Saturday, December 14, 2013

एक गली संकरी सी


तुम देखना ,
ध्यान से ज़रा,
आगे एक चौराहा आएगा
उस चौराहे से जो रस्ते जाते हैं न चार
वहाँ है पैसा ,खूबसूरती,तरक्की ,व्यापार.


उनपे न जाना .
थोड़ा पीछे चलना
उससे ज़रा पहले ही
एक गली है संकरी सी
कोई नाम पता कहीं नहीं
बस प्रेम की सुगंध है
यादों की ईटों से बनी
दर्द के कोलतार से ढकी
महकती रहती है.

उस के पास पहुँच भर जाओ
तो खुद ब खुद खिंचे चले आओगे
एक बार आकर ,रास्ता भूलना हो
तो उसी गली में भूलना...प्लीज़

10 comments:

  1. रास्ता भूलो तो प्रेम की गली में ही !
    बढ़िया है !

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  2. हाँ प्रेम गली अति सांकरी......मगर यहाँ भटकने में बड़ा आनंद है...
    :-)
    अनु

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    Replies
    1. यह भटकाव जानलेवा है बड़ा

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  3. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (8-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  4. एक बार आकर,रास्ता भूलना हो
    तो उसी गली में भूलना...

    बहुत सुंदर रचना ....

    recent post: बात न करो,

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  5. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  6. आपका हुक्म सर आँखों पर.. :-)

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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