ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Thursday, October 27, 2011
रूटीन
वही सुबह,वही रातें...
वही दोपहर ,वही शामें....
कुछ भी अलग नहीं...
जीवन के ये दिन......
बस यूँ ही....
बीतते जाते हैं.
बोझल बातें हैं....
बेबस सांसें हैं .....
रुकी-रुकी धडकनें....
थमी-थमी मुस्कुराहटें....
"तुम" आ जाओ ,न ........
तुम्हारी बातों का इन्द्रधनुष
मेरी बेरंग जिंदगी में रंग भरता है .
तेरा हर बात पे कहना ,"पता नहीं "..."कुछ नहीं "
नीरस जीवन में जैसे रस भरता है .
आओ, कि..कुछ तो हो...
रूटीन से हट कर .
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कितनी शिद्दत से पुकारा है अब कोई कैसे रुक सकता है।
ReplyDeleteरूटीन से हटकर कुछ होना ज़रूरी भी है।
ReplyDeleteआपको सपरिवार दीप पर्व की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
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कभी यहाँ भी पधारें
बहुत ही उम्दा ... तुम तो हो रूटीन से हटकर
ReplyDeleteउबाऊ,नीरस,आत्मघातक रुटीन को तोड़ ही दिया जाना चाहिए. किसी के आने का इंतज़ार न करें,यह काम खुद ही करना होता है...
ReplyDeleteनिधि जी, बहुत ही सुंदर अंदाज-ए-बयां है आपका, आपकी पोस्ट का बेसब्री से इंतजार रहता है !
ReplyDeletesach nidhi ji aapki lekhni bhi hain kuch hat kar.... aabhar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!! अन्य रचनाएँ भी अच्छी लगीं, उनमें 'कौन हूँ मैं' और ' प्रेम का तावीज' सुन्दर हैं.
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है ..
www.belovedlife-santosh.blogspot.com (हिंदी कवितायेँ)
www.santoshspeaks.blogspot.com
रूटीन से हटकर अच्छा लगता है.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
गोवर्धन ,भैय्या दूज की हार्दिक शुभकामनाएँ.
इंतजार है आपका, निधि जी.
वन्दना....आपकी बात सच हो जाए............काश!!
ReplyDeleteयशवंत...हाँ,कभी कभार...रूटीन से हटकर कुछ होना अच्छा लगता है
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी ...शुक्रिया!!
ReplyDeleteराहगीर जी...यह काम खुद ही करना होता है पर कुछ लोग आ जाएँ तो सब कुछ रंगीन हो जाता है
ReplyDeleteस्कोर्लेओ....बहुत बहुत आभार,आपका .
ReplyDeleteप्रियंका....तहे दिल से शुक्रिया!!
ReplyDeleteसंतोष जी...हार्दिक धन्यवाद...रचनाओं को पढ़ने एवं सराहने हेतु
ReplyDeleteराकेश जी ...थैंक्स!!आपके ब्लॉग पर कथनानुसार अवश्य आउंगी .
ReplyDeleteaapki lekhni ko naman ..............
ReplyDeleteसुनील जी ............धन्यवाद! !
ReplyDeleteबेहद उम्दा ! निधि ...एक बार फिर मेरी ही बात ....शब्द तुम्हारे हैं तो क्या ?
ReplyDeleteकभी तो होता कि उनकी हर बात पे
हम कहते ,"पता नहीं"..कुछ नहीं"..
उनके जीवन में भी वही रंग घुलते
जिनसे हम हज़ार बार नहाये हैं ..
कभी तो वो भी कहते ....
"तुम" आ जाओ न .....
ये भी तो कुछ होता न
"रूटीन" से हटकर .........
तुलिका...क्यूँ यह ज़िंदगी इसी काश के सहारे कटती है कि ..कभी यह हो जाता ....कभी वो यह कह देता ..आपके शब्दों का जादू भी कम नहीं है ,तुलिका....इसीलिए आपकी प्रतिक्रया का इंतज़ार रहता है .
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