तुम देखना ,
ध्यान से ज़रा,
आगे एक चौराहा आएगा
उस चौराहे से जो रस्ते जाते हैं न चार
वहाँ है पैसा ,खूबसूरती,तरक्की ,व्यापार.
उनपे न जाना .
थोड़ा पीछे चलना
उससे ज़रा पहले ही
एक गली है संकरी सी
कोई नाम पता कहीं नहीं
बस प्रेम की सुगंध है
यादों की ईटों से बनी
दर्द के कोलतार से ढकी
महकती रहती है.
उस के पास पहुँच भर जाओ
तो खुद ब खुद खिंचे चले आओगे
एक बार आकर ,रास्ता भूलना हो
तो उसी गली में भूलना...प्लीज़
रास्ता भूलो तो प्रेम की गली में ही !
ReplyDeleteबढ़िया है !
चाह तो यही है
Deleteहाँ प्रेम गली अति सांकरी......मगर यहाँ भटकने में बड़ा आनंद है...
ReplyDelete:-)
अनु
यह भटकाव जानलेवा है बड़ा
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (8-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteसूचनार्थ!
शुक्रिया!!
Deleteएक बार आकर,रास्ता भूलना हो
ReplyDeleteतो उसी गली में भूलना...
बहुत सुंदर रचना ....
recent post: बात न करो,
थैंक्स!
Deleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteआपका हुक्म सर आँखों पर.. :-)
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