Saturday, August 8, 2015

समझदारी


तुम्हारी कितनी बातें दिखती हैं
समझ आती हैं दर्द दे जाती हैं
दिल चाहता है तुमसे सब कह दूँ
अपने मन का बोझ हल्का कर लूँ
पर फिर लगने लगता है
क्या होगा भला तुमसे बोलकर
तुम जो हो जैसे हो जहां हो
रहोगे वही वैसे ही वहाँ के होकर
यूँ भी तुमसे कुछ कहना फ़िज़ूल है यार
अपने आगे किसी की तुमने सुनी है क्या
जो मेरी सुनोगे यार।

इसलिए चुप हूँ
अब तुम इसको
यानि कि मेरी चुप्पी को
आदत कह लो या रिश्ता बचाने की समझदारी

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