ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Friday, September 14, 2012
क़सम लगती है
मुहब्बत अपनी इबादत ओ धरम लगती है
इनायतें तेरी खुदा का करम लगती हैं
मुझको लगा था कि मैं भूल चुकी हूँ तुझको
फिर तेरे ज़िक्र पे क्यूँ ज़रा नब्ज़ थमती है
तू मुझे छोड़ गया तो कोई तुझसा न मिला
तेरी परछाईं है जो हमक़दम सी चलती है
तुम्हारे हाथ से जब छूट गया हाथ मेरा
अब खुदाई भी बस एक भरम लगती है
तुम गए तो अब अच्छा नहीं लगता कुछ भी
यूँ तो तन्हाई में यादों की बज़्म सजती है
जो तोड़ गए थे दिल मेरा मुहब्बत में कभी
सुना तो होगा कि उनको भी क़सम लगती है
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शुक्रिया!
ReplyDeleteतुम्हारे हाथ से जब छूट गया हाथ मेरा
ReplyDeleteअब खुदाई भी बस एक भरम लगती है
सच, उसके बाद कुछ भी मानना, सहेजना, समेटना सभी तो भ्रम ही लगता है...अब किसी और के ऊपर कोई वादा नहीं सज सकता, विश्वास कहाँ से जन्म लेगा ?
शैफाली....यकीं का उठ जाना...सबसे खराब होता है.किसी पर भी उसके बाद विश्वास करना मुश्किल हो जाता है ,बहुत.
ReplyDeleteअपने आप पे से भी यकीं खत्म हो जाता है
तुमसे शुरू,तुमसे सिलसिला,तुमसे खत्म-मेरी ज़िन्दगी बस इतनी है
ReplyDeleteजी...बस इतनी ही है.
Deleteप्यार करके ...उसे कोई भूल पाया है क्या ?????
ReplyDeleteप्यार भुला दिया जाए.....तो वो प्यार कहाँ?
Deleteहम बहर, रदीफ़, काफिया, वज़न....कुछ नहीं जानते पर हमें शाईरी पढ़ना सुनना भाता है ...हाँ इस मामले में हमारे कान इतने नाज़ुकमिजाज़ हैं कि बुरी,लंगडी-लूली शाईरी को फ़ौरन से पेशतर सुनने से मना कर देते हैं ...पर हाँ ..निधि जी आपके शेर पसंद हैं मुझे...और ये ग़ज़ल तो बेहतरीन लगी ...मेरे लिए हासिल-ए-ग़ज़ल शेर ये है ...
ReplyDeleteमुझको लगा था कि मैं भूल चुकी हूँ तुझको
फिर तेरे ज़िक्र पे क्यूँ नब्ज़ ज़रा थमती है
ख़रामा ख़रामा आगे बढ़ने के लिए मेरी दुआएं आपके पीछे पीछे चलती रहेंगी ..
तुम मुझे जानो...काफी है.तुम्हारी दुआएं ..साथ हैं और उनमें यूँ ही शामिल रखना...बस इतना ही कहना है.
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