ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Wednesday, October 12, 2011
कौन हूँ मैं??????
कौन हूँ मैं?
कितनी बार यह सवाल खुद से करती हूँ ...
फिर तुम्हारी बातों में से ही ..
एक उत्तर खोज लेती हूँ
क्यूंकि ,
अधिकतर ,मैं वही सोचती हूँ
जो सब चाहते हैं कि मैं सोचूं .
मेरा मन...??
वो क्या है ...
सबके मन की करते -करते
भूल चुकी हूँ कि मेरे पास भी
अपना एक मन है .
मेरा दिमाग ???
औरतों के पास भी दिमाग होता है क्या???
कभी इस्तेमाल करती और कोई सराहता
तो ही उसे जानती ,पहचानती न !
मेरी भावनाएं????
उनकी मुझे क्या ज़रूरत
मेरा तो धर्म है ...
सबकी खुशी में खुश होना और दुःख में दुखी .
मेरी इच्छाएं?????
मैं मजाक कर रही हूँ क्या?????
मैं और तुम अलग हैं क्या
जो तुम चाहो
बस वही होनी चाहिए मेरी इच्छा .
न मन अपना,न भावनाएं अपनी
न दिमाग अपना ,न इच्छाएं अपनी
न सोच अपनी,न खुशी- गम अपने
अच्छा ,तुम ही कहो न?!
मैं सजीव हूँ या निर्जीव ....??????
(प्रकाशित)
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bahut sundar bhavon ki bhasha pravah pati huyi ...shukriya ji
ReplyDeleteअधिकतर मैं वही सोचती हूँ , जो सब चाहते हैं और ऐसे में प्रश्न उठता है न 'मैं कौन हूँ' - जीने पर भी शुबहा !
ReplyDeleteएक ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर नारी सदियो से खोज रही है……………सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteये सजीव और निर्जीव के समीकरण ही बेकार हैं....अस्तित्व तो हर किसी का है ना.....
ReplyDeleteउदय वीर जी...तहे दिल से शुक्रिया!!
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी ...जब भावनाओं ,सोच को अपने सामने दम तोड़ते देखो तो यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि अस्तित्व क्या है?
ReplyDeleteवन्दना...कब मिलेगा इसका उत्तर ?
ReplyDeleteसदा....हार्दिक धन्यवाद !!
ReplyDeleteकुमार ..अस्तित्व दोनों का है..पर दोनों में फर्क है..एक को महसूस होता है ,एक को कुछ महसूस नहीं होता
ReplyDelete...
ReplyDelete"क्यूँ ऐसा होता है..
निर्जीव ही हो जाता है..
जो करता है सजीव..
ना जाने कितने जीव..
आश्चर्यचकित हूँ..
अचंभित भी..
क्या समझ सकेगा..
इस जीव का महत्व कोई..!!!"
...
प्रियंका....हरेक जीव को अपना महत्त्व स्वयं ही दर्शाना पड़ता है ...जब तक वो अपनी महत्ता को खुद नहीं पहचानेगा तब तक औरों को कैसे बताएगा ...प्रयास सदा यही करना चाहिए कि खुद को ...खुद की असीम शक्तियों को पहचानें...निखारें .
ReplyDeleteमेरी दृष्टि में आप एक बहुत प्यारी महिला हैं ! सुंदर और सजीव......
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteअंजू...शुक्रिया !!
ReplyDeleteसुषमा....धन्यवाद!!
ReplyDeleteन मन अपना,न भावनाएं अपनी
ReplyDeleteन दिमाग अपना ,न इच्छाएं अपनी
न सोच अपनी,न खुशी- गम अपने
अच्छा ,तुम ही कहो न?!
मैं सजीव हूँ या निर्जीव ....?????? behtreen abhivaykti...
सागर....अच्छा लगा जान कर कि तुम्हें पसंद आई...मेरी अभिव्यक्ति .
ReplyDelete.. बहुत उम्दा रचना एक बार फिर .. निधि .. आप कमाल का लिखती है ..
ReplyDeleteमालूमात कराएँ जो, वो मलाल जरुरी है
ख्वाहिशो के बीच भी ये ख्याल ज़रूरी है
आये हो किसलिए और जाना कहाँ है
खुद से पूछना कभी ये सवाल जरुरी है
ek nari ki manovytha ka khoobsurti se chitran...aabhar
ReplyDeleteअमित .....आपने बिलकुल सही कहा कि बहुत ज़रुरी है ये सवाल....खुद से .....कि कहाँ से,किसलिए आये हैं और कहाँ जाना है .
ReplyDeleteप्रियंका.....रचना को पसंद करने हेतु, धन्यवाद !!
ReplyDeleteवाह निधि....एक बार फिर तुम्हारी एक बेहतरीन लेखनी.....बस यही कहूँगा...औरत तेरी यही कहानी ,
ReplyDeleteबेटी ..बहना ..सजनी ..माँ ,
पर उसकी दिल की बात किसी ने ना जानी...
आदरणीय निधि जी
ReplyDeleteनमस्कार !
उम्दा रचना
बहुत ही सुन्दर एवं गजब की अभिव्यक्ति बधाई इस रचना के लिए !
एम् एस ...कई दिन बाद आपका कोई कमेन्ट नज़र के सामने से गुजरा...अच्छा लगा !!हाँ,यही व्यथा है नारी की , कि ..सबके मन का करते करते उसका अपना मन है ..अस्तित्व है ,उसे वो विस्मृत कर देती है...
ReplyDeleteसंजय जी...आपकी प्रतिक्रया का मेरी पोस्ट्स को सदैव इंतज़ार रहता है...आशा करती हूँ कि आपके कार्य अच्छे से संपन्न हो गये होंगे और आगे आप साथ बने रहेंगे .रचना को पसंद करने हेतु ...आभार !
ReplyDeleteनारी मन के भावों को शाद दिए अहिं आपने इस पुरुष समाज की वेदना को व्यक्ति किया है ..
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद...दिगंबर जी ...रचना को पसंद करने एवं टिप्पणी करने हेतु .
ReplyDeleteमनोव्यथा को सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है!
ReplyDeleteअनुपमा...हर नारी ने कभी न कभी इस तरह का अनुभव शायद ज़रूर किया होगा .धन्यवाद...कि आपने रचना पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया दी
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