Saturday, August 8, 2015

फिर एक दिन


उसने ढेरों मीठी बातें की
फिर एक दिन यूँ अचानक
वो मुकर गया उन बातों से
ज़िन्दगी कड़वा गयी

उसने एक से बढ़ कर एक वादे किये
पर न जाने क्यों
एक के बाद एक उनसे फिरता गया
ज़िन्दगी बिखरा गयी

उसने बदन पे रोज़ कई फूल खिलाये
फिर किसी दिन बस
इस खेल से ऊब गया
ज़िन्दगी मुरझा गयी

वो चला था साथ मेरा हाथ थामे
एक दिन न जाने क्या हुआ
हाथ छोड़ दिया उसने
ज़िन्दगी बेपता हुई

चैन था सुकून था मज़ा था उसके साथ से
फिर इक रोज़ हुआ कुछ ऐसा
वो साथ छोड़ गया
ज़िन्दगी बेमज़ा हुई

उसके होना भर दुआ था जैसे
बिन कुछ कहे सुने
वो छूट गया कहीं
ज़िन्दगी सज़ा हुई

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