती है
और फिर ..
बस यूँ ही
बेआवाज़ रात गुज़र जाती है.

Thursday, December 5, 2013

इश्क़ की खुमारी


हल्का हल्का सा एक नशा तारी है
और कुछ नहीं ये इश्क़ की खुमारी है

कल क्या होगा इसका भरोसा नहीं
न जाने क्यूँ उम्र भर की तैयारी है

खुश ना होना तुम उसको गिरता देख
आज उसकी तो कल तुम्हारी बारी है

ज़िंदगी है हर तरह के जायके वाली
मीठी कभी कड़वी कभी खारी है

शक़ की निगाहों को खुद से दूर रखना
वाकिफ हो यह लाइलाज बीमारी है

तेरा प्यार हो या कि तेरी नाराजगी
मुझे तेरी हर अदा जां से प्यारी है

तुम अपना हाथ मेरे हाथ में दे दो
ज़िंदगी की हरेक शै फिर हमारी है

Wednesday, December 4, 2013

कहाँ तक तुम्हें



देखो कहाँ तक तुम्हें लेकर ये झूठ जायेंगे
कभी न कभी तो पाप के ये घड़े फूट जायेंगे

पता लग जायेगी अभी इन लोगों की हक़ीक़त
जैसे ही अन्दर शराबों के चंद घूँट जायेंगे

वाकिफ़ हूँ इससे कि मैं झूठ बोल नहीं सकता
और जो मैंने सच बोला तो अपने रूठ जायेंगे

वो जो बैठे हैं इस महफ़िल में नज़रें झुकाए
देखना है कि वो मेरा क्या क्या लूट जायेंगे

नहीं जानता था तुम्हारे मायने ज़िंदगी में
जाना अब जब लगा कि सहारे ये छूट जायेंगे

Monday, December 2, 2013

अनकहा

मैं कुछ भी कहूँ
कैसे भी कहूँ
तुम्हें अखरता है .
मेरी हर बात में
आजकल कुछ
तुम्हें खलता है
मैं चुप रहूं अगर
तो  गुस्साते हो
कि बोलती क्यूँ नहीं
कुछ कह दूँ अगर
तो तमक जाते हो
कि कहना ज़रूरी नहीं .
पसोपेश में हूँ करूं तो क्या करूं
शांत रहूं
चुप रहूं
कुछ पूछूँ
कुछ कहूँ
या करूं इंतज़ार ...कुछ रोज़ .


समझ नहीं आता
तुम चाहते क्या हो
खुद की व्यथा छिपा रहे हो
कुछ कहना है जो कह नहीं पा रहे हो
किस वजह से मुझे दूर किये जा रहे हो
या फिर खुद मुझसे दूर हुए जा रहे हो

वाकिफ हो कि नहीं
मैं कितनी परेशान हूँ
तुम्हारी परेशानी को लेकर
चाहती हूँ कि
कह दो तुम
बाँट लो तुम
सब दिल खोलकर .

जब तक तुम यह नहीं करते
तुम्हारे अनकहे को
समझने की कोशिश में ....मैं

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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