ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Tuesday, February 11, 2014
बसंत का मौसम
मिलना
बिछड़ जाना
ज़िन्दगी में सब बदल जाना।
मौसम आये ...गुज़रते रहे सालों साल
पर जो नहीं बदला
वो तेरा मेरा हाल
कुछ है कि पीले पत्तों से लिपटा पतझड़
तेरे ज़र्द चेहरे पर ठहर गया है
और वो गीला सा सावन
मेरी आँखों में रुक गया है
चलो,
इन दोनों मौसमों को विदा कर दें
मिलें हम दोबारा
बसंत हमारा इंतज़ार कर रहा है
न जाने कब से
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लाजबाब,बेहतरीन रचना ...!
ReplyDeleteRECENT POST -: पिता
आभार!!
Deleteकुछ है कि पीले पत्तों से लिपटा पतझड़
ReplyDeleteतेरे ज़र्द चेहरे पर ठहर गया है
और वो गीला सा सावन
मेरी आँखों में रुक गया है
...लाज़वाब...बहुत कोमल अहसास और उनकी मनभावन अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर..
धन्यवाद!!.....कैलाश जी
Deleteआपकी इस प्रस्तुति को आज की आज कि बुलेटिन - क्या हिन्दी ब्लॉगजगत में पाठकों की कमी है ? में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteमेरी रचना को शामिल करने हेतु,आभार!!
Deleteभावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeleteथैंक्स...सुषमा.
Deleteवाह ... अनुपम भाव संयोजन
ReplyDeleteबहुत खूब
धन्यवाद!!
Deleteकोमल भाव लिए बहुत ही प्यारी रचना....
ReplyDeleteदिल को छू लेनेवाली...
:-)
शुक्रिया...रीना
Deleteआखिर तुमको भी वसंत याद आ ही गया....अच्छा है...।
ReplyDeleteदी..पुराना याराना है...बसंत से मेरा.
Deleteआभार!!
ReplyDeleteSo beautiful Nidhi... और वो गीला सा सावन
ReplyDeleteमेरी आँखों में रुक गया है
शैफाली .....आज तक रुका है
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